कोविड-19 की पुष्टि होते ही अस्पताल में भर्ती होने के ख्यांल से ही कइयों के दिमाग में उथल-पुथल शुरू हो जाती है। जहां शुरुआत में इसे लेकर एक तरह की शर्मिंदगी का माहौल था, वहीं अब बहुत से मरीज़ अस्पताल में भर्ती होने के बाद उनके हिस्से आने वाले एकांत और अलगाव के अपने अनुभवों को साझा करने से नहीं हिचक रहे।
हाल ही में, बॉलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्चकन ने कोविड मरीज़ घोषित होने के बाद अस्पाताल में भर्ती होने के अपने ऐसे ही अनुभवों को बांटा और समाज से अलग-थलग हो जाने की मनोग्रंथि का उल्लेख भी किया।
दरअसल, जब भी कोई व्यसक्ति समाज से कटकर अलग-थलग पड़ जाता है, तो कई बार वह विचारों और भावनाओं के ऐसे अतिरेक से गुजरता है, जिन्हेंय उसका अपना मस्तिष्कि संभाल नहीं पाता।
ऐसे में हो सकता है कि वह अपने अतीत से जुड़ी घटनाओं पर अत्यधिक विचार करने लगे, या फिर यह सोचने लग सकता है कि भविष्यन में उसके साथ क्याक कुछ घट सकता है और साथ ही, वह अपराधबोध, शर्मिंदगी, अवसाद, आक्रोश, निराशा जैसे भावों का भी अनुभव कर सकता है।
एक और बड़ी चिंता इस बात को लेकर भी होती है कि कैसे “मैं पूरे परिवार के लिए संक्रमण की वजह हो सकता हूं”, “अब सभी को जांच करानी होगी” तथा “पॉजिटिव होने पर उन्हें भी अस्प ताल में भर्ती होना होगा।“ यह समय मरीज़ के लिए वाकई मुश्किल होता है और अकेले समय बिताना इस वजह से भी चुनौतीपूर्ण होता है कि ध्याकन बंटाने के साधन बहुत सीमित होते हैं।
अस्पलतालों के आइसोलेशन वार्डों एवं कमरों में स्टाफ की आवाजाही भी काफी कम अवधि के लिए होती है और वो भी प्रोटेक्टिव गीयर में, जिसके चलते मरीज़ खुद को और भी अलग तथा अलगाव में महसूस करता है।
मानवीय संपर्क और आदान-प्रदान जो हमें रोज़मर्रा की जिंदगी में सामान्य बनाए रखता है, वही इस स्थिति में हमसे छिन जाता है और ऐसे में मरीज़ के लिए खुद को सकारात्मक और आशावादी बनाकर रखना और भी दूभर हो जाता है। यह समय उनके व्यक्तित्व और धैर्य की भी परीक्षा लेता है।
सच तो यह है कि अस्प्तालों के आइसोलेशन वार्डों का माहौल ही वहां मौजूद किसी भी मरीज़ के हौंसले को बुरी तरह से झिंझोड़ सकता है।
ऐसे में, कमरों और वार्डों में बेहतर प्रकाश व्यवस्था , सूरज की रोशनी, यदि संभव हो तो, और यह काफी हद तक इस पर निर्भर करती है कि अस्पाताल का निर्माण किस तरह से है।
इसके अलावा, मरीज़ों के कमरों में हमेशा साफ-सफाई पर ज़ोर देने की बजाय उनमें मूड बेहतर बनाने वाली व्यतवस्था की जानी चाहिए। हालांकि तत्काल ऐसा करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन यह काफी महत्वपूर्ण है और इस पर विचार किया जाना चाहिए।
कुल-मिलाकर, ऐसी परिस्थिति में किसी भी तरह से आशावादिता बनाए रखनी जरूरी है। इसके लिए जितना हो सके, इस दौरान दूसरों के संपर्क में बने रहें और इसके लिए डिजिटल प्लेतफार्मों का सहारा लें।
साथ ही, यह भी जरूरी है कि मरीज़ों के लिए मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करायी जानी चाहिए। ये सेवाएं आइसोलेशन वार्डों में रह रहे मरीज़ों के लिए काफी उपयोगी हो सकती हैं।
जो मरीज़ अपने विचारों या अहसासों को संभाल नहीं पाते उन्हें प्रशिक्षित विशेषज्ञों की सलाह-मशविरे से काफी मदद मिलती है।
लेकिन जहां कहीं विशेषज्ञ उपलब्ध नहीं हैं, उन जगहों पर मरीज़ों के लिए हैल्पलाइन एक्सेस होना चाहिए। ताकि वे जरूरत महसूस होने पर इनके माध्यम से विशेषज्ञों के साथ बातचीत कर सकें।