“सौम्या, इधर आओ। यह कुशन टेढ़ा किसने रखा? कप कोस्टर के ऊपर क्यों नहीं है? और बिस्तर पर इतनी सिलवटें क्यों हैं?” ये वाक्य सुनते हुए मेरी दोस्त सौम्या को रोज ऐसा लगता था कि उसकी मम्मी हमेशा इन छोटी-छोटी चीजों को लेकर कितना परेशान करती हैं। पर वास्तव में वे परेशान कर नहीं रहीं थीं, बल्कि खुद भी परेशान थीं। घर की साफ-सफाई, अपनी हाइजीन और यहां तक कि सिक्योरिटी को लेकर भी वे एक अजीब तरह का व्यवहार करने लगीं थीं। जब डॉक्टर से बात की गई, तब पता चला कि ये सभी संकेत ओसीडी की हैं। इन लक्षणों पर अगर समय रहते ध्यान न दिया जाए, तो यह पीड़ित व्यक्ति और उसके परिवार-दोस्तों, सभी के लिए एंग्जाइटी और तनाव का कारण बन सकते हैं।
OCD, या Obsessive-Compulsive Disorder, एक मानसिक स्वास्थ्य विकार है जिसमें व्यक्ति को लगातार अनावश्यक और परेशान करने वाले विचार (obsessions) आते हैं। इनसे निपटने के लिए वह बार-बार ऐसा व्यवहार करता है, जिसे कंट्रोल कर पाना उसके लिए भी मुश्किल होता है।
व्यक्ति को बार-बार ऐसे विचार आते हैं जो उसे बहुत परेशान करते हैं।
यह समस्या पहली समस्या से निपटने के लिए सामने आती है। बार-बार आने वाले अनावश्यक ख्यालों के समाधान के रूप में व्यक्ति ऐसा व्यवहार करने लगता है। जो उसके अपने वश के बाहर होता है।
सीनियर कन्सलटेंट और साइकिएट्रिस्ट डाॅ कृष्णा मिश्रा के अनुसार, इसे एक गंभीर बीमारी के रूप में माना जाना चाहिए। इसे सिर्फ तनाव या याददाश्त की समस्या मानकर नहीं छोड़ा जा सकता।
इसमें दिमाग के केमिकल बैलेंस, जेनेटिक प्रवृत्तियां और न्यूरोलॉजिकल असामान्यताएं शामिल होती हैं। ये सब कारण मिलकर व्यक्ति की मानसिक स्थिति को प्रभावित कर सकते हैं और ओसीडी के विकास में योगदान दे सकते हैं।
जीवन की तनावपूर्ण स्थितियां, परिवार का माहौल, और समाज का दबाव ओसीडी (ऑब्सेसिव-कंपल्सिव डिसऑर्डर) के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। जब किसी व्यक्ति को मानसिक या भावनात्मक तनाव का सामना करना पड़ता है, तो इससे उनके व्यवहार और सोचने के तरीके पर असर पड़ सकता है। इसके अलावा, परिवार में अगर ऐसे मुद्दे होते हैं या समाज में अपेक्षाएँ होती हैं, तो वे भी ओसीडी को बढ़ावा दे सकते हैं।
इसमें व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य, उसकी सोचने की आदतें और पहले के अनुभव जैसे मानसिक पहलू शामिल होते हैं। ये सभी चीजें मिलकर यह तय करती हैं कि किसी व्यक्ति को ओसीडी जैसी समस्या का सामना करना पड़ सकता है या नहीं। तनाव और नशा भी ओसीडी को ट्रिगर कर सकते हैं।
ओसीडी का इलाज सही समय पर होना अत्यधिक ज़रूरी है। अन्यथा, यह अपने साथ कई और मानसिक विकार उत्पन्न कर सकता है। ओसीडी का इलाज आमतौर पर काउंसलिंग और दवाइयों के माध्यम से किया जाता है।
दवाइयों के कुछ साइड इफेक्ट्स भी संभव हैं, इसलिए दवा लेते समय किसी भी असामान्य लक्षणों के बारे में अपने डाॅ. को सूचित करना हमेशा अच्छा होता है। साइकिएट्रिस्ट आमतौर ट्रीटमेंट पूरा करने के लिए थेरेपी की सलाह देते हैं।
ओसीडी के उपचार में इस्तेमाल की जाने वाली CBT थेरेपी व्यक्ति को अनुपयुक्त या नकारात्मक विचारों और व्यवहारों के पैटर्न को पहचानने और समझने में मदद कर सकती है।
यह CBT का एक प्रकार है इसमें डराने वाली स्थितियों या ओब्सेशन और कंपल्शन के मूल कारणों के प्रति धीरे-धीरे एक्सपोजर दिया जाता है। ERP का उद्देश्य है कि आप ओब्सेशन से होने वाले तनाव को बिना किसी कंपल्सिव व्यवहार के सामना करना सीखें।
इसमें ओब्सेसिव विचारों से होने वाले तनाव से निपटने के लिए माइंडफुलनेस कौशल सीखना शामिल है।
डॉ. कृष्णा अंत में कहते हैं कि OCD की लड़ाई सिर्फ पीड़ित की नहीं, बल्कि उसके परिवार की भी होती है और सबके संयुक्त प्रयास से ही यह संभव है।
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