बढ़ती उम्र के साथ सेहत संबंधी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। ब्रेन की सेहत पर भी बढ़ती उम्र का असर नकारात्मक होता है। ऐसे में याद्दाश्त से जुड़ी समस्याएं लोगों को परेशान कर देती हैं। खासकर 40 की उम्र के बाद डिमेंशिया का खतरा बढ़ जाता है। यह समस्या नर्व सेल्स के डैमेज होने से होती है। डिमेंशिया की स्थिति में सभी में अलग-अलग प्रकार के लक्षण देखने नजर आते हैं। डिमेंशिया के लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि व्यक्ति के दिमाग के किस हिस्से की नर्व प्रभावित हुई है। हालांकि, इस स्थिति को कंट्रोल करना (Tips to avoid dementia) असंभव नहीं है।
आमतौर पर 40 की उम्र के बाद महिलाओं में एस्ट्रोजेन के स्तर में कमी आती है, जो ब्रेन हेल्थ को प्रभावित करते हुए डिमेंशिया के खतरे को बढ़ा देता है। तो चलिए जानते हैं ऐसे खास टिप्स के बारे में जो 40 के बाद आपके ब्रेन की सेहत को बनाए रखेंगे और इनकी मदद से आप डिमेंशिया जैसी अन्य दिमाग से जुड़ी परेशानियों को खुद से दूर रख सकती हैं।
डिमेंशिया की स्थिति में पर्सनालिटी चंगेज, डिप्रेशन, एंग्जाइटी, असामान्य व्यवहार, एजीटेशन और हलूसनेशन जैसे आम लक्षण नजर आ सकते हैं। यदि आपको भी बढ़ती उम्र के साथ ऐसा कुछ महसूस हो रहा है, तो फौरन इस पर गौर करें और इसके प्रति ध्यान देना शुरू कर दें।
अपने आहार में ब्रेन सपोर्टिंग फूड्स को शामिल करें। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन के अनुसार ओमेगा -3 फैटी एसिड, विटामिन बी, विटामिन डी3, और पॉलीफेनोल्स से भरपूर खाद्य पदार्थों को अपनी डाइट में शामिल करें। यह सभी ब्रेन को एक्टिव रखते हैं और मेमोरी बूस्ट करने में मदद करते हैं।
हरी सब्जियां जैसे की केल, ब्रोकोली और पालक विटामिन के, ल्यूटिन और फोलेट से भरपूर होता है साथ ही हेल्दी फैट और प्रोटीन से भरपूर अखरोट का सेवन डिमेंशिया की स्थिति बनने से रोकता है।
डिमेंशिया की स्थिति से बचने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करें। बढ़ती उम्र के साथ शारीरिक रूप से सक्रीय रहना मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत जरुरी है। एक्सरसाइज ब्रेन में ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ा देता है और ब्रेन पॉवर को बूस्ट करता है। इसके साथ ही एक्सरसाइज नींद की गुणवत्ता को बढ़ावा देती है और आपके मूड को भी इंप्रूव करती है। यह फैक्टर डिमेंशिया की स्थिति में कारगर होते हैं।
नींद की कमी के कारण सेहत संबंधी कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। खासकर मानसिक स्वास्थ्य पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन द्वारा प्रकाशित अध्ययन की मानें तो नींद की कमी अल्जाइमर और डिमेंशिया की समस्या का एक मुख्य कारण होती है। एक उचित निंद दिमाग से टॉक्सिंस को बाहर निकालने में मदद करती है।
दूसरी ओर नींद की कमी ब्रेन में बीटा अमयलोइड के स्तर को बढ़ा देती है। यह एक प्रकार का प्रोटीन है जो नींद की गुणवत्ता पर असर डालता है। वहीं गहरी नींद मेमोरी फॉर्मेशन के लिए बहुत जरूरी होती है। इसलिए नियमित रूप पर्याप्त समय के लिए सोना बहुत जरूरी है। नींद की गुणवत्ता को बढ़ावा देने के लिए शारीरिक रूप से सक्रिय रहें और बेड पर जाने का एक निश्चय समय स्थापित करें।
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बढ़ती उम्र के साथ खासकर 40 वर्ष के बाद महिलाएं घर की और बच्चों की जिम्मेदारी में इतनी व्यस्त हो जाती है कि अपनी दुनिया को इन चीजों तक सीमित कर लेती हैं। हालांकि, इतना काफी नहीं है। अपने दिमाग को केवल कुछ चीजों तक सीमित कर लेना भी हेल्दी नहीं है। यझ अल्जाइमर और डिमेंशिया जैसी स्थिति पैदा कर सकता है, इसलिए जितना हो सके उतना सोशलाइज होने की कोशिश करें।
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कस्टमाइज़ करेंअपनी व्यस्त दिनचर्या से समय निकालें और दोस्तों के साथ बाहर जाएं, बातचीत करें, नए-नए लोगों से मिलें और कुछ नहीं तो कम से कम वीकेंड पर एक छोटी सी किटी पार्टी ऑर्गेनाइज कर लें। आसपास के लोगों को अपना दोस्त बनाएं और छोटी मोटी एक्टिविटी जैसे कि इवनिंग और मॉर्निंग वॉक कर सकती हैं। यह फैक्टर्स आपके मेंटल हेल्थ के लिए काफी ज्यादा मायने रखते हैं।
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन के अनुसार मेडिटेशन, जर्नलिंग और योग जैसी माइंडफूलनेस के अभ्यास को मेंटल हेल्थ के लिए काफी असरदार माना जाता है। यह ब्रेन को एक्टिव और शांत रखते हुए स्ट्रेस मैनेजमेंट में भी मदद करते हैं। स्ट्रेस डिमेंशिया का एक सबसे बड़ा कारण होता है, यदि आप स्ट्रेस मैनेज करना जानती हैं, तो डिमेंशिया की स्थिति से खुद को बचा सकती हैं।
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