सोशल मीडिया अकाउंट पर हजारों फ्रेंड्स और फॉलोवर होना और बात है। जबकि वास्तविक जीवन में कोई सचमुच अपना होना दूसरी बात। आज ट्विटर, फेसबुक, इन्स्टाग्राम, वाट्सएप आदि सोशल साइट की धूम के चलते दुनिया भर में पल भर में संबंध बनाना आसान लग सकता है। आप अपनी नए-पुराने दोस्तों को संदेश, ईमेल भेज सकती हैं, चैटिंग कर सकती हैं। पर इन सब में कोई ऐसा अपना ढूंढना जो आपको अकेलेपन से निकाल सके, काफी मुश्किल है।
इतनी सारी सोशल साइट्स के बावजूद, अकेलापन अभी भी एक गंभीर समस्या है। अकेलापन किसी के रिश्तों की गुणवत्ता से बंधा होता है। कोई व्यक्ति अपने पार्टनर, बच्चों, माता–पिता, बहन- भाई के साथ रहते हुए भी अकेला हो सकता है। अकेलेपन का अर्थ है अन्य लोगों के साथ सार्थक संबंध के स्तर में कमी महसूस करना है।
अकेलापन एक गंभीर स्वास्थ्य चिंता का विषय हो सकता है, लेकिन इस समस्या पर अक्सर न तो लोग और न ही चिकित्सक ध्यान देते हैं। हमारी अन्य बुनियादी जरूरतों – जैसे खाना, पीना, सोना व देखभाल में स्वास्थ्य मूल्य को तो हम सभी पहचानते हैं, लेकिन हमें यह भी समझने की आवश्यकता है कि अन्य लोगों के साथ जुड़ाव भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
जूलियन होल्ट लुंस्टेड, बर्मिंघम यंग विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के प्रोफेसर और लोनलीनेस रिसर्च टीम के अनुसार अकेलापन गंभीर शारीरिक जोखिम बनता जा रहा है। यह सचमुच काफी घातक हो सकता है। अकेलापन समय से पहले मौत का भी कारण बन सकता है। अकेलापन या अपर्याप्त सामाजिक संबंध मोटापे की तुलना में ज्यादा बड़ा जोखिम है।
यह एक दिन में 15 सिगरेट पीने के बराबर है । वे आगे कहती हैं कि अकेलेपन की महामारी दिन ब दिन बद से बदतर होती जा रही है। क्योंकि अकेलापन इतने कपटी तरीके से आता है कि सामान्यत: आप उसे पहचान ही नहीं पाते। धूम्रपान या मोटापे के विपरीत हम इसका आना महसूस भी नहीं कर पाते। जबकि इसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता शेष समस्याओं से ज्यादा है|
पिछले कुछ वर्षों में अच्छे स्वास्थ्य, दोस्तों व सहकर्मी से घिरे रहने के बावजूद किशोर और युवा वयस्कों के बीच अकेलेपन की समस्या आसमान छूने लगी है। एक ब्रिटिश अध्ययन में पाया गया कि 16 से 24 के बीच की उम्र के युवाओं में अकेलेपन की समस्या अन्य सभी आयु वर्ग के लोगों से अधिक थी। कई विशेषज्ञ सोशल मीडिया के अत्यधिक इस्तेमाल को बढ़ते अकेलेपन का दोषी ठहराते हैं। उनका तर्क है कि ये सोशल साइटस दोस्ती बनाने के लिए जरूरी हुनर के विकास में रुकावट पैदा कर सकते हैं।
एकांतवास (solitude) या अकेले में समय बिताना स्वाभाविक तौर पर नकारात्मक नहीं होता, बल्कि हमें दृढ इच्छा, शक्तिवान बनाने में मददगार हो सकता है। यह एक स्कारात्मक प्रक्रिया है जबकि अकेलापना नकारात्मकता व पूर्वाग्रह का एक प्रकार है। अकेलेपन से ग्रस्त व्यक्ति संभावित अस्वीकृति का संकेत मिलने या संदेह होने पर लोगों से बचने की कोशिश करने लगता है, रक्षात्मक रवैया अख़्तियार कर लेता है ।
अकेलेपन पर शोध कर रहे जॉन केकीप्पों का तर्क है कि जिस तरह आप शक्ति हासिल करने और अपने स्वास्थ्य में सुधार करने के लिए एक व्यायाम व आहार शुरू करते हैं, उसी तरह अकेलेपन के लिए भावनात्मक शक्ति और स्वभाव में लचीलापन लाने की कोशिश करना जरूरी होता है।
उन्होने इस तरह के प्रयोग इराक और अफगानिस्तान से लौटने वाले सैनिकों के क्रोनिक अकेलेपन की सहायता हतु किए। ये किसी के लिए भी उपयोगी हो सकते हैं।
1 स्वयं पर विश्वास रखें और अपना आत्मसम्मान को कम न होने दें।
2 अच्छे विचारों व घटनाओं का आदान-प्रदान करें। लेकिन इसके लिए सोशल साइट नहीं अपने सचमुच के दोस्तों कों संदेश द्वारा या बेहतर होगा कि मिलकर बांटें।
3 सीधे मुलाक़ात में आप दूसरे के हाव-भाव पर भी नजर रख पाते हैं।
4 अधिक समय अकेले न बिताएं यानि घर बैठकर टीवी या वीडियो गेम खेलने की बजाए मित्रों के साथ बैडमिंटन, तैराकी या शतरंज खेलने में समय बिताना बेहतर विकल्प है।
5 परिजनों, माता-पिता, पार्टनर, बच्चों, भाई-बहन से संपर्क रखें। चाहें फोन से ही अपने दुख दर्द या सफलता साझा करें। इनसे अधिक हितैषी और कोई नहीं हो सकता।
6 समाज सेवी कार्यों में रुचि लें, केवल दान दे कर ही नहीं सशरीर भाग लें।
7 समस्या के अधिक गंभीर होने पर विशेषज्ञ से सहायता लें।