मानसिक समस्याओं के बहुत सारे कारण हो सकते हैं। सबसे बड़ा कारण होता है – ट्रॉमा यानी आपके जीवन में कुछ ऐसा घटना, जिसकी उम्मीद आपने नहीं की थी। लेकिन इस ट्रॉमा के बीतने के बाद भी हमारा दिमाग़ कई बार इसकी जद में होता है और ट्रॉमा के लक्षण (signs of trauma) दिखते हैं। वे लक्षण क्या हैं जो किसी ट्रॉमा की देन हो सकते हैं और इनसे निपटने का सही तरीका क्या है। आज विस्तार से समझेंगे।
अमेरिका की पेंसिलवेनिया में साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर सबीना मॉरो ने साइकी सेंट्रल की एक रिपोर्ट में कहा है कि ट्रॉमा का शिकार होना तो दुर्भाग्य है ही लेकिन उसके असर सबसे बड़े दुर्भाग्य हैं। कई बार लोग ट्रॉमा को डिनाई करने लगते हैं जो शॉर्ट टर्म के लिए तो ठीक है लेकिन यही डिनायल कई बार ट्रॉमा के असर को बढ़ा देता है। मैं बहुत मजबूत हूँ, कुछ हुआ ही नहीं है – ऐसा मानने वाले लोग लोगों से बातचीत भी नहीं करते और अपनी समस्याएं भी नहीं बताते जिसकी वजह से उनमें पोस्ट ट्रॉमा समस्याओं के लक्षण बढ़ जाते हैं।
साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर हेमंत छाबड़ा के अनुसार, एन्जाइटी और स्ट्रेस वे पहले रिएक्शन (signs of trauma) हैं जो किसी भी ट्रॉमा के बाद आते हैं। दरअसल किसी भी अनचाही स्थिति से गुजरने के बाद लोग अपनी भावनाएं दबाने लगते हैं जिसकी वजह से उन्हें ये परेशानियाँ होती हैं। ये समस्याएं आपको रोज घबराहट, भविष्य को लेकर असुरक्षा जैसी दिक्कतों से भर देती हैं और आप अपने रोज के काम भी ठीक ढंग से नहीं कर पाते। कई बार ये समस्याएं एक लेवल आगे बढ़ कर डिप्रेशन में बदल सकती हैं और आप लंबे समय के लिए इस समस्या से जूझते हैं।
किसी भी समस्या से बचने का तरीका ये है कि सबसे पहले उसे स्वीकार करें। ऐसी समस्याओं में अक्सर लोग बातचीत से परहेज करते हैं जो समस्याओं को और बढ़ाता है। अपनी बातें दूसरों से शेयर कीजिए। नियमित ध्यान, योग और व्यायाम से भी तनाव कम होता है।
इमीडिएट राहत पाने के लिए गहरी और लंबी सांसें लेने का तरीका बहुत कारगर है। हां अगर ये समस्या लंबे समय से है तो आप डॉक्टर की मदद लेने से हिचकिए मत।
ट्रॉमा के अनुभव के बाद लोग अक्सर खुद को कमतर समझने लगते हैं। वे अपनी क्षमताओं को नकारने लगते हैं और उन्हें लगने लगता है कि वे किसी काम के लिए सक्षम नहीं रहे। ये आदत अक्सर किसी ट्रॉमा का ही रिएक्शन होती है लेकिन बाद में यह बड़ी समस्या बनती जाती है।
डॉक्टर हेमंत के अनुसार, ऐसे लोगों को यह यकीन दिलाने की जरूरत है कि वे कहीं से कमतर नहीं हैं। अगर आपके किसी दोस्त के साथ ऐसा हो रहा है तो उन्हें बार बार प्रेरित करें। और अगर ऐसा आपके साथ हो रहा है तो आप खुद से बात करें और खुद को एहसास दिलाएं कि आप महत्वपूर्ण हैं। खुद से प्यार और अपनी अच्छाइयों को समझ कर ही समस्या से लड़ा जा सकता है।
कई बार ट्रॉमा के बाद लोग समाज से कटने लगते हैं और अपनी समस्याओं को दूसरों से शेयर करने से बचते हैं। ये भी ट्रॉमा के लक्षणों (signs of trauma ) में से एक है।
डॉक्टर हेमंत कहते हैं कि ऐसे मरीजों के साथ होता ये है कि वे दूसरों के सामने अपनी कमजोरियों को दिखाना नहीं चाहते। और फिर वो खुद को आइसोलेट कर लेते हैं। ये समस्या आगे चलकर अवसाद में बदल सकती है।
ऐसी आदतों में इलाज एकाएक नहीं हो सकता। आप चाह कर भी इसे तुरंत नहीं बदल सकते। छोटे-छोटे स्टेप्स लेकर ही आप इससे बच सकते हैं। शुरुआत अपने करीबी लोगों से करें। उन्हें अपनी समस्या बताएं और उनकी बातें सुनें और इस तरह से धीरे धीरे सर्किल बढ़ाते जाइए। फिर भी अगर कोई राहत नहीं मिल रही तो प्रोफेशनल की मदद लेनी जरूरी है।
कभी-कभी ट्रॉमा की प्रतिक्रिया (signs of trauma) ज्यादा गुस्से के तौर पर सामने आती है। कई बार यह गुस्सा इतना बढ़ जाता है कि इसे कंट्रोल नहीं किया जा सकता। इससे पीड़ित व्यक्ति के रिश्तों में भी दरार आ जाती है और ट्रॉमा का ये असर बढ़ता जाता है।
इसका बचाव यही है कि आपको गुस्से को सही तरीके से व्यक्त करने का तरीका ढूँढना चाहिए। गुस्सा आने पर उसे कंट्रोल करने के तरीके ढूँढने होंगे। गहरी सांसें लेना ऐसी स्थिति में सबसे अच्छा विकल्प है। कई बार डॉक्टर ऐसे मरीजों को उलटी गिनती करने को भी कहते हैं।
इस आदत को परमानेंट कम करने के लिए मेडिटेशन, योग अच्छे विकल्प हो सकते हैं। अगर आपको लग रहा कि स्थिति काबू से बाहर है तो डॉक्टर की मदद लें क्योंकि कई बार ऐसे लोग खुद को नुकसान पहुंचा लेते हैं।
कभी-कभी लोग अपने मानसिक तकलीफों को छिपाने के लिए शराब या और तरह के नशे का सहारा लेते हैं। यह एक प्रकार का आत्म-उपचार (self-medication) होता है, लेकिन यह आदत धीरे-धीरे एक गंभीर समस्या बन सकती है। यह भी एक ट्रॉमा की प्रतिक्रिया (signs of trauma) हो सकती है, जहां व्यक्ति अपने दर्द और भावनाओं से बचने के लिए नशे का सहारा लेता है।
इस आदत से बचने के लिए सबसे पहले यह स्वीकार करना जरूरी है कि आप अपनी तकलीफ को छिपाने के लिए नशे का सहारा ले रहे हैं। ये स्वीकार कर आप प्रोफेशनल की मदद लीजिए। जैसे कि काउंसलिंग या थेरेपी। धीरे-धीरे इस आदत को छोड़ने के लिए छोटे कदम उठाएं और जैसा भी एक्ससपर्ट कहे उसे मानिए।
ट्रॉमा के बाद अक्सर व्यक्ति सब कुछ ठीक करने की कोशिश करते हैं जो जरूरी भी है लेकिन इस राह में अक्सर लोग परफेक्शन की तलाश में पड़ जाते हैं। हर काम में परफेक्शन जो अच्छा गुण हो सकता है लेकिन उनके लिए ये तकलीफ बन जाता है क्योंकि परिणाम मन मुताबिक ना मिलने की स्थिति में वे गहरे अवसाद में जा सकते हैं।
इससे बचने के लिए, खुद से यह सवाल पूछें कि क्या वास्तव में सब कुछ परफेक्ट होना जरूरी है। अपनी क्षमता को जानना बेहतर ऑप्शन है। और किसी भी काम के प्रति खुद को लचीला बनाना जरूरी है। किसी काम में गलती होना कोई अपराध नहीं है, इसे बार बार दोहराते रहिए और अपना काम करते रहिए।
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