कम्युनिकेशन प्रोफेसनल अलका शर्मा का मूड खराब रहता था। जिसकी वजह से अक्सर उनके घर में कलह होती रहती थी। वहीं कभी कभी अलका उन चीजों पर बहस कर लेती या गुस्सा हो जाती जो चीजें गुस्सा करने लायक भी नहीं होती थीं। उनके शरीर में इस दौरान दर्द और बहुत तेज सिरदर्द रहता था। ये सभी लक्षण इस बात का संकेत थे कि वह तनाव से पीड़ित थीं। अलका इस बीमारी को लंबे समय से नजरअंदाज करती आ रही थी। परंतु हालत बिगड़ने के बाद उन्होंने वर्कप्लेस मेंटल वेल-बीइंग एक्सपर्ट से जांच करवाई उसमे पता लगा की वे बहुत बुरी तरह तनाव के चपेट में आ चुकी हैं।
अलका की तरह बहुत से लोग वर्कप्लेस पर स्ट्रेस से पीड़ित हैं और उन्हें इस समस्या से पीड़ित होने के बाद भी इसकी जानकारी नहीं होती। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार 15 प्रतिशत भारतीय वर्किंग व्यक्ति मेंटल डिसऑर्डर की चपेट में आ चूका है। हाल ही में डेलॉयट के एक सर्वे में पता चला है कि लगभग 47 प्रतिशत प्रोफेसनल वर्कप्लेस से संबंधित स्ट्रेस से पीड़ित हैं। इस तरह के स्ट्रेस से उनका मानसिक स्वास्थ्य नकारात्मक रूप से बहुत ज्यादा प्रभावित हो रहा है। ये चिंताजनक आंकड़े वर्कप्लेस पर मेंटल हेल्थ (tips to manage workplace stress) को बेहतर करने पर जोर देते हैं। जब कर्मचारियों का मानसिक स्वास्थ्य बेहतर रहेगा तभी कम्पनी की उत्पादकता में वृद्धि होगी।
एक अच्छे वर्कप्लेस की यह निशानी होती है कि वहां के मैनेजमेंट का कम्युनिकेशन बेहतर रहे। ऐसा होने से मैनेजमेंट और कर्मचारी के बीच घनिष्ठता भी बढ़ती है। वहीं दूसरी ओर जब कम्युनिकेशन खराब होता है, तो इससे बेवजह का तनाव बढ़ता है और वर्कप्लेस से संबंधित तनाव और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होती हैं।
जब मैनेजेमेंट काम से संबंधित समस्याओं को हल करने में कर्मचारियों की सहायता नहीं करता, तो कर्मचारी आत्मविश्वास में कमी महसूस करते हैं। उदाहरण के लिए मैनेजमेंट को उन कामों को पूरा करने के लिए एक एग्जाम्पल सेट करना चाहिए जो कर्मचारियों के लिए स्पष्ट हो।
कोरोनावायरस महामारी के दौरान बहुत लोगों ने अपनी नौकरियां गवां दी। ऐसे में कर्मचारियों के दिमाग पर काफी जयदा नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। यह देखा गया है कि कर्मचारियों पर हर समय बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव रहता है। काम का बोझ ज्यादा होने और ज्यादा समय तक काम करने से अतिरिक्त तनाव पड़ता है और लोग भावनात्मक रूप से हतास हो जाते हैं।
हम सभी कभी न कभी वर्कप्लेस पर ख़राब मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जब चीजें अच्छी चल रही होती हैं, तो किसी को कोई समस्या नहीं होती। फिर हमारे सामने एक लक्ष्य नज़र आता है और हमें विश्वास होता है कि हमारे सामने जो भी मुश्किलें या चुनौतियां आएंगी उसका हम सामना कर सकते हैं।
हमारे शारीरिक स्वास्थ्य की तरह ही हमारा मानसिक स्वास्थ्य भी अच्छा और ख़राब होता रहता है। ऐसे में मानसिक स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए एक फ्रेंडली वर्कप्लेस होना बहुत जरुरी है।
ख़राब मानसिक स्वास्थ्य की वजह से शारीरिक रूप से व्यक्ति कमजोर हो जाता है और उसकी रोजमर्रा की जिंदगी भी प्रभावित होती है। खराब मानसिक स्वास्थ्य का आपके रोजमर्रा की जिंदगी और शारीरिक क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ऐसे में कभी कबार व्यक्ति अपनी यादास्त खोने लगते हैं। वहीं सोशल एंग्जाइटी बढ़ती है।
मानसिक स्वास्थ्य के प्रभावित होने से कर्मचारी के अंदर नकारात्मक ख्यालात आना शुरू हो जाता है। वहीं निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है और ऐसे में कर्मचारी अपने कार्य को पूरा करने से चुकने लगते हैं। ऑफिस देर से पहुंचना, सभी कार्य को अधूरा छोड़ देना और कंपनी के दिशा-निर्देशों के मुताबिक काम न ]करने जैसी समस्याएं देखने को मिलती हैं।
मानसिक स्वास्थ्य ख़राब होने के कारण डिमोटिवेशन और फोकस की कमी हो जाती है। जब वर्कप्लेस पर मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं सामने आती है तो हमारे विचार भटक जाते हैं या अपनी समस्याओं में व्यस्त हो जाते हैं। ये सभी हमारे विचारों एवं भावनाओं को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं।
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कस्टमाइज़ करेंवर्कप्लेस पर मानसिक स्वास्थ्य का अच्छा होना कम्पनी के ग्रोथ के लिए बहुत जरूरी है। वहीं इसके प्रति लोगों के बिच जागरूकता बढ़ाना भी एक महत्वपूर्ण कार्य है। कर्मचारी का मानसिक स्वास्थ्य ख़राब होने से कर्मचारी की उत्पादकता ख़राब हो जाती है। जब कंपनियां अपने कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर करने के लिए कदम उठाती हैं तो कम्पनी का काम बेहतर होता है और कम्पनी फलती-फूलती है।
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