बच्चों की परवरिश और उसका पर्सनेलिटी डेवलपमेंट पेरेंट्स के लिए कठिन लेकिन सबसे जरूरी काम है। खास तौर से किशोरावस्था की ओर बढ़ रहे बच्चों की मेंटल और फिजिकल हेल्थ। कई बार तो हम जान ही नहीं पाते हैं कि वह दैनिक जीवन में किसी परेशानी से जूझ रहा है। यदि उसे किसी तरह की शारीरिक परेशानी है, तो उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले जाया जा सकता है। यदि उसे किसी साइक्लोजिस्ट की जरूरत होती है, तो कई बार पेरेंट्स अनदेखा भी कर जाते हैं। हमें यह लगता है कि थोड़े दिनों बाद समस्या अपने-आप ठीक हो जाएगी, जबकि ऐसा नहीं होे पाता है। असल में वयस्कों की तरह ही बच्चों की मेंटल हेल्थ पर भी खुलकर बात करना जरूरी है।
यहां हम उन मिथ्स (Myths about child mental health) के बारे में बात कर रहे हैं, जिनके कारण बच्चों की मेंटल हेल्थ से जुड़े मुद्दे इग्नोर होते रहते हैं।
किसी भी पेरेंट्स के लिए बच्चों के मेंटल हेल्थ से जुड़े मिथ्स और उसके फैक्ट्स को जानना बहुत जरूरी है। इन्हें जानने के लिए हमने बात की सीनियर क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट और अनन्या चाइल्ड डेवलपमेंट सेंटर की डायरेक्टर डॉ. ईशा सिंह से।
डाॅ. ईशा सिंह बताती हैं, बच्चों के मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्याएं अक्सर बच्चों के आक्रामक और बुरे व्यवहार से दिखने लगती हैं। लेकिन सदियों से चली आ रही बातों के दबाव, शर्म, लापरवाही और गलतफहमी के कारण हम उनके व्यवहार को अनदेखा करते रहते हैं, जबकि हमें उनका निदान तलाशना चाहिए।
फैक्ट: ईशा बताती हैं, मनोरोग या मनोवैज्ञानिक विकार किसी भी दूसरी स्वास्थ्य समस्या की तरह है। किसी भी तरह से बच्चे के मेंटल हेल्थ से जुड़े मुद्दे को अनदेखा करना, उसके उज्जवल भविष्य के लिए सही नहीं है।
बच्चे की कमियों-परेशानियों को पहचानने, सही डायग्नोसिस प्राप्त करने और निदान शुरू करने से बच्चे की बीमारी के लक्षणों पर काबू पाया जा सकता है और आगे चलकर वह स्वस्थ वयस्क के रूप में विकसित हो सकता है।
फैक्ट: कई कारणों से बच्चे एग्रेसिव वर्बल और नन वर्वल व्यवहार प्रदर्शित करते हैं। गुस्सा या भयभीत होने पर उनका ऐसा व्यवहार हो सकता है। कभी- कभी अपनी पीड़ा को व्यक्त करने के लिए भी ऐसा करते हैं। इससे बच्चे के आसपास के ज्यादातर लोगों को बच्चे के व्यक्तित्व से मेंटल हेल्थ को अलग कर देखना मुश्किल हो जाता है।
हम वयस्क हैं, इसलिए बच्चे के साथ किसी भी प्रकार की बात कहने या करने से पहले हमें खुद को यह याद दिलाने की जरूरत है कि किसी मनोवैज्ञानिक स्थिति के कारण बच्चा इस तरह का है। वास्तव में वह ऐसा नहीं है। याद रखें कि अभी-भी आपका बच्चा आसपास की दुनिया को सीखने-समझने वाली फेज में है।
फैक्ट: न्यूरोलॉजिकल बेसिस के कारण बच्चों के साथ-साथ वयस्कों में किसी भी प्रकार का मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम होता है। मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम से जूझ रहा बच्चा अपने माता-पिता या आसपास के लोगों के साथ जो रिलेशनशिप शेयर करता है, उसके लिए माता-पिता को दोष नहीं दिया जा सकता है। यह संभव है कि इस तरह के बच्चों की समस्या का निदान करने और अच्छी तरह से देखभाल में पेरेंटिंग एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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कस्टमाइज़ करेंफैक्ट: मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम एक मेडिकल कंडीशन है, जिसे बिहेवियरल थेरेपी या दवा या फिर दोनों की मदद से ठीक किया जा सकता है। यह एक गंभीर रोग है, जो बच्चे के जीवन के सभी पहलुओं को प्रभावित कर सकता है।
डेवलपमेंट फेज में बच्चे यह समझ नहीं पाते हैं कि उसके साथ क्या हो रहा है। उनके पास इस कठिन स्थिति का प्रबंधन करने के लिए पर्याप्त कौशल या अनुभव नहीं है। इसलिए पेरेंट्स को बच्चे का जल्द से जल्द सही इलाज शुरू कर देनी चाहिए।
फैक्ट : जब बच्चे की समस्या उसके व्यवहार से दिखने लगती है, तो बिहेवियरल थेरेपी की आवश्यकता और महत्व आसानी से समझी जा सकती है। साक्ष्यों पर आधारित ट्रीटमेंट प्रोग्राम उन विचारों, भावनाओं और कार्यों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो बच्चों में इस तरह के व्यवहार केे लिए जिम्मेदार हैं।
यह किसी भी बिहेवियरल थेरेपी का मूल है। इसमें बच्चें के सोचने, महसूस करने और फिर कार्य करने के पैटर्न की पहचान की जाती है और उसी अनुसार इलाज भी किया जाता है।
अंत में बच्चे के मेंटल हेल्थ से जुड़े प्रॉब्लम की पहचान और उसका जल्दी से निदान, बच्चे के भविष्य के लिए बेहतर है।