scorecardresearch

सेक्सिज्‍म केजुअल नहीं होता, पितृसत्‍ता महिलाओं की मेंटल हेल्‍थ को भी करती है प्रभावित

तुम्‍हें “लड़कियों की तरह व्‍यवहार करना चाहिए” जैसी एक छोटी सी टिप्‍पणी भी भले ही बहुत सामान्‍य लगे पर यह महिलाओं की मानिसक सेहत को बहुत गहरे से प्रभ‍ावित करते हैं। हम बताते हैं कैसे -
Updated On: 10 Dec 2020, 11:56 am IST
  • Google News Share
  • Facebook Share
  • X Share
  • WhatsApp Share

‘केजुअल सेक्सिज्‍म और मेंटल हेल्‍थ’ यानी यौन आधार पर किए जाने वाले भेदभाव का महिलाओं के मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य पर क्‍या असर होता है, इस पर लिखने से पहले मैंने एक जरूरी काम किया।  अकसर कुछ भी लिखने से पहले मैं उस विषय पर रिसर्च पेपर, लेख, ब्लॉग आदि पढ़ती हूं। पर इस विषय पर पढ़ते हुए मुझे जो सामग्री मिली, उसने मुझे बहुत ही असहज कर दिया। 

“लिंगवाद का मानसिक स्वास्थ्य पर असर” इसे Google करने पर ही ढेरों पन्‍ने खुल जाते हैं। इनमें मुख्य रूप से महिलाओं का उनके कार्यस्थल, घरों, सामाजिक समारोहों और आश्चर्यजनक रूप से, सड़कों पर किए जाने वाले लैंगिक भेद की झलक मिलती है। जैसा कि कई लोग करते हैं,  मैंने भी इसे अपने अनुभवों में तलाशना शुरु किया। 

सबसे पहले समझें कि क्‍या है केजुअल सेक्सिज्‍म

सामान्‍यत: लैंगिक भेद में वह व्‍यवहार या संवाद शामिल होते हैं, जो किसी भी व्‍यक्ति को लैंगिक आधार पर अलग ट्रीट करते हैं। सेक्सिज्म कई रूपाेें में सामने आता है जैसे :

पारंपरिक रूढ़‍िवादी विचारों का समर्थन करना :

उदाहरण के लिए, एक महिला से “सुंदर दिखने” और “एक महिला की तरह पेश आने” की अपेक्षा करना। उन्‍हें यह सलाह दी जाती है कि उन्‍हें अपनी बात पर बहुत ज्‍यादा नहीं अड़ना है।

casual sexism
उन्‍हें अपनी बात रखने से रोकना क्‍लासिक सेक्सिज्‍म का एक उदाहरण है। चित्र : शटरस्टॉक

ऐसे मुहावरों का प्रयोग जो उन्‍हें नीचा दिखाते हैं या कम आंकते हैं

अकसर लोगों के बीच ऐसे मुहावरों का प्रयोग किया जाता है, जिसमें स्‍त्री जैसा होना शर्म की बात कही जाती है। जैसे किसी पुरुष को कहना कि वह लड़कियों की तरह चलता है। या पुरुषों द्वारा महिलाओं के बारे में कहा जाना कि “उनका दिमाग उनके घुुुुुुुटनों में होता है।” ये मुहावरे महिलाओं का अपमान करते हैं।

यौन उत्‍पाद बना देना :

यह उत्पीड़न का सबसे घातक रूप है। किसी भी लड़की या महिला पर यौनिक टिप्‍प्‍णी करना या उसेे गलत तरीकेे से छूना। उन्‍हें गलत नजर से देेखना भी इसी व्यवहार शामिल हैं।

क्या यौनिक भेदभाव और मानसिक स्वास्थ्य के बीच कोई संबंध है? 

2019 में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के एक अध्ययन में यह पाया गया कि 16 वर्ष की आयु मेंं जिन

जिन लड़कियों के साथ यौनिक भेदभाव जैसी घटनाएं घटती हैं, वे बाद के वर्षों में ज्‍यादा उदास होने लगती हैं। और उनका मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य के लिए जोखिम तीन गुना ज्‍यादा बढ़ जाता है।

Pollपोल
स्ट्रेस से उबरने का आपका अपना क्विक फॉर्मूला क्या है?

शोधकर्ताओं ने इन दोनों के बीच एक “स्पष्ट और घातक संबंध” की खोज की। शोध में यह भी सामने आया कि आकस्मिक यौन हमला किसी के मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य पर बहुत बुरा प्रभाव डालता है।

डर लगना :

खासतौर से सड़कों पर  की जाने वाली यौनिक टिप्‍पणियों से उनमें डर उत्‍पन्‍न होने लगता है। वे हर समय किसी मौखिक या शारीरिक हमले से से डरी रहती हैं। इसका सामना करने वाला व्यक्ति कुछ समय तक कुछ खास स्‍थानों पर जाने से डरने लगता है। कई बार तो यह भी देखने में आता है कि यौन दुर्व्‍यवहार का सामना करने वाली लड़कियों खुद को समाज से पूरी तरह अलग-थलग कर लेती हैं।

लगातार अतिसंवेदनशीलता की स्थिति उनके लिए मनोवैज्ञानिक स्‍तर पर चिंता, डर, चिड़चिड़ेपन को बढ़ा देती है। जिससे उनका मानसिक विकास बाधित हो जाता है।

खुद को कम आंकना :

कार्यस्थल पर महिलाएं अकसर खुद को अपने पुरुष सहकर्मियों से कम आंकती हैं। यह अहसास एक खास मानसिकता उनमें धीरे-धीरे इंजेक्‍ट करती है। शोध से पता चलता है कि पुरुष-वर्चस्व वाले कार्यालयों में काम करने वाली महिलाओं में अकेलापन या अस्वीकृति का अनुभव हो सकता है। जो धीरे-धीरे अवसाद की ओर बढ़ने लगता है।

आत्मविश्वास में कमी :

सामान्‍यत: की गई यौन आधारित टिप्‍पणियां भी किसी के आत्‍मविश्‍वास को चोट पहुंचा सकती हैं। जिससे धीरे-धीरे वे खुद भी अपने आप को दूसरों से कम समझने लगती हैं। यह उनमें कम होते आत्‍मविश्‍वास का संकेत है।

उदाहरण के लिए, किसी भी बात को जेंडर पर ले आना कि महिलाओं तो ऐसा ही करती हैं या करना चाहिए। उदाहरण के लिए: “महिलाएं अपने बच्चों के साथ घर पर ही अच्‍छी लगती हैं।” ये टिप्‍पणियां किसी भी महिला में नकारात्‍मक विचार को पैदा करती हैं। जिससे वे असुरक्षा और न्‍यूनता बोध से घिर जाती हैं। उन्‍हें लगने लगता है कि व किसी से अयोग्‍य हैं।

आत्‍म ग्‍लानि :

चूंकि यह सबकुछ इतना सामान्‍य हो गया है कि हमने खुद को इसकी आदत डाल ली है। जब हम पर कोई सेक्सिस्ट टिप्पणी की जाती है, तो हम खुद पर संदेह करने लगते हैं। हम  सोचते हैं कि गलती हमारी ही है। हम सभी ने यह सुना होगा कि महिलाएं उत्‍तेजक कपड़े पहनती हैं और मर्दों को उकसाती हैं। इससे जब हमारे साथ कोई दुर्व्‍यवहार होता है तो हम खुद में ही दोष ढूंढने लगते हैं। और एक किस्‍म की आत्‍मग्‍लानि से भर जाते हैं।

casual sexism
यौन आधार पर की गई टिप्‍पणियों पर चुप रहने और स्‍वीकारने की जरूरत बिल्‍कुल नहीं है। चित्र : शटरस्टॉक

असहाय महसूस करना :

उपरोक्त सभी के परिणामस्वरूप महिलाओं खुद को असहायता समझने लगती हैं। समझने शब्‍द का यहां यह अर्थ है कि वे ऐसा मान चुकी हैं कि हम इस स्थिति में कोई बदलाव नहीं कर सकते। यौनिक भेदभाव ने समाज में अपनी एक खास जगह बना ली है। और जब ऐसा होता है कि हमें यह कहा जाता है कि “कूल रहो” और “इसे गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं” । ये प्रतिक्रियाएं भी यौनिक भेदभाव में सहयोग करती हैं।

हालांकि मीडिया भी लैंगिक आधार पर इस तरह के व्‍यवहार को लगातार बढ़ा रहा है। बहुत कम उम्र से ही ये हमारे मन बैठ चुका है कि ऐसा ही होता है।

पर अब यह समझना जरूरी है कि यौनिक भेदभाव, टिप्‍पणियां और दुर्व्‍यवहार हमारे मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य को बहुत गहरे से प्रभावित करता है। हमें न केवल इसके प्रति लापरवाह रवैये को छोड़ना होगा बल्कि इससे निपटने के प्रयास भी करने होंगे। यौन दुर्व्‍यवहार को खत्‍म करने के लिए हमें अपने कम्‍फर्ट जोन से बाहर निकलना होगा।

डिस्क्लेमर: हेल्थ शॉट्स पर, हम आपके स्वास्थ्य और कल्याण के लिए सटीक, भरोसेमंद और प्रामाणिक जानकारी प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके बावजूद, वेबसाइट पर प्रस्तुत सामग्री केवल जानकारी देने के उद्देश्य से है। इसे विशेषज्ञ चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार का विकल्प नहीं माना जाना चाहिए। अपनी विशेष स्वास्थ्य स्थिति और चिंताओं के लिए हमेशा एक योग्य स्वास्थ्य विशेषज्ञ से व्यक्तिगत सलाह लें।

  • Google News Share
  • Facebook Share
  • X Share
  • WhatsApp Share
संबंधित विषय:
लेखक के बारे में
Dr Miloni Sanghvi
Dr Miloni Sanghvi

Dr Sanghvi is a psychologist and Outreach Associate at Mpower - The Centre, Mumbai

अगला लेख