अनियमित खानपान और लाइफस्टाइल में आने वाले बदलाव इनफर्टिलिटी का कारण साबित होते हैं। ऐसे में गर्भवती होने का प्रेशर फैंटम प्रेगनेंसी यानि काल्पनिक गर्भावस्था का कारण बनने लगता है। मन ही मन खुद को प्रेगनेंट मानकर महिलाएं शारीरिक बदलावों को भी महसूस करने लगती है। मॉर्निंग सकिनेस और उल्टी समेत कई कारणों से महिलाओं में प्रेगनेंसी का दावा पुख्ता होने लगता है। मगर असल में वो प्रेगनेंसी नहीं होती है। जानते हैं फैंटम प्रेगनेंसी क्या है और इससे कैसे राहत पाएं।
अमेरिकन साइकेटरिक एसोसिएशन के अनुसार फैंटम प्रेगनेंसी को स्यूडोसाइसिस या काल्पनिक गर्भावस्था के रूप में जाना जाता है। ये वो स्थिति है जिसमें किसी महिला को महसूस होता है कि वह गर्भवती है, जबकि वह गर्भवती नहीं होती है। उन्हें गर्भावस्था के लक्षण जैसे मासिक धर्म का न आना, भ्रूण की काल्पनिक हरकतें प्रक्रिया और पेट का बढ़ना महसूस होता है, जब कि उसमें वास्विकता नहीं होती है।
इस बारे में मनोचिकित्सक डॉ युवराज पंत बताते हैं कि कइ बार मिसकैरेज का सामना करने के बाद महिलाओं को मेंटल प्रेशर का सामना करना पड़ता है, जिसके चलते वे फॉल्स प्रेगनेंसी का भ्रम पैदा कर लेती है। डिप्रेशन और तनाव की स्थिति में होने पर ये समस्या देखने को मिलती है। ऐसे में महिलाएं अपने आप कां संतुष्ट करने के लिए कल्पना करने लगती हैं। ऐसी स्थिति में परिवार वालों को न केवल उस महिला की समस्या को समझना चाहिए बल्कि मनोचिकित्सक से उचित इलाज भी करवाना चाहिए।
फैंटम प्रेगनेंसी को फॉल्स प्रेगनेंसी भी कहा जाता है। कई कारणों से महिलाएं इस समस्या का शिकार हो जाती है, जिससे वो चीजों को अपने मन मुताबिक मेनिफेस्ट करने लगती हैं।
वे महिलाएँ जो लंबे समय से गर्भधारण की कोशिश में जुटी रहती है, मगर कई हेल्थ कंडीशन्स के कारण सफल नहीं हो पाती है, उनमें फैंटम प्रेगनेंसी जोखिम बढ़ जाता है। खासतौर से वे महिलाएं, जिनकी रिप्रोडक्टिव लाइफ आखिरी चरम पर होती है उनमें इसकी संभावना बढ़ जाती है।
परिवार और रिश्तेदारों का दबाव सहन न कर पाने के कारण्र कुछ महिलाओं में फैंटम प्रेगनेंसी की समस्या बनी रहती है। इसके अलावा वे महिलाएँ जिनकी भावनाएँ गर्भावस्था के संबंध में बहुत गहरी होती है। वे भी कल्पना करने लगती हैं।
वे महिलाएँ जिन्होंने भ्रूण या बच्चे को खो दिया है, उनमें भी फैंटम प्रेगनेंसी की समस्या बनी रहती है। बच्चा पाने की तीव्र चाहत उनमें काल्पनिक प्रेगनेंसी को बढ़ा देती है। ऐसी अवस्था में उनके मन में गर्भावस्था का भ्रम पैदा होने लगता है।
कुछ महिलाएं, जो किन्हीं कारणों से गर्भ धारण नहीं करना चाहती है, उनमें भी ये समस्या बनी रहती है। अनियमित पीरियड और मॉर्निंग सिकनेस के कारण वो खुद को प्रेगनेंअ समझने लगती है। साथ ही हर पल खुद को असुरक्षित महसूस करती हैं।
वे महिलाएं, जो सिज़ोफ्रेनिया की शिकार होती हैं, उनमें फैंटम प्रेगनेंसी का डिल्यूज़न यानि भ्रम बना रहता है। इस समस्या से ग्रस्त महिलाओं में ये सोमेटिक डिल्यूज़न सामान्य तौर पर देखने को मिलता है। वेटगेन और ब्रेस्ट टेंडरनेस को वे गर्भावस्था से जोड़कर देखने लगती हैं।
कॉग्नीटिव बिहेवियरल थेरेपी यानि सीबीटी की मदद से व्यक्ति अपनी समस्या को बताता है और तनाव से राहत मिलती है। इससे सिज़ोफ्रेनिया के लक्षणों को दूर करके तनाव से राहत मिल जाती है और महिलाओं में बढ़ने वाली काल्पनिक गर्भावस्था की समस्या हल हो जाती है।
परिवार और पार्टनर की मदद से फैंटम प्रेगनेंसी का जोखिम कम हो जाता है। इसमें महिला मन ही मन खुद को गर्भवती मान लेती है। कई बार पारिवारिक दबाव भी इस समस्या को बढ़ा देता है। ऐसे में पार्टनर का सहयोग इस समस्या को हल कर देता है।