एंग्जायटी बढ़ा सकती है लो कैलोरी शुगर, जानिए नकली मिठास के बारे में क्या कहती है स्टडी
क्रिसमस नजदीक है। घरों में कई तरह के केक, कुकीज, पेस्ट्री बनने शुरू हो चुके हैं। न्यू ईयर पर तो इन मीठे पकवानों का प्रयोग और अधिक बढ़ जाएगा। इन मीठे व्यंजनों में शुगर सिरप या पाउडर रूप में आर्टिफिशियल शुगर (artificial sweetener) का प्रयोग जम कर होगा। पर क्या आपने कभी सोचा है कि इन मिठाइयों में मौजूद आर्टिफिशियल शुगर फिजिकल के साथ-साथ मेंटल हेल्थ को भी नुकसान (artificial sweetener effect on mental health) पहुंचाता है। रिसर्च इसी ओर इशारा करते हैं।
किन तत्वों से बना है आर्टिफिशियल शुगर (artificial sweetener)
इंडियन जर्नल ऑफ़ फार्माकोल में प्रकाशित शोध आलेख के अनुसार, यूनाइटेड स्टेट्स फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने आर्टिफिशियल शुगर या शुगर सुब्स्टियूट को नॉन नुट्रिटिव स्वीटनर(non nutritive sweetener) कहा है। इस एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार 6 नॉन नुट्रिटिव स्वीटनर (NNS) सैकरीन, एस्पार्टेम, सुक्रालोज़, नियोटेम, एसेसल्फ़ेम-के और स्टीविया का प्रयोग किया जा सकता है।
इस कृत्रिम चीनी को कम कैलोरी वाली चीनी तीव्र मिठास वाली चीनी भी कहा जाता है। आर्टिफिशियल शुगर यानी कृत्रिम चीनी के तौर पर सबसे अधिक सुक्रालोज का प्रयोग किया जाता है। यह क्लोरीनयुक्त चीनी है। सुक्रलोज चीनी की तुलना में लगभग 600 गुना अधिक मीठा होता है। यह सुक्रोज से उत्पन्न होता है।
एस्पार्टेम (Aspartame) भी आर्टिफिशियल शुगर के तौर पर किया जाता है इस्तेमाल
इनके अलावा एस्पार्टेम भी आर्टिफिशियल शुगर या शुगर सबस्टीटयूट के तौर पर प्रयोग किया जाता है। एस्पार्टेम में एमिनो एसिड, ऐसपर्टिक एसिड, फेनिलालेनाइन और एथानॉल जैसे घटक पाए जाते हैं। आर्टिफिशियल शुगर या शुगर सुब्स्टियूट का उपयोग बेक किये गये खाद्य पदार्थ जैसे कि केक, पेस्ट्री, कुकीज या फ्रीज़ में जमा कर बनाये जाने वाले डेसर्ट, आइसक्रीम, च्युइंग गम में किया जाता है।
क्या कहती है रिसर्च
न्यूट्री न्यूरो साइंस जर्नल में आर्टिफिशियल शुगर के मेंटल हेल्थ पर प्रभावों पर शोधकर्ता अरबिंद कुमार चौधरी और येओंग ये ली के शोध प्रकाशित हुए। इन शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला कि आर्टिफिशियल शुगर एस्पार्टेम एंग्जायटी को बढ़ा सकता है।
एस्पार्टेम व्यवहार और संज्ञानात्मक समस्याओं से जुड़ा हुआ है। इसके अधिक प्रयोग से सीखने की समस्याएं, सिरदर्द (headache) , दौरे, माइग्रेन (migraine), चिंता (anxiety), अवसाद (depression) और अनिद्रा(insomnia) हो सकती हैं। एस्पार्टेम के अधिक सेवन से मस्तिष्क में फेनिलएलनिन और एस्पार्टिक एसिड स्तर बढ़ सकता है।
ये यौगिक न्यूरोट्रांसमीटर, डोपामाइन, नोरेपीनेफ्राइन और सेरोटोनिन के संश्लेषण और रिलीज को रोक सकते हैं। एस्पार्टेम प्लाज्मा कोर्टिसोल के स्तर को बढ़ा सकता है। यह फ्री रेडिकल्स के उत्पादन को बढ़ा देता है। जो रासायनिक तनाव के रूप में कार्य करता है। हाई कोर्टिसोल लेवल और अतिरिक्त फ्री रेडिकल्स ऑक्सीडेटिव तनाव बढ़ा सकते हैं। इसके कारण न्यूरोबिहेवियरल हेल्थ पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकते हैं।
एस्पार्टेम जिम्मेदार हो सकता है मेंटल हेल्थ संबंधी (artificial sweetener effect on mental health ) समस्याओं के लिए
शोधकर्ताओं द्वारा कई अध्ययन की समीक्षा की गई। इसके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया कि प्रतिकूल न्यूरोबेहेवियरल स्वास्थ्य परिणामों के लिए एस्पार्टेम जिम्मेदार हो सकता है। न्यूरोबिहेवियरल स्वास्थ्य पर बुरे प्रभाव की संभावना के कारण एस्पार्टेम का सेवन सावधानी पूर्वक करना चाहिए। हालांकि एस्पार्टेम के न्यूरोबिहेवियरल प्रभावों का मूल्यांकन करने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है।
अधिक मात्रा में लेने पर ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर(blood sugar) और ओबेसिटी(obesity) को मिल सकता है बढ़ावा
इंडियन जर्नल ऑफ़ फार्माकोल में आर्टिफिशियल शुगर पर शोधकर्ता अरुण शर्मा, एस. अमरनाथ, एम. तुलसीमणि और एस. रामास्वामी ने शोध आलेख प्रकाशित किया। उन लोगों ने अपने निष्कर्ष में आर्टिफिशियल शुगर को सीमित मात्रा में लेने की सलाह दी।
अधिक मात्रा में लेने पर यह ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर और ओबेसिटी को बढ़ावा दे सकता है। इसे सीमित मात्रा में लेने पर यह कार्बोहाइड्रेट और ऊर्जा सेवन को सीमित करने में मदद कर सकता है। प्रत्येक व्यक्ति को किसी पोषण विशेषज्ञ से आयु, लिंग, पोषण की स्थिति और शारीरिक गतिविधि के आधार पर प्रयोग करना चाहिए।
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कस्टमाइज़ करेंडिब्बाबंद भोजन, रेड मीट में भी हो सकता है आर्टिफिशियल शुगर
आर्टिफिशियल शुगर मीठे खाद्य पदार्थ के अलावा शराब, कैफीन, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, जैसे चिप्स, कुकीज़, डिब्बाबंद भोजन में भी हो सकता है।
हाई ट्रांस फैट और हाई सैचुरेटेड खाद्य पदार्थ, जैसे तले हुए खाद्य पदार्थ, रेड मीट, फुल फैट डेयरी प्रोडक्ट में भी यह पाया जाता है।
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