टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी का संकेत है भावनाओं का दबाना, अगर आपके पार्टनर में हैं ये 4 लक्षण, तो उन्हें मदद की जरूरत है
अंदर क्या है
- टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी के लक्षण
- टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी का असर
- टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी से बचाव
टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी जैसा शब्द हमारे लिए नया नहीं है। आए दिन हमारे आस-पास के लोगों में ऐसी आदतें या ऐसे लक्षण दिख ही जाते हैं जो दूसरों को असहज करते हैं, खासकर महिलाओं को। मोटे तौर पर यह भाव खुद को या मर्द ज़ात को श्रेष्ठतम और दूसरों को कमतर दिखाना ही होता है। लेकिन ऐसा कर के वे सामने वाले को तो मुश्किल में डालते ही हैं। खुद के मेंटल हेल्थ के लिए भी गहरा कुआं बना रहे होते हैं। आज हम यही समझने वाले हैं कि टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी के बड़े लक्षण क्या हैं और कैसे ये न सिर्फ महिलाओं के लिए खतरा है बल्कि ये उन पुरुषों के लिए भी उतना ही बड़ा खतरा है जो इसे परचम की तरह ओढ़े घूम रहे हैं।
टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी के लक्षण (Signs of toxic masculinity)
1. भावनाओं को दबाना
सबसे पहली बात (Signs of toxic masculinity) यह है कि टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी पुरुषों को अपनी भावनाओं को छुपाने की सलाह देती है। जैसे, अगर किसी पुरुष को दुख या डर महसूस होता है, तो उसे ये बताना कि वह इसे छुपाए। आपसे अक्सर सुना होगा “मर्द को रोना नहीं चाहिए”? यही वो सोच है जो इस मानसिकता को बढ़ावा देती है।
जब पुरुष अपनी असल भावनाओं को दबाते हैं, तो अंदर ही अंदर उनका मानसिक दबाव बढ़ता है। ऐसा करके वे खुद को ही नुकसान पहुंचाते हैं। और ये झूठा मर्दवाद उनके लिए ही टॉक्सिक बनता जाता है।
2. हमेशा जीत चाहना (Signs of toxic masculinity)
एक और चीज है – हमेशा जीतने का दबाव। टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी के तहत पुरुषों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे हर स्थिति में जीतें, हर क्षेत्र में सबसे अच्छे बनें, और कभी हार न मानें।
ऐसी स्थिति (Signs of toxic masculinity) में कई बात चीजें उस हद तक भी जाती हैं जहां जान लेने और देने तक पर भी बात आ जाती है। यही भावना जब जन्म लेती है तब किसी से मदद क्यों लूँ, मैं किसी से हार नहीं सकता जैसी चीजें भी सामने आती हैं। इसका असर सीधे तौर पर उनके मेंटल हेल्थ पर पड़ता है।
3. दूसरे जेंडर्स पर असर (Signs of toxic masculinity)
यह मानना ग़लत है कि ये जहर केवल पुरुषों तक ही सिमटा रहता है। इसी वजह से समाज में जेंडर इनिक्वलिटी भी जन्म लेती है। इसी के जरिए पुरुषों को यह भी बताया जाता है कि महिलाओं पर कंट्रोल रखें। महिलाओं को हमेशा कमजोर समझना भी इसी मानसिकता का हिस्सा है। इसी वजह से यह दूसरों के जीवन पर भी असर डालता है और फिर ऐसे व्यक्तियों को किसी भी रिश्ते में भी तकलीफ होती है।
4. शारीरिक बनावट का दबाव (Signs of toxic masculinity)
यह मान (Signs of toxic masculinity) लिया गया है कि पुरुषों की शारीरिक बनावट हमेशा मजबूत होनी चाहिए। मसल्स वाले ही पुरुष ही आइडियल पुरुष हैं, जबकि ये भी टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी के ही दायरे में आता है।
इस के सबसे ज्यादा शिकार भी पुरुष ही होते हैं क्योंकि इस ढांचे में फिट न होने की वजह से उन पर अतिरिक्त मेंटल प्रेशर हावी हो जाता है। इससे कई बार गंभीर बीमारियां जैसे जैसे एनोरेक्सिया या बॉडी डिसमॉर्फिया भी जन्म ले लेती हैं। इस वजह से पीड़ित अपनी ओरिजिनल छवि को स्वीकार नहीं पाते और वे कैसे दिख रहे हैं, इसको लेकर इनसिक्योर रहते हैं।
टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी का असर (Impacts of toxic masculinity)
1. मानसिक स्वास्थ्य पर असर (toxic masculinity Affects mental health)
स्कॉलर कॉमन्स नाम की एक संस्था की रिपोर्ट बताती है कि इसका असर सबसे ज्यादा उनके अपने मेंटल हेल्थ पर पड़ता है जो ऐसी मानसिकता (Signs of toxic masculinity) के शिकार हैं। ऐसे वाक्य कि पुरुष को भावुक नहीं होना चाहिए, या उन्हें मदद नहीं माँगनी चाहिए। इन्हीं की वजह से इमोशन्स को कंट्रोल करने की कोशिश में लोग लग जाते हैं और इसके नतीजे मानसिक समस्याओं के तौर पर सामने आते हैं।
ऐसी मानसिकता से ग्रस्त लोग कई बार ऐसे वक्त में भी मदद मांगने से बचते हैं जब उन्हें वाकई मदद की जरूरत होती है और फिर इसका नतीजा डिप्रेशन, एंजाइटी या फिर कोई और मानसिक समस्या के तौर (Signs of toxic masculinity) पर दिखाई देता है। कई बार इसके असर आत्महत्या तक भी जा सकते हैं।
2. सामाजिक संबंधों पर असर
खुद को सुपर समझने की आदत की बुरी बात यह है कि ये आपको कम सोशल भी कर सकती है। अगर आप किसी से मदद न मांगें, ना किसी से बात करें तो कौन आपसे जुड़ना चाहेगा। टॉक्सिक टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी ऐसी ही एक चीज है। आप से महिलाएं तो खासकर कतराएंगी जिन्हें आप अपने से नीचे या कमतर समझेंगे। फिर ये कि ऐसे आदमी को कौन अपना दोस्त बनाना चाहेगा जिसे अपने इमोशन्स को व्यक्त करने की बजाए ये सिखाया गया हो कि तुम मर्द हो और अपने इमोशन्स काबू में रखो।
3. जेंडर इनीक्वालिटी को बढ़ावा
और फिर टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी समाज में लैंगिक असमानताएं भी बढ़ाती है। जब पुरुषों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे सख्त और महिलाओं या किसी अन्य जेंडर के लोगों पर कंट्रोल रखें, तो इसका असर महिलाओं पर भी पड़ता है। यह सोच पुरुषों को यह सिखाती है कि वे महिलाओं को नियंत्रित करें और उन्हें कमजोर समझें।
और इसी वजह से कई बार वर्क प्लेस पर या फिर घरों में भी महिलाओं को इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं। वेब एमडी की एक रिपोर्ट कहती है कि यह मानसिकता कई बार घरेलू हिंसा तक जाती है। सामाजिक तौर पर भी महिलाओं के साथ हो रही हिंसा का भी एक बड़ा कारण टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी बनती है।
कैसे बचा जा सकता है इस ‘बीमारी’ से (treatment of toxic masculinity)
1. संवेदनशीलता को प्रोत्साहित करना
पुरुषों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का अवसर देना बहुत महत्वपूर्ण है। समाज को यह सिखाने की जरूरत है कि यह कोई कमजोरी (Signs of toxic masculinity) नहीं है, बल्कि यह ताकत की निशानी है कि आप अपनी असल भावनाओं को स्वीकार और व्यक्त कर पा रहे हैं। यह बार बार बताते रहना होगा कि एक अच्छे मेंटल हेल्थ के लिए आपको अपने इमोशन्स को जाहिर करने होंगे वरना आप एक मानसिक रूप से बीमार जाएंगे।
2. परिभाषा बदली जाए
टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी को बदलने के लिए हमें पुरुषत्व की परिभाषा (Signs of toxic masculinity) को फिर से गढ़ने की जरूरत है क्योंकि ये सब कुछ वहीं से शुरू हुआ है जहां ये माना जाता है कि अगर कोई पुरुष है तो वही श्रेष्ठ है। वह परिभाषा जिसमें ये बताया जाए कि पुरुष होने का मतलब ताकतवर होना नहीं है बल्कि यह भी है कि एक पुरुष अपनी भावनाओं को समझे, स्वीकार करे और दूसरों के साथ भी समानता के साथ पेश आए।
स्कॉलर कॉमन्स की एक रिपोर्ट के अनुसार ऐसे लोग टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी की जद में हैं वे सेक्सुअल रिलेशनशिप्स में औरतों को ऑब्जेक्ट मान लेते हैं। ऐसे में उन्हें इस बात का एहसास कराना जरूरी है कि किसी भी रिश्ते में लड़कियां उनकी बराबर की पार्टनर हैं।
3. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना
ऐसे लोग जो इस भाव की जद में हैं, उन्हें यह बताइए कि यह ग़लत (Signs of toxic masculinity) है। इसका कोई फायदा यानहीन बल्कि ज्यादातर इसके नुकसान ही हैं। इसके अलावा इसके लॉंगटर्म नुकसान भी हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन की एक रिपोर्ट के अनुसार इसका इलाज होना जरूरी है लेकिन उससे पहले उस इंसान को इस बात का एहसास कराना जरूरी है कि उसके आचरण में समस्या है। फिर उसकी मेंटल काउंसिलिंग के जरिए उसे इससे उबारा जा सकता है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो इसके असर भयानक हो सकते हैं क्योंकि ऐसा व्यक्ति अपने दंभ में अंत में खुद को ही नुकसान पहुंचाने लगता है।
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