चिंता, भय, तनाव आदि से हमारा दिमाग प्रभावित होता है। पर हमारा शरीर भी उन्हें स्टोर करता है। शरीर किसी भी प्रकार के आघात या मनोभावों को याद रखता है। यदि इन्हें फ्री नहीं किया गया, तो मानसिक समस्या के साथ-साथ शारीरिक समस्याएं भी हो सकती हैं। कुछ लोगों को इसके प्रभाव से शरीर में दर्द कर सकता है। कई तरह की तकनीक है, जो शरीर में स्टोर हुए मनोभावों को मुक्त करने में मदद करता है। इनमें से एक है सोमेटिक थेरेपी या दैहिक मनोचिकित्सा। मन और शरीर को स्वस्थ रखने में यह थेरेपी (Somatic Therapy) कारगर है।
मनस्थली संस्था की फाउंडर और सीनियर साइकोलोजिस्ट डॉ. ज्योति कपूर बताती हैं, ‘सोमेटिक थेरेपी या दैहिक मनोचिकित्सा मन और शरीर के संबंध पर आधारित होता है। सोमा यानी शरीर से संबंधित। इसमें विशेष तकनीक के माध्यम से थेरेपिस्ट किसी भी दबे हुए आघात को मुक्त करने में मदद करता है, जो शरीर में फंसा होता है। भारत में लंबे समय से मन-शरीर के संबंध का इलाज किया जाता रहा है।’
दैहिक चिकित्सा में मनोविज्ञान के लिए शरीर पर काम किया जाता है। इसमें मन और शरीर के बीच लगातार चलने वाले फीडबैक लूप पर प्रमुख रूप से काम किया जाता है। यह विशिष्ट मनोचिकित्सा टॉक थेरेपी से अलग है। नियमित मनोचिकित्सा में केवल मन को शामिल किया जाता है। सोमेटिक थेरेपी में शरीर को उपचार का मूल बिंदु बनाया जाता है।
डॉ. ज्योति कपूर बताती हैं, ‘शरीर के अंदर किसी व्यक्ति की नकारात्मक भावनाएं जैसे कि किसी दर्दनाक घटना के दौरान किये गये अनुभव बंद रह सकते हैं। यदि इन भावनाओं को समय के साथ बाहर नहीं निकाला जाता है, तो नकारात्मक भावनाएं मनोवैज्ञानिक विकारों या शारीरिक समस्याओं, जैसे गर्दन या पीठ दर्द में बदल सकती हैं।
क्रोनिक दर्द उन लोगों में बहुत आम होता है, जिनमें पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) डायग्नूज किया जाता है। भावनात्मक और स्वास्थ्य और वेलनेस पर असर डालने वाले दबे हुए तनाव को दूर करने के लिए मन-शरीर तकनीकों का इसमें उपयोग किया जाता है। इन तकनीकों में सांस लेने के व्यायाम, ध्यान, नृत्य और शारीरिक गतिविधि के कई रूप शामिल हो सकते हैं।’
डॉ. ज्योति कपूर के अनुसार, मन और शरीर आंतरिक रूप से जुड़े होते हैं। किसी दर्दनाक घटना के कारण नर्वस सिस्टम प्रभावित हो सकता है। कोर्टिसोल जैसे स्ट्रेस हार्मोन लगातार जारी होते रहते हैं। इससे ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर में वृद्धि होती है। इससे प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो सकती है। जब शरीर लगातार हाई लेवल के तनाव में रहता है, तो शारीरिक लक्षण (Somatic Therapy) भी दिखाई देने लगते हैं।
कुछ लोग ‘मैं एक बुरा व्यक्ति हूं’ या ‘मैं कभी सफल नहीं हो सकता’ जैसे नकारात्मक बातें बोलते रहते हैं।ये नकारात्मक भावनाएं सिर्फ शरीर में छिपी नहीं रहतीं, वे अक्सर उभरती रहती हैं। जिन लोगों ने किसी ट्रॉमा का अनुभव किया है, उनमें शारीरिक लक्षण अधिक दिख सकते हैं। सोमेटिक थेरेपी इन भावनाओं पर काम कर ठीक करती है।
इस चिकित्सा में शरीर को जागरूक करने (Somatic Therapy) का काम किया जाता है। इससे शरीर से तनाव मुक्त होता है। व्यक्ति शरीर में तनाव के क्षेत्रों को पहचानना सीखता है। साथ ही विचारों और भावनाओं को शांत करना भी सीखता है। इसमें शरीर और मन को पृथ्वी से जुड़ने को महसूस कराया जाता है। पैरों को ज़मीन पर महसूस कराने से तंत्रिका तंत्र शांत होती है।
व्यक्ति के अंदर दबी हुई ऊर्जा को बाहर निकालने का काम कराया जाता है। चिकित्सा के अंतिम चरण में व्यक्ति शरीर में किसी भी परिवर्तन का निरीक्षण कर पाता है। शारीरिक संवेदना का अनुभव करने के बाद तनाव की संवेदनाएं शरीर से निकलने लगती हैं। सुरक्षित महसूस कराने के लिए रिश्ते, व्यक्तित्व की ताकत यहां तक कि पसंदीदा होलीडे प्लेस की भी मदद ली जाती है।
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