बेटी के जन्म लेते ही घर में खुशियां दस्तक देती है और उसी दिन से उसके नाज़ नखरे उठाने के लिए सभी परिवार के सदस्य एक कतार में हर वक्त खड़े रहते है। कोई उसे खाना खिलाता है, कोई झूला झुलाता है, तो कोई घुमाने लग जाता है। अब वो नन्ही बच्ची जब बड़ी होने लगती है, तो उसे हर वक्त पैंपरिंग की आदत हो जाती है।
हर चीज़ मांगने से पहले मिल जाना, मन मुताबिक खाना खाना और प्रिसेंस की तरह जीवन बिताना उसकी आदत में शुमार होने लगता है। हो भी क्यों न अब घर पर भी उसे हर कोई प्रिसेंस कहकर जो पुकारता है। मगर ये आदत देखते ही देखते एक डिसऑर्डर का रूप ले लेती है, जिसे प्रिसेंस सिंड्रोम कहा जाता है। इससे बच्चे की पर्सनैलिटी में बदलाव देखने को मिलते है और उसकी ओवरऑल लाइफ को प्रभावित करती है। जानते हैं प्रिसेंस सिंड्रोम (Princess syndrome) क्या है और इसके लक्षण।
कभी मेरी गुड़िया, कभी मेरी लाडो, तो कभी प्रिसेंस (Princess syndrome), सुनने में तो अच्छा लगता है, मगर हर वक्त यही सुनकर नन्ही सी बच्ची अब फैरी लैंड में रहने लगती है। अब उसे लगने लगता है कि सभी चीजें उसके अनुसार होनी चाहिए। दरअसल, बच्चे को राजकुमारी की तरह ट्रीट करना और उसकी प्रशंसा करना भौतिकतावाद को बढ़ा देता है। इससे उसका व्यवहार धीरे धीरे गुस्सैल होने लगता है। इससे अति प्रशंसा और आत्म प्रशंसा को बढ़ावा भी मिलता है।
प्रिसेंस सिंड्रोम बच्चियों की वो मानसिक स्थिति होती है, जिसमें वे हर कार्य को अपने मन मुताबिक करना चाहती है और डिमांड पूरी न होन पर जिद करने लगती है। अपनी सीमाओं की चिंता किए बगैर बड़ा और अनरियलिस्टिक सोचने लगती हैं। खुद के बारे में गलत सुनना और डांट को वो बर्दाशत नहीं कर पाती हैं और इससे उनका व्यवहार धीरे धीरे नार्सिसिस्ट जैसा होने लगता है।
वे बच्चे जिनकी हर चाहत माता पिता कहने से पहले ही पूरी कर देते हैं, उनमें प्रिसेंस सिंड्रोम के लक्षण देखने को मिलते है। हर चीज़ के लिए जिद्द करना और फिर उसे पाकर रहना उनकी आदत में शुमार होता है। ये आदत उनकी पर्सनैलिटी का हिस्सा बन जाती है, जिसका असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर देखने को मिलता है।
अगर कोई व्यक्ति उनके बारे में कुछ कहता है या उन्हें सबके सामने डांटता है, तो वो उसे बर्दाशत नहीं कर पाती है। उनके अनुसार वे एक प्रिसेंस है, जिसे हर समय प्यार और दुलार की आवश्यकता हेती है। ऐसी बच्चियां हर वक्त मान सम्मान की चाहत रखती हैं और अपनी एज ग्रुप के अन्य बच्चों या महिलाओं को अपने से कमतर आंकती हैं।
अपनी सीमा से बढ़ी सोच रखना इनकी आदत होती है। बड़े सपने देखना और खुद पर गर्व करना इनकी आदत होती है। इनके अनुसार इनके पास सब कुछ होना आवश्यक है। अन्य लोगों से बेहतर ये अपने स्टेटस को मेंटेन करने की जुगत में लगी रहती है। अन्य लोगों से कटी कटी रहती है और चाहती है कि बाकी लोग इनके सेवक बनकर इनके साथ रहें।
इन्हें दूसरों से अपनी चीजों को शेयर करना भी पसंद नहीं आता है। इन्हें अपनी चीजों से खूब प्यार होता है और ऐसी बच्चियां हर पल चीजों को सजाने संवारने में मसरूफ रहती है। वे अन्य लोगों से अपनी चीजों को बचाकर रखने में विश्वास रखती है। उनके अनुसार अन्य लोगों को उनकी चीजें इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं हो सकता फिर चाहे वे उनके अपने भाई बहन ही क्यों न हो।
5. आत्म जागरूकता की कमी
ऐसी स्थिति में व्यक्ति वास्तविकता से कोसों दूर रहता है। वो जान नहीं पाता कि उसके लिए क्या ज़रूरी है और कैसा व्यवहार आसपास के माहौल को हेल्दी बना सकता है। प्रिसेंस सिंड्रोम की शिकार लड़कियों और महिलाओं का ऐसा मानना होता है कि उन्हें हर चीज़ की पूरी जानकारी है और वो हर जगह पर बिल्कुल ठीक हैं।
इस सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चियां भौतिकतावाद यानि मैटीरियलिस्टिक हो जाती है। उनमें दूसरों से बेहतर जीवन पाने की चाह दिनों दिन बढ़ने लगती है और व्यवहार में जिद्दीपन बढ़ता है। इससे लड़की का व्यवहार नकारात्मक होने लगता है। इस सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चियों को चुनौतियों का सामना करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा आत्मनिर्भरता की भावना भी उत्पन्न नहीं हो पाती है। साथ ही दूसरों के प्रति सहानुभूति की कमी उनमें बढ़ने लगती है।
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