कोविड-19 के लॉकडाउन के बाद वे मजदूर अपने घर जाने के लिए निकले थे, पर रात में रेल की पटरी पर सो गए। मालगाड़ी पटरी पर उन्हें काटती हुई चली गई। टेलीविज़न और अखबारों में उन मजदूरों की वह हृदय विदारक तस्वीर, फैली हुई रोटियां और बिखरा हुआ सामान देख कर कौन भावुक नहीं हुआ होगा।
कोरोनावायरस के समय में हम हर रोज ऐसी कितनी ही खबरें सुन रहे हैं, जो हमें निराश और उदास कर रहीं हैं। एक तरफ महामारी और दूसरी तरफ तूफान, बिजली गिरने और अन्य दुर्घटनाओं में हताहत हुए लोग। यह गहरे मानसिक आघात वाला समय है।
वहीं डब्ल्यूएचओ (WHO) के आंकड़े यह भी बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान परिवारों में हिंसा (Domestic violence) बढ़ी है। इससे निपटने के लिए सभी देशों को सक्रिय पहल करनी चाहिए।
रिश्तों का तनाव, आसपास की दुर्घटनाएं और महामारी सहित अन्य प्राकृतिक आपदाएं – ये वह कारण हैं जो आपके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। इन्हेें डील करना और सही समय पर सही उपचार करवाना भी जरूरी है।
इन घटनाओं-दुर्घटनाओं के बीच ही मनुष्य वापस अपनी जिंदगी में लौट आता है, वह खुश होने के बहाने ढूंढ लेता है, यही उसकी प्रकृति है। इसके उलट जब आप लंबे समय तक इन हादसों की बुरी यादों और चिंताओं से बाहर नहीं निकल पाते, तब स्थिति ज्यादा चिंताजनक हो जाती है। कई बार ये यादें इतनी सघन और गहरी होती हैं कि पर्सनेलिटी और लाइफ को भी प्रभावित करने लगती हैं।
इस कंडीशन को मेडिकल टर्म में पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) कहा जाता है। इस स्थिति की गंभीरता को समझते हुए वर्ष 2010 में पहली बार 27 जून को पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर अवेयरनेस डे (Post Traumatic Stress Disorder Awareness Day) के तौर पर मान्यता दी गई।
इस दिवस का उद्देश्य है कि इस मानसिक स्थिति के प्रति ज्यादा से ज्यादा जागरुकता फैलाना। साथ ही अगर कोई आपके आसपास ऐसी स्थिति से गुजर रहा है तो उसके प्रति ज्यादा संवेदनशील होना।
हर रोज हमें कई ऐसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है जब हम उदास हो जाते हैं। पर साधारण उदासी को पीटीएसडी समझने की गलती करने से पहले यह जान लेना जरूर है कि यह आखिर है क्या।
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में मनोचिकित्सा विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर और एक क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ.लुआना मार्केस बताती हैं पोस्ट-ट्रॉमेेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर एक मनोवैज्ञानिक विकार है, जो किसी गंभीर कार दुर्घटना, लंबे तनाव, या किसी अन्य खतरे जैसी दर्दनाक घटना का अनुभव करने के बाद होता है।
मार्केस का कहना है कि उन परिस्थितियों में तनावग्रस्त और उदास महसूस करना सामान्य है।
“एक दर्दनाक घटना के बाद, जैविक रूप से, हम तनाव की प्रतिक्रिया से गुजरते हैं। जिसके चलते नींद आने में मुश्किल, बुरे सपने, ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई और हर समय खुद को कैद में अनुभव करने जैसा अहसास होता है।”
मार्केस का कहना है कि जब हम उन सभी लक्षणों को एक साथ महसूस करते हैं, तो हमें लगने लगता है कि हम शायद पीटीएसडी के शिकार हैं।
इसके साथ ही वे चेतावनी देती हैं कि इतनी जल्दी किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले यह जरूरी है कि हम कुछ समय की प्रतीक्षा करें। किसी भी दुर्घटना के एकदम बाद यह लक्षण नहीं होते। बल्कि कई बार दुर्घटना के तीन महीने बाद इस तरह के लक्षण दिखाई देते हैं।
मार्केस अब तक प्राप्त आंकड़ों के आधार पर कहती हैं कि इनमें फ्रंटलाइन वर्कर तनाव और अवसाद से ग्रस्त होने के प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील होते हैं। हालांकि अभी तक कोविड-19 के मामले में आंकड़ें नहीं जुटाए जा सके हैं।
इसके साथ ही वह कहती हैं, “हम जानते हैं कि महिलाओं और ऐसे व्यक्तियों में पीटीएसडी विकसित करने का जोखिम सबसे ज्यादा होता है जो लंबी तनावग्रस्त स्थिति या किसी तरह की शारीरिक तकलीफ से गुजरे हैं।”
आप चाहें पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर से गुजर रहे हैं या नहीं, पर आपके लिए इसके लक्षणों को पहचानना जरूरी है।
मार्केस कहती हैं, यदि आप इनमें से किसी भी लक्षण या संकेत से गुजर रहीं हैं तो आपको अपनी मानसिक स्थिति पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। इसके लिए आप निम्न बिंदुओं को फॉलो कर सकती हैं –
यदि आप ऐसा सोच रहीं हैं कि यह जीवन भर का रोग है तो मार्केस थोड़ी उम्मीेद बंधाती हैं। वे कहती हैं कि यह किसी भी आम संक्रामक रोग की तरह है। अगर आप इस पर ध्यान नहीं देंगी, उपचार में लापरवाही बरतेंगी तो यह कहीं जाने वाला नहीं है। पर अगर आप उन स्थितियों से बचेंगी जो तनाव को और बढ़ाती हैं तो आप इसकी तीव्रता से बच पाएंगी।
साथ ही बेहतर उपचार और काउंसलिंग की मदद से आप इससे बाहर आ सकती हैं। तो अगर कभी भी आपको अपने बारे में या अपने किसी परिजन के बारे में ऐसा अहसास हो तो कभी भी प्रोफेशनल हेल्प लेने से परहेज न करें।
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जून को पीटीएसडी जागरूकता माह (PTSD Awareness Month) घोषित किया गया है और आज 27 जून को पीटीएसडी जागरुकता दिवस (PTSD Awareness Day) के तौर पर। तो यह जरूरी है कि आप अपने और अपने परिजनों के मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरुक रहें।
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