सभी माता पिता बच्चों को प्यार और दुलार से पाल पोसकर बड़ा करते है। उनकी सभी इच्छाओं को पूरा करने में कोई कमी नहीं छोड़ते है और हर मकाम पर उन्हें विनर बनने के लिए ही प्रेरित करते है। अब लगातार एक के बाद एक जीत हासिल करने के बाद अगर एक दिन बच्चा जीवन के किसी मकाम पर विफल हो जाता है, तो वो उस चुनौती का सामना नहीं कर पाता। दरअसल, वो परिस्थिति में वक्त खुद को लूज़र समझने लगता है और मन ही मन अपनी कमियों के लिए अपने आप कोसने लगता है।
ऐसे में माता पिता बच्चे को दोषी बना देते हैं, जिससे बच्चे का मनोबल पूरी तरह से गिर जाता है। मगर सही मायनों में माता पिता की गलती के चलते बच्चा विफलता को सहन नहीं कर पाता है। जानते हैं किन टिप्स की मदद से पेरेंटस बच्चे को विफलता स्वीकार करने के लिए (fear of failure in kids) तैयार कर सकते हैं।
इस बारे में मनोचिकित्सक डॉ युवराज पंत बताते हैं कि वे बच्चे जिनका कोई सोशल सर्कल नहीं होता है, वे हार को स्वीकार नहीं कर पाते हैं। हार जैसी स्थिति का सामना करने के लिए बच्चे को फेलियर के महत्व की जानकारी देने से लेकर उसे चुनौती के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार करना आवश्यक है। अक्सर माता पिता बच्चे को हारता देखकर उसे डांटने या मारने लगते है। माता पिता के अग्रेसिव व्यवहार से बच्चा सहम जाता है और निराश होने लगता है। ऐसे में बच्चे को समय देकर उसे विपरीत परिस्थितियों से लड़ना सिखाएं और जीत की नीति तय करें।
येल यूनिवर्सिटी अमेरिका की एक रिसर्च के मुताबिक बच्चे पर सफल होने का दबाव माता पिता बढ़ाने लगते है। अब बच्चा उस दबाव में स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद कॉलेज में कदम रखता है। इसी प्रकार नौकरी के दौरान भी ये जंग जारी रहती है। जीवन के किसी मकाम पर जब सफलता नहीं मिल पाती है, तो बच्चे उस सिचुएशन का सामना नहीं कर पाते हैं और खुद को नुकसान पहुंचाने लगते है।
पढ़ाई के अलावा बच्चे के लिए दोस्तों के साथ बातचीत करना और समय बिताना भी बेहद ज़रूरी है। इससे बच्चा अपने जीवन में आने वाली मुश्किलों को अन्य बच्चों के साथ साझा करके उसे हल करने की कोशिश करता है।
जीवन में मिलने वाली असफलता एक मार्गदर्शन के रूप में कार्य करती है। बच्चे को इस बात की जानकारी अवश्य दें कि फेलियर मिलने के बाद ही व्यक्ति अपनी कमियों को जानकर आगे बढ़ सकता है और मनचाहा मकाम हासिल कर सकता है।
बच्चों को इस बात की जानकरी दें कि अपनी गलतियों से हताश होने की जगह उससे सीखकर आगे बढ़ें। साथ ही असफल होने के बाद निराश होकर बैठने की जगह समाधान की तलाश में जुट जाएं। इससे व्यक्ति समयपर अपने सभी कार्यों की पूति कर सकता है।
सफलता और विफलता दोनों की जीवन के अहम पहलू हैं। ऐसे में बच्चे को गलती से शिक्षा लेने के लिए प्रेरित करें। मगर बच्चे पर अपना गुस्सा ज़ाहिर करने से बचें। डांट या फटकार की जगह बच्चे को उदाहरण देकर उसकी गलती से अवगत करवाएं और जीवन में आगे बढ़ने के लिए भी प्रेरित करें।
फेलियर से परेशान बच्चे को जीवन के लिए प्रोत्साहित करें। इसके लिए बच्चे के साथ मिलकर उसकी मुश्किलात को हल करें। साथ ही जीत की नीति तय करने में भी उसकी मदद कर। इसके लिए उसे खेल खेल में हराकर फिर जीत दिलाएं। इससे बच्चा जीत का महत्व और इसके लिए की जाने वाली मशक्कत दोनों का ही महत्व भलीभांति समझने लगता है।
नकारात्मक विचारों से दूर रहने के लिए बच्चों का मानसिक रूप से मज़बूत होना आवश्यक है। उन्हें हर परिस्थिति का सामना करने के योग्य बनाएं। इससे बच्चा बहुत जल्द तनाव, एंग्ज़ाइटी और डिप्रेशन का शिकार होने से बच सकता है। वे आसानी से अपनी समस्याओं को खुद सुलझाने लगते है। इससे उनका मानसिक विकास तेज़ी से होने लगता है।
बिना मांगे बच्चों की सभी डिमांड पूरी करने से उन्हें चीजों की अहमियत का अंदाज़ा नहीं हो पाता है। ऐसे में उनका व्यवहार मनमाना होने लगता है। इससे न केवल बच्चे डिमांडिंग होने लगते है बल्कि हार को स्वीकार करना भी पंसद नहीं करते हैं।
उनकी सोच को परिपक्व बनाने के लिए उन्हें हर कार्य के लिए पहले कोशिश करना सिखाएं। ताकि वे जान सकें कि किसी भी मंज़िल को पाने के लिए मुश्किल डगर का सामना करना पड़ता, जिससे उन्हें हर मुश्किल का डटकर सामना करने की आदत होने लगेगी।