दर्द एक आम स्वास्थ्य समस्या है, जो जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है। बहुत से लोग दांत के दर्द या पीठ के दर्द से राहत पाने के लिए एलोपैथिक दवा पर निर्भर करते हैं, लेकिन इनमें साइड इफेक्ट्स, दवा के इंटरैक्शन और कभी-कभी दुरुपयोग का जोखिम भी होता है। हालांकि कुछ परिस्थितियों में प्रिस्क्रिप्शन या ओवर-द-काउंटर (OTC) पेन किलर की जरूरत हो सकती है। लेकिन कुछ जड़ी-बूटियाँ हैं, जिनका उपयोग सदियों से अलग अलग स्वास्थ्य समस्याओं के उपचार के लिए किया जाता रहा है, ये दर्द से आराम पाने के लिए भी प्रभावी रही हैं। इन जड़ी-बूटियों में ऐसे गुण होते हैं, जो शरीर में सूजन को कम करते हैं और दर्द को राहत पहुँचाते हैं। इस लेख में हम कुछ प्रमुख जड़ी-बूटियों के बारे में चर्चा करेंगे, जो नेचुरल पेन किलर के रूप में उपयोगी हैं।
एंटीइंफ्लेमेटरी पेन किलर सामान्य रूप से सुरक्षित होते हैं। लेकिन यदि आप इन्हें बहुत बार, लंबे समय तक या बहुत बड़े डोज में उपयोग करते हैं, तो ये कुछ दुष्प्रभाव और जटिलताएँ पैदा कर सकते हैं:
पेन किलर दवाओं को लंबे समय तक उपयोग करने से लिवर या किडनी को गंभीर नुकसान पहुँच सकता है। लिवर की समस्याएँ फेल होने तक पहुँच सकती हैं, जबकि किडनी की समस्याएँ किडनी फेल्योर का कारण बन सकती हैं।
कुछ पेन किलर दवाएं, विशेष रूप से नॉन-स्टेरायडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स हृदय की समस्याएँ पैदा कर सकती हैं। यह हार्ट अटैक या स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा सकती हैं, खासकर उन लोगों में जिन्हें पहले से हृदय संबंधी समस्याएँ हैं।
कई पेन किलर दवाएं जैसे नॉन-स्टेरायडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (NSAIDs) पेट में जलन, अल्सर, या गैस्ट्रिक समस्याएं पैदा कर सकती हैं। इससे दस्त या कब्ज की समस्याएं हो सकती हैं, जिससे व्यक्ति को असहजता का अनुभव होता है। यह भी देखें: पेट और लिवर के लिए खतरनाक हो सकता है मसालों का अंधाधुंध सेवन, जानिए इसके स्वास्थ्य जोखिम
कुछ लोग पेन किलर दवाओं के प्रति सेंसटिव होते हैं, जिससे एलर्जिक रिएक्शन हो सकता है। इसके लक्षणों में त्वचा पर रैशेज, खुजली, या सांस लेने में कठिनाई शामिल हो सकती है।
पेन किलर दवाओं का सेवन करने से मतली, उल्टी या पेट में जलन जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं, जो इलाज के लिए अतिरिक्त दवाओं की आवश्यकता पैदा कर सकती हैं।
कुछ पेन किलर दवाएं कानों में रिंगिंग (टिनिटस) का कारण बन सकती हैं या सुनने की क्षमता को प्रभावित कर सकती हैं।
लंबे समय तक NSAIDs का उपयोग पेट में अल्सर का निर्माण कर सकता है, जिससे इंटरनल ब्लीडिंग या अन्य जटिलताएँ हो सकती हैं।
कुछ शक्तिशाली पेन किलर आदत बना सकते हैं। यह निर्भरता या नशे का कारण बन सकता है, जिसके लिए चिकित्सा सहायता की आवश्यकता होती है।
इन दुष्प्रभावों से बचने के लिए, पेन किलर दवाओं का उपयोग करने से पहले हमेशा डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए और उनकी सलाह के अनुसार ही दवाओं का सेवन करना चाहिए।
इसके बारे मे आयुर्वेदाचार्य डाॅ अजय कुमार कहते हैं कि आयुर्वेद में उचित ट्रीटमेंट के लिए एक योग्य वैद्य की देखरेख जरूरी है। अक्सर लोग एलोपैथी के इलाज में लंबे समय तक रह जाते हैं, जिससे पेन किलर्स के दुष्प्रभाव जैसे किडनी और लिवर पर पड़ते हैं। इसलिए, जल्दी से आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट शुरू करना बेहतर होता है।आयुर्वेद में जोड़ों के दर्द को वात व्याधि के तहत समझा जाता है, जिसमें बढ़ा हुआ वात मुख्य कारण होता है।
नीचे दिए गए नैचुरल पेन किलर ऑप्शनल मेडीकेशन की श्रेणी में आते हैं। इन्हें आजमाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें, खासकर उन उपायों के लिए जिन्हें खाना होता है, क्योंकि यह आपके चल रहे ट्रीटमेंट के साथ इंटरफेयर कर सकते हैं।
हल्दी के गुणों को कौन नहीं जानता पीढीयों से इस मसाले को औषधि कि तरह भी इस्तेमाल किया जाता रहा है। इसमें कर्क्यूमिन होता है, जो एक एंटीऑक्सीडेंट है और यह शरीर को फ्री रेडिकल्स से बचाने में मदद करता है, जो सेल्स को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसे सूजन को कम करने और दर्द को घटाने के लिए भी अच्छे से अध्ययन किया गया है, खासकर हड्डी से संबंधित बीमारियों जैसे आर्थराइटिस में।
लौंग का उपयोग अक्सर मांस और चावल के व्यंजनों को मसालेदार बनाने के लिए किया जाता है। इन्हें नैचुरल पेन किलर के रूप में भी व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, क्योंकि इनमें यूजेनॉल पाया जाता है, जो एक नैचुरल पेन किलर है और कुछ ओवर-द-काउंटर दर्द रगड़ में भी उपयोग होता है। भारत में दांत के दर्द से राहत पाने लौंग को दांत के नीचे दबाने या इसका तेल लगाने की सलाह दी जाती है। लौंग कैप्सूल या पाउडर के रूप में भी उपलब्ध हैं।
अजवाइन में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो गठिया, आर्थराइटिस जैसी स्थितियों में दर्द और सूजन को कम करने में मदद करते हैं। इसके अलावा अजवाइन में मौजूद एनेस्थेटिक गुण सर्दियों के दौरान होने वाले पुराने चोट के दर्द को कम करने में सहायक है।
आक की पत्तियों को पीसकर लेप लगाने से जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है. इसके अलावा, आक की पत्तियों को उबालकर पानी में अजवाइन और नमक डालकर गर्म पानी से सिकाई की जा सकती है.
अश्वगंधा मांसपेशियों की कमजोरी को दूर करने में मदद कर सकती है और इसे जोड़ों के दर्द के इलाज में काफी काम आती है। इसके पौधे की जड़ों से निकाले जाने वाला तेल और पाउडर दर्द के इलाज में काम आता है।
शल्लकी जड़ी-बूटी आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह जोड़ों के दर्द और सूजन
को कम करने में मदद कर सकती है। यह विशेषकर ऑस्टियोअर्थराइटिस जैसी स्थितियों में अपना प्रभाव दिखाती है। शल्लकी में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं और इसका इस्तेमाल ऑस्टियोअर्थराइटिस, रुमेटॉइड आर्थराइटिस और जोड़ों की अन्य समस्याओं के इलाज में किया जाता है।
पारिजात के फूल की खुशबू से तो सब परिचित होंगे। पर यह एक नैचुरल पेन किलर भी है। इसकी पत्तियों से जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है, इसके लिए, 3-4 पत्तियों को धोकर एक ग्लास पानी में डालकर उबालना होता है
यह भी देखें: Pain Awareness Month : दर्द से छुटकारा दिला सकती हैं 5 बरसों पुरानी ये घरेलू औषधियां
डिस्क्लेमर: हेल्थ शॉट्स पर, हम आपके स्वास्थ्य और कल्याण के लिए सटीक, भरोसेमंद और प्रामाणिक जानकारी प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके बावजूद, वेबसाइट पर प्रस्तुत सामग्री केवल जानकारी देने के उद्देश्य से है। इसे विशेषज्ञ चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार का विकल्प नहीं माना जाना चाहिए। अपनी विशेष स्वास्थ्य स्थिति और चिंताओं के लिए हमेशा एक योग्य स्वास्थ्य विशेषज्ञ से व्यक्तिगत सलाह लें।