जल्दी कंट्रोल करें अपना गुस्सा, वरना आपके बच्चे पर हो सकता है इसका खतरनाक असर, एक्सपर्ट बता रहे हैं वजह

बच्चों से गलती होना एक आम बात है, मगर गलती पर बच्चों को डांटना और मारना सिचुएशन को असामान्य बना सकता है। आइए जानते हैं आपकी डांट का बच्चों पर हो सकता है क्या असर।
strict parents hone ke nuksaan
बच्चों के साथ एक सामान व्यव्हार रखें। चित्र शटरस्टॉक।
ज्योति सोही Updated: 23 Oct 2023, 09:13 am IST
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बच्चे एक ऐसा आईना है, जिसमें आपको खुद का प्रतिबिंब नज़र आता है। अगर आप रूड है, आउटस्पोकन है और गैर जिम्मेदार है, तो बच्चों से जिम्मेदारी की उम्मीद करना पूरी तरह से गलत है। आपको बात बात पर गुस्सा आता है, तो बच्चे भी उस राह पर अपने आप दौड़ने लगेंगे। बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए पहले आपको खुद को संभलना होगा। अक्सर हम लोगों को खुद में कोई कमी नज़र नहीं आती है। हमें लगता है कि हमसे बेहतर और कोई नहीं है। अगर आप बच्चों को एक समझदार और रिस्पॉसिब्ल व्यक्त्सि बनाना चाहती हैं, तो बच्चों के सामने गुस्सा करना छोड़ दें (Anger impact on kids )। आइए जानते हैं बच्चों के सामने गुस्स करने से क्यों बचना चाहिए।

इस बारे में पेरेंटिंग कोच डॉ पल्लवी राव चतुर्वेदी (Parenting coach Dr. Pallavi Rao Chaturvedi) का कहना है कि अगर आपको लग रहा है कि आप बहुत गुस्से में हैं, तो थोड़ा रूके और पानी पीएं। उसके बाद बच्चे के पास वापिस लौटें। ध्यान रखें कि आप बच्चे से बात कर रहे हैं, तो उनसे थोड़ा सा नरमी से पेश आएं और उन्हें समझने की कोशिश करेंआमतौर पर देखा गया है कि आपके गुस्से से प्रभावित होकर बच्चे अन्य लोगों के साथ वैसा ही व्यवहार करने लगेंगे।

इस सिचुएशन से बाहर आने के लिए बच्चों के सामने या उनपर गुस्सा करने से पहलें इन बातों का ख्याल रखें ।

Parents ki daant bachon par nakaratmak prabhav daalti hai
पेरेंटस की डांट का नकारात्मक प्रभाव बच्चे के अंदर कई प्रकार के डिसऑर्डर का कारण साबित हो सकता है। चित्र: शटर स्टॉक

1. एकाग्रता की कमी

बात बात पर गुस्सा करने का बच्चों पर गहरा प्रभाव नज़र आता है। वे न सिर्फ खुद को दूसरों से कम समझने लगते हैं बल्कि अन्य लोगों के साथ मिलने जुलने में भी उन्हें परेशानी झेलनी पड़ती है। स्कूल में कुछ भी पढ़ाए जाने पर वे ज्यादा देर तक याद नहीं रख पाते हैं। इसके अलावा दूसरों की बातों पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। दरअसल, दिमाग के एक कोने में पेरेंटस का गुस्सा और उनका बच्चों के प्रति व्यवहार बच्चों की पर्सनेलिटी को दबानग लगता है।

कैसे सुलझाएं समस्या

बच्चों के साथ कुछ वक्त पार्क में गुज़ारें। पढ़ाई के साथ साथ उसे कुछ वक्त अपने पसंदीदा एक्टिविटी में भी बिताने दें। कई बार रंग बच्चे के मानसिक विकस पर गहरा प्रभाव डालते हैं। उन्हें पेंटिंग करने दें, सिंगिग करने दें और कुछ वक्त डांसिग के लिए दे। इससे बच्चे के अंदर बैठा गुस्सा और दर्द रिलीज़ होने लगता है।

2. आत्मविश्वास कम होना

बच्चे को मारने से वो गलती करना तो नहीं छोड़गा, मगर उसका किसी गलत संगत से घिरने का खतरा ज़रूर बढ़ जाएगा। ऐसे बच्चे खुलकर बात करने से कतराते हैं और इच्छाओं को मन ही मन दबा लेते हैं। माता पिता का अनुचित व्यवहार उन्हें आगे बढ़ने से रोकता है। कई बार पेरेंटस ये समझ ही नहीं पाते हैं कि बच्चों के लिए लिए गए फैसलों में उनकी म़जूरी ज़रूरी है। इससे बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ता है और मेच्योर होने लगात है। उसको लगने लगता है कि ये काम मेरी जिम्मेदारी है। अगर आप बच्चों को दूसरों के सामने डांटेगे, मारेंगे और हर समय उनके लिए गलत शब्दों का प्रयोग करेंगे, तो वो जिद्दी बनेंगे और पहले से ज्यादा गलती करेंगे। साथ ही अन्य लोगों के सामने आने से भी कतराएंगे।

3. डिप्रेशन का शिकार

अब बच्चे के मन में हर छोटी बड़ी बात को लेकर डर बैठने लगता है। खुद को पहले से ही गलत समझने वाला बच्चा अब गुमसुम सा हो जाता है। ऐसे बच्चे अक्सर खुद को घर में कैद कर लेते हैं और परिवार के बाकी सदस्यों से भी कटे कटे रहते है। इसका असर उनकी आंखों, चेहरे और हेल्थ को देखकर भी लगाया जा सकता है। अंदर ही अंदर घुटन महसूस करने वाले बच्चों को डांटने या मारने से बच्चों की ग्रोथ पर उसका प्रभाव पड़ता है। बच्चे के वज़न से लेकर उसका शारीरिक विकास तक रूक जाता है।

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कैसे सुलझाएं समस्या

पहले पेरेंटस को बच्चों की समस्या को समझना चाहिए। साथ ही डॉक्टर की सलाह से किसी थैरेपी का सहारा भी लेना चाहिए।

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बच्चों के चिड़चिड़ेपन पर ध्यान दें। चित्र : शटरस्टॉक

4. रिस्पॉस न करना

ऐसे बच्चों से बार बार सवाल करने के बाद भी वे उत्तर देने के लिए तैयार नहीं होते हैं। उन्हें ऐसा लगने लगता है कि उनका गलत जवाब डांट या मार का कारण बन सकता है। वो अंदर ही अंदर जानते हैं कि उन्हें कोई बुला रहा है, मगर फिर भी आंसर देने के लिए वे तैयार नहीं हो पाते हैं। उन्हें एक हेल्दी एन्वायरमेट की ज़रूरत होती है।

कैसे सुलझाएं समस्या

ऐसे में पेरेंटस बच्चों के साथ दिनभर में से कम से कम एक घंटा साथ बिताएं और उनसे बातचीत करें। इसके अलावा स्टोरी रीडिंग भी बच्चे की मेंटल हेल्थ को मज़बूत करती है। छोटी छोटी अचीवमेंटस के लिए उन्हें पुरस्कृत करें। इससे उनके अंदर कुछ करने और जीतने की भावना पैदा होगी।

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लंबे समय तक प्रिंट और टीवी के लिए काम कर चुकी ज्योति सोही अब डिजिटल कंटेंट राइटिंग में सक्रिय हैं। ब्यूटी, फूड्स, वेलनेस और रिलेशनशिप उनके पसंदीदा ज़ोनर हैं। ...और पढ़ें

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