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Single Parents Day : अकेले होने का अर्थ सुपरह्यूमन होना नहीं है, जानिए कैसे उबरना है सेल्फ गिल्ट और चुनौतियों से

जैसे-जैसे बच्‍चा बड़ा होने लगता है, उसे अनुशासित रखने की चिंता बढ़ने लगती है। हमेशा याद रखें कि हर पेरेंट अपने बच्‍चे को अनुशासित रखने की चिंता से जूझता है, और इसमें आप अकेले नहीं हैं।
Updated On: 21 Mar 2023, 05:51 pm IST
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Positive parenting ke liye kin tips ko follow karein
हेल्दी एनवायरमेंट मिलने से बच्चा पेरेंटस के करीब आने लगता है और उसमें कॉन्फीडेंस बिल्ड हो जाता है।। चित्र : अडोबी स्टॉक

अक्‍सर कहा जाता है कि “एक बच्‍चे की परवरिश के ल‍िए पूरा गांव चाहिए”। इस कहावत से ज़ाहिर है कि बच्‍चों का लालन-पालन कितनी बड़ी जिम्‍मेदारी है। मौजूदा वक्‍त में परिवारों के स्‍वरूप बदल रहे हैं और बतौर पैरेंट हमें बहुतों के सपोर्ट की आवश्‍यकता अक्‍सर महसूस होती है। अगर आप सिंगल पैरेंट हैं, तो घर में बच्‍चों की परवरिश के लिए भरोसेमंद सपोर्ट का होना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। अगर ये नहीं बन पा रह है, तो इसके लिए खुद को झोंक देने की जरूरत नहीं हैं। आइए सिंगल पेरेंटिंग की चुनौतियों (Challenges of single parenting) और समाधान पर बात करते हैं।

सिंगल पेरेंट्स डे 2023 (Single parents day 2023)

बदलते हुए समय के साथ रिश्तों और परिवार की संकल्पना में भी बदलाव आया है। साल में दो दिन जहां मदर्स डे और फादर्स डे के रूप में मनाए जाते हैं, वहीं 21 मार्च का दिन उन सिंगल पेरेंट्स को समर्पित किया गया है, जो पार्टनर के बिना अपने बच्चों की परवरिश कर रहे हैं। इनमें स्त्री और पुरुष दोनों शामिल हैं। ताकि हर एक के महत्व, समर्पण और चुनौतियों को समझा जा सके। संयुक्त राज्य अमेरिका में इसकी शुरुआत 1957 से बताई जाती है। हालांकि अब यह दुनिया भर में मनाया जाने लगा है।

सिंगल पेरेंटिंग की चुनौतियां 

आपको फाइनेंस, बच्‍चों का लालन-पालन, देखभाल, रोल-मॉडलिंग और बच्‍चों में सुरक्षा की भावना भरने के अलावा रोज़-बरोज़ की जिम्‍मेदारियों को निभाने जैसे कई पहलुओं को अकेले ही संभालना पड़ता है। इसके अलावा, जिंदगी में एक साथ का न होना, पार्टनरशिप का अभाव भी सालता है। आपके ऊपर हमेशा दोहरी जिम्‍मेदारियों को निभाने का दबाव बना रहता है।

single parenting challenging ho sakti hai.
सिंगल पेरेंट होने पर मदद लेने से हिचकिचाएं नहीं। चित्र : शटरस्टॉक

जिसकी वजह से आप कई बार खुद को थका हुआ, तनावपूर्ण और भीतर से खुद को बिखरते हुए, टूटते हुए भी महसूस कर सकते हैं। किसी दिन चुनौतियां काले बादलों की तरह भी घेर लेती हैं, क्‍योंकि बच्‍चे (बच्‍चों) की परवरिश की सारी जिम्‍मेदारी आप अकेले ही निभा रहे होते हैं।

उस पर अगर आप अपने पार्टनर से अलग हो चुके हो, तलाकशुदा या पार्टनर की मृत्‍यु हो चुकी है, तो समाज आपको एक खास नज़रिए से देखता है। आपके बारे में तरह-तरह की राय बनाता है, उसका दबाव अलग से होता है। इनके कारण भी आपको खुद पर शक होने लगता है या हो सकता है आप पैरेंट के तौर पर अपने आप पर शक करने लग जाएं। कभी-कभी अपने ही फैसलों पर सवाल करने लगें।

पेरेंटहुड वाकई मुश्किल रोल है और इस रास्‍ते पर जिंदगीभर अकेले चलने वाले की राह में कई मुश्किलें आती हैं। ऐसे में आपको धैर्यपूर्वक यह समझना होगा कि इन मुश्किलों से कैसे निपटें।

सिंगल पेरेंटिंग की चुनौतियों से निपटने में आपकी मदद कर सकते हैं ये 7 टिप्स 

1.जब भी साथ हों , पूरा समय दें 

चूंकि आप खुद ही अकेले सब कुछ मैनेज करते हैं, तो हो सकता है कि आपको बच्‍चे के साथ ज्‍यादा समय बिताने की फुर्सत नहीं मिलती होगी। यह बात आपको अपरोध बोध से भर सकती है। इसलिए जब भी आप अपने बच्‍चे के साथ हों, तो उसे पूरा समय दें और उस पर भरपूर ध्‍यान दें।

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2. अनुशासन के लिए नेगेटिव कमेंट से बचें 

जैसे-जैसे बच्‍चा बड़ा होने लगता है, उसे अनुशासित रखने की चिंता बढ़ने लगती है। हमेशा याद रखें कि हर पैरेंट अपने बच्‍चे को अनुशासित रखने की चिंता से जूझता है। लेकिन कम्‍युनिकेशन ऐसे में बहुत महत्‍वपूर्ण होता है। बच्‍चों पर चीखना-चिल्‍लाना या उन्‍हें तकाजे करना, नेगेटिव कमेंट करना हालात को और और बिगाड़ता है।

3. बच्चों के साथ कम्युनिकेशन बनाए रखें 

जब भी फुर्सत हो, उससे धीरे-धीरे एक-एक विषय पर बात करें। मसलन, उससे पूछें कि उसका दिन कैसा गुजरा (उसके स्‍कूल, दोस्‍तों और पढ़ाई की बात करें), उसने कुछ अच्‍छा किया है, तो उसकी तारीफ करें। किसी खास काम को पूरा करने में बच्‍चे ने काफी मेहनत की है, तो उसे इसके लिए जरूर सराहें। बच्‍चों के साथ लगातार संवाद बनाकर रखने से आपका कनेक्‍शन उनके साथ रहेगा और वे आपकी बात को नज़रंदाज़ नहीं कर पाएंगे।

4. संदेश रियलिस्टिक और स्पष्ट होने चाहिए 

सामान्‍य रूप से जिंदगी में क्‍या लक्ष्‍य होने चाहिए, इन बातों की बजाय उन्‍हें यह स्‍पष्‍ट रूप से बताएं कि उनसे आपकी क्‍या अपेक्षा है। मसलन, ‘मैं चाहता/चाहती हूं कि तुम हर रोज़ कछ समय पढ़ो’ कहने की बजाय ‘मैं चाहता/चाहती हूं कि हफ्ते में 5 बार एक-एक घंटा पढ़ने का नियमित रूटीन तुम्‍हें बनाना चाहिए। क्‍यों न हम मिलकर तय करें कि वो दिन कौन-से हो सकते हैं, ताकि तुम्‍हारी दूसरी एक्टिविटीज़ भी जारी रहें’ जैसा स्‍पष्‍ट संदेश दें।

याद रहे, कि आपकी अपेक्षाएं बिल्‍कुल स्‍पष्‍ट होनी चाहिए और रियलिस्टिक भी, साथ ही, ऐसी कि बच्‍चा उन्‍हें पूरी कर सके।

5. अपनी चिंताएं बच्चों के साथ बांटें 

बेशक, आपको यह जरूरी नहीं लगता हो, लेकिन अपने बच्‍चे के साथ अपने फाइनेंशियल या दूसरे सरोकारों, चिंताओं को जरूर बांटे। इसका मकसद बच्‍चे को अपराध बोध से भरना नहीं है, बल्कि उन्‍हें जिंदगी की सच्‍चाइयों से, चुनौतियों से रूबरू कराना होता है।

Personal life ki ghatna ko bachcho ko bataye
निजी जीवन की घटना को बच्चों के साथ करें सांझा। चित्र: शटरस्टॉक

जब भी बच्‍चे/बच्‍चों के साथ कम्‍युनिकेट करें, तो सोच-विचारकर व्‍यावहारिक बनकर ऐसा करें, शांत भाव से और समस्‍या को दूर करने के इरादे से उनके साथ बातचीत करें।

6. सपोर्ट सिस्टम तैयार करें 

अपने भरोसेमंद दोस्‍तों और फैमिली के सहयोग से अपना एक सपोर्ट सिस्‍टम तैयार करें। आपके और आपके बच्‍चे दोनों के लिहाज़ से ऐसा करना काफी महत्‍वपूर्ण है। जिंदगी बड़ी होती है और उसमें बहुत कुछ चलता है, जिसके बारे में दूसरों के साथ, खासतौर से अपने करीबी लोगों के साथ बातें करने से दिल को सुकून मिलता है।

ऐसे करीबी लोगों के होने से आप अपने मन में उठने वाले सवालों, संदेहों को उनके साथ बांट सकते हैं। खुद को याद दिलाते रहें कि आप सुपरह्यूमैन नहीं हैं, नहीं हो सकते, हरेक को किसी न किसी रूप से सपोर्ट की जरूरत होती है। अपने साथ कठोर नहीं बनें और जब भी मदद की जरूरत हो तो उसे लेने से संकोच न करें।े

7. अपनी जरूरतों को इग्नोर न करें 

मन में सवाल उठना, संदेह होना, चिंताओं या सरोकारों से घिरना कोई अजीब बात नहीं है, ये सब पेरेंटहुड के सफर में स्‍वाभाविक हैं। अपनी भावनाओं और जरूरतों को समझें और उन्‍हें पूरा करने से पीछे नहीं हटें। अपनी खुद की देखभाल पर भी ध्‍यान दें, सैल्‍फ-केयर बहुत जरूरी है और ऐसा करना बहुत आसान है।

यह भी पढ़ें – मिसेज चटर्जी की तरह भारतीय मांएं भी फॉलो करती हैं पेरेंटिंग की ये 5 आदतें, जो सचमुच हेल्दी हैं

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लेखक के बारे में
Mimansa Singh Tanwar
Mimansa Singh Tanwar

Mimansa Singh Tanwar is Clinical Psychologist, Head Fortis School Mental Health Program, Fortis National Mental Health Program

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