भारत में बांझपन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है क्योंकि यह जीवन के लिए खतरा नहीं है। मगर बांझपन आपके जीवन पर एक गहरा कभी न मिटने वाला प्रभाव छोड़ जाता है। जनगणना की रिपोर्ट के आधार पर, शोधकर्ता बताते हैं कि भारत में सन् 1981 के बाद से निःसंतानता 50 प्रतिशत बढ़ी है। ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि कपल्स बच्चे पैदा नहीं करना चाहते हैं, बल्कि मुख्य रूप से बांझपन इसका कारण है। हालांकि, बांझपन मनोवैज्ञानिक दुष्प्रभावों के साथ भी आ सकता है। आजकल बांझपन के कारण अवसाद के मामले भी खतरनाक गति से बढ़ रहे हैं।
बांझपन सिर्फ महिलाओं से संबंधित नहीं है। बांझपन के लिए पुरुष और महिला दोनों कारक समान रूप से जिम्मेदार हैं। हालांकि, जब वे बच्चा पैदा करने में असमर्थ होती हैं तो महिलाओं को दोषी ठहराया जाता है। साथ ही, इस तरह के विषय पर बात करना लंबे समय से वर्जित रहा है और पूरे सामाजिक दबाव के साथ, एक महिला को हमेशा दोष दिया जाता है। भारत जैसी संस्कृतियों में, महिलाओं के लिए बांझपन के परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं। बांझपन के कारण अवसाद भारतीय महिलाओं में आम होता जा रहा है।
संतानहीनता और बांझपन अब निजी दुख नहीं होना चाहिए। चूंकि यह शहरी आबादी में तेजी से बढ़ रहा है, महिलाओं और जोड़ों को इस बारे में बात करनी चाहिए और सामाजिक दबावों के बोझ से दबना नहीं चाहिए। क्योंकि इससे होने वाले तनाव के गंभीर प्रभाव हो सकते हैं।
गर्भावस्था और मातृत्व मानव जाति की एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और महिलाओं को इसे जारी रखने के लिए बनाया गया है। मगर इस प्रक्रिया में, अगर महिलाओं को सामाजिक, पारिवारिक, वैवाहिक और साथियों के दबाव के साथ-साथ इन समस्याओं का अनुभव होता है, तो यह तनाव और चिंता का कारण बन सकता है। बांझपन को लेकर लोगों की मानसिकता महिलाओं के तनाव को बढ़ा सकती है और उन्हें अवसाद का शिकार बना सकती है। हर महिला का इन चीजों को देखने का एक अलग तरीका होता है। ऐसे में पारिवारिक का साथ ही उन्हें इस मुश्किल घड़ी से निपटने में मदद कर सकता है। कुछ महिलाएं अवसादग्रस्त हो जाती हैं, इसलिए उन्हें मनोवैज्ञानिक की भी ज़रूरत पड़ती है।
जब महिलाएं अपने बांझपन के इलाज के लिए आईवीएफ उपचार का विकल्प चुनती हैं, तो वे इस उम्मीद के साथ आती हैं कि वे फिरसे मां बन सकती हैं। लेकिन सभी आईवीएफ उपचार सौ प्रतिशत सफल नहीं होते हैं। नकारात्मक परिणामों को स्वीकार करना और उनसे निपटना, बांझ होने की तुलना में महिलाओं को अधिक प्रभावित करता है। ऐसे में महिलाएं खुद को असहाय पाती हैं। उन्हें निराशा, क्रोध, अपराधबोध, और हताशा जैसी भावनाओं का अनुभव होता है।
विशेषज्ञ महिलाओं की स्थिति को समझने में मदद कर सकता है और रिपोर्ट और अन्य कारकों के आधार पर सर्वोत्तम उपचार की सिफारिश कर सकता है। इन उपचार और प्रक्रियाओं से तनाव कम होगा।
मानसिक स्वास्थ्य एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है, जिसे हमेशा शारीरिक स्वास्थ्य की तुलना में कम महत्वपूर्ण माना गया है। एक पेशेवर मनोवैज्ञानिक आपकी चिंताओं को शांत करने और आपको बेहतर महसूस कराने में मदद कर सकता है।
अपने आप को ऐसे लोगों के साथ घेरें जो सपोर्टिव हों और आपकी स्थिति को समझते हों, इससे आपको इससे निपटने में मदद मिल सकती है।
कुछ भी करना जो आपको पसंद हो या जो आपको खुशी देता हो, आपको अकेलापन महसूस करते समय खुद को कंट्रोल करने में मदद करनी चाहिए।
आप दोनों को पसंद की गतिविधियों में शामिल होकर क्वालिटी टाइम बिताना एक बहुत अच्छा स्ट्रेस बस्टर हो सकता है। बच्चों की बातचीत/फर्टिलिटी संबंधी बातचीत से बचना बहुत जरूरी है।
अपनी रुचि के विषय चुनें और फ़ीड कस्टमाइज़ करें
कस्टमाइज़ करेंमौजूदा दौर में सोशल मीडिया सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाला है। पूरे दिन सोशल मीडिया में अपने मन के प्रश्नों का हल ढूंढना आपको और तनाव ग्रस्त कर सकता है। इसलिए ऐसी चीजों से बचना बहुत जरूरी है। इसके बजाय, हेल्प ग्रुप्स का हिस्सा बनने से आप बेहतर महसूस कर सकती हैं।
हर कोई अद्वितीय है। हम इसे जितना अधिक समझेंगे, स्वयं को उतनी अच्छी तरह से स्वीकार कर पाएंगे। दूसरों के साथ अपनी तुलना न करें क्योंकि कोई भी परफेक्ट नहीं है।
बांझपन के कारण अवसाद को कम करने में काउंसलर कैसे मदद कर सकते हैं?
काउंसलर उन सबसे महत्वपूर्ण चिंताओं और समस्याओं का समाधान करते हैं जिनसे महिलाएं गुजर रही हैं। काउंसलर आपकी मदद करने , तनाव और चिंता कारक को संभालने के लिए होते हैं।
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