मोटापा और मानिसक स्वास्थ्य हमेशा साथ पाए जाते हैं और इन्हें अक्सर जुड़वा बीमारी भी कहा जाता है। ऐसा देखा गया है कि मानसिक स्वास्थ्य के बिगड़ने पर मोटापा आ जाता है या मोटापे के आने पर मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है।
ऐसे मरीज जो मोटापे से जूझ रहा हैं, अक्सर उनके साथ वजन के नाम पर पक्षपात किया जाता होता है। समाज उन्हें नकारात्मक तरीके से देखता है और उन्हें कमजोर करार देता है।
उन्हें दिखावे के आधार पर आंका जाता है ना कि उनकी काबलियत के आधार पर। उनको हमेशा ही टोका जाता है और न चाहते हुए भी उन्हें लोगों से उनके वजन और शरीर के बारे में सलाह लेनी पड़ती है। इससे उनके ऊपर गलत प्रभाव पड़ता है और वो डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं। ऐसा देखा गया है कि मोटापे के कारण पुरुषों से ज्यादा औरतें डिप्रेशन का शिकार हो रही हैं।
कोविड 19 ने मोटापे के स्तर को बढ़ा दिया है जिससे मानसिक स्वास्थ्य की परेशानी भी बढ़ गयी है।
कोविड 19 की महामारी के दौरान, सोशल डिस्टेंसिंग के नियम के कारण मोटापे से ग्रस्त मरीज घर पर रहने के लिए मजबूर हो गए हैं। इसकी वजह से ऐसे मरीजों की जिंदगी में स्ट्रेस और भी ज्यादा हो गया है।
इसकी वजह से वो ज्यादा खा रहे हैं जिसके कारण उनका और वजन बढ़ रहा है। आज के समय में सोशल मीडिया मोटापे से जुड़े मीम से भरा हुआ है। जो इस बात को बढ़ावा दे रहा है कि मोटापे के मरीज आलसी होते हैं और उनमें दृढ़ निश्चय करने की ताकत नही होती।
ऐसे वजन के आधार पर पक्षपात होने से देखा गया है कि इसका मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ा है, डिप्रेशन के केस बढ़ गए हैं साथ ही ऐसी और भी के दिक्कतें आ रही है।
ऐसे लोग जो खराब मानसिक स्वास्थ्य से गुज़र हैं उन पर मोटापा डेवलप कर लेने का खतरा होता है। ऐसे पाया गया है कि इन्सुलिन रेजिस्टेंस और मेटाबोलिक सिंड्रोम, शीज़ोफ्रेनिया से जुड़े हुए होते हैं। बहुत सी मानसिक बीमारियों की दवा वजन बढ़ाती है।
मानसिक विकार संबंधित होता है कम्फर्ट ईटिंग से, हेल्दी खाना न खाने से, और फूड अडिक्शन से। ऐसे मरीजों का वजन बढ़ने से उनकी मानसिक स्वास्थ्य पर और बुरा असर होता है और एक विसियस साईकल बन जाती है।
ये पता होना जरूरी है कि मोटापा सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित नहीं करता बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। जब कोविड 19 हम सब की जिंदगी में मुश्किलें ला रहा है, इस वक़्त बहुत ज़रूरी है की हम एक ऐसा सिस्टम बनाएं जो मरीजों की मदद करे।
हमे टेक्नोलॉजी का इस कदर उपयोग करना होगा जिससे हम सभी को पॉजिटिव मैसेज दे सकें, अपने मरीजों को ऑनलाइन प्रोत्साहित कर सकें और सोशल मीडिया मेसेजिंग की टोन बदल सकें।
साथ ही साथ हमे खुद को और अपने आस पास के लोगों को शिक्षित करने की जरूरत है जिससे हम आत्म करुणा को सिख सकें।
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