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National Doctors Day : आइए योद्धाओं की जुबानी सुनें, कोरोना से जंग की उनकी कहानी

वो पर्चें पर बस दवा का नाम ही नहीं लिखते, दुआ की चिट्ठी पढ़ना भी जानते हैं। न्यूनतम संसाधनों के बावजूद जो दिलासा देते रहे, आइए उनसे जानें कि इन हालात में उन पर क्या बीती।
इससे बाहर निकालने के लिए आप थेरपी सेशन की मदद लें। चित्र: शटरस्टॉक
योगिता यादव Updated: 17 Oct 2023, 17:04 pm IST
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कोविड-19 की पहली लहर से भी ज्यादा घातक रही दूसरी लहर। हम अभी लड़खड़ा ही रहे थे कि इस दूसरी लहर ने तीव्र हमला बोल दिया। न्यूनतम संसाधन और सीमित उपचार के साथ जो आपदा के इस समय में हम सभी की ढाल बने, वे हैं डॉक्टर। कोरोनावायरस से बचाने की जद्दोजहद में लगे डॉक्टर और उनके सहयोगी भूख, प्यास, परिवार और थकान तक भुला बैठे थे। आज नेशनल डॉक्टर्स डे के अवसर पर जानें उनके अनुभव।

हमारे पास थकने का समय नहीं था

डॉ. मनोज शर्मा, सीनियर कंसल्‍टैंट, इंटरनल मेडिसिन, फोर्टिस अस्‍पताल वसंत कुंज

कोविड की पहली और दूसरी लहर ने हमें अचानक दबोच लिया था। अभी हम पहली कोविड लहर के आंकड़ों का विश्‍लेषण करने की कोशिश कर रहे थे कि दूसरी लहर ने बिना कोई पूर्वाभास दिए हमला बोल दिया।

मुझे याद है जब पहली बार कोविड के मरीज़ का इलाज करते हुए चिंता और सावधानी से घिरा था, लेकिन कुछ ही दिनों में ऐसे मरीज़ों की संख्‍या सैंकड़ों में जा पहुंची थी। आमतौर पर मैं सवेरे 6 बजे दिन शुरू करता हूं, लेकिन कोविड का हमला शुरू होने के बाद से मैं सुबह 5 बजे से काम शुरू करने लगा और काम का सिलसिला खत्‍म ही होने में नहीं आता था।

हमारे पास थकने का समय नहीं था।

दिन कब रात में बदल जाता, पता भी नहीं चलता था और हर दिन अंधकारमय होता जा रहा था। हमारे घर में मेरे लिए एक कमरा अलग है, जहां मैं आराम करता हूं, खाना खाता हूं और वहीं से काम पर चला जाता हूं।

कभी-कभी हम बहुत असहाय भी महसूस करते थे, लेकिन परिवार, मित्रों और सहयोगियों के साथ ने कभी अकेलापन नहीं महसूस होने दिया। और हां, इस मुश्किल दौर में संगीत मेरा सबसे बड़ा सपोर्ट सिस्‍टम बना रहा है।

एक मां और एक डॉक्टर, मैं दोहरे मोर्चे पर थी

डॉ. सुरभि सिद्धार्थ, सलाहकार प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ, मदरहुड हॉस्पीटल खारघर, नवी मुंबई

दो बच्चों की मां होने के नाते, उनके पोषण का ध्यान रखना, भावनात्मक रूप से उनका समर्थन करना हमेशा कठिन रहा है, जब उनकी पूरी दुनिया घर के अंदर सीमित है और ऑनलाइन कक्षाएं एक कठिन कार्य है। एक मां और डॉक्टर के रूप में यह चुनौतीपूर्ण रहा है।

पिछले एक साल से बच्चे का स्कूल बंद होने के कारण, बच्चों और उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए यह कठिन है। वे साल भर अपने दोस्तों और अपने शिक्षकों से नहीं मिल पाए। इसके अलावा, हमारे फ्रंटलाइन काम के कारण मेरी अनुपस्थिति।

कोरोनावायरस और तनाव से निपटना और फिर बच्चों को मानसिक रूप से शारीरिक रूप से मजबूत रखना चुनौतीपूर्ण है। जब कॉरपोरेट जगत पूरी तरह से बंद हो गया था, घर बैठे काम कर रहे थे, तो हम डॉक्टर साल भर अपने मरीजों की देखभाल के लिए सामने रहे हैं।

मैं दोहरे मोर्चे पर थी।

लोग बिछड़ रहे थे

कई बार मैं इस बात को लेकर चिंतित और डरा हुआ महसूस करती थी कि क्या घर वापस आने से हर तरह की बीमारियां घर में आ जाएंगी। यह जानलेवा वायरस कभी भी कोई भी बदलाव ला सकता है। खासकर दूसरी लहर हमारे लिए इतनी बेचैनी लेकर आई। हर तरफ हमारे रिश्तेदारों और दोस्तों के मरने और बुरी तरह बीमार पड़ने की खबरें आ रही थीं।

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फोन और वीडियो कॉल पर इन परिवार और दोस्तों का समर्थन करना हमारे लिए एक आवश्यकता बन गया। उनके मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य से निपटना कठिन रहा है, लेकिन हमने किया। मेरे बहुत करीबी डॉक्टर मित्रों में से एक इस दूसरी लहर के दौरान लगभग अवसाद में चला गया, क्योंकि उन्होंने कई परिवारों और दोस्तों के हताहतों को देखा।

मुझे मजबूत रहना था

मैंने सुनिश्चित किया कि मैं उसे रोजाना दो बार फोन करूं और उसके ठिकाने के बारे में पूछूं। मजबूत रहना कठिन था, लेकिन ऐसा करना महत्वपूर्ण था। इस तरह के तनाव से निपटने के लिए हम एक परिवार के तौर पर कई चीजों में शामिल रहे हैं। हमने यह सुनिश्चित किया कि हम लगभग रोजाना सुबह का पारिवारिक व्यायाम करें।

साथ में सुबह का नाश्ता करना एक और अच्छी बात थी, जो इस लॉकडाउन ने हमें सिखाया। यहां तक कि अपनी दिनचर्या को एक साथ साझा करना भी। परिवार के लिए अच्छा खाना बनाना और बच्चों को खाना पकाने की गतिविधियों में शामिल कर उन्हें खुश कना भी शामिल था। सोने से पहले हम रोजाना बोर्ड गेम खेलते, हंसते और तनावमुक्त होते थे।

महामारी में लोग अवसाद में जा रहे थे, और हमें उन्हें संभालना था।

हमने सुनिश्चित किया कि हम किसी भी टीवी चैनल पर कुछ मजेदार देखें। हमने सुनिश्चित किया कि बच्चों को तनावपूर्ण मीडिया समाचारों से दूर रखा जाए। उन्हें केवल बुनियादी खबर दी गई थी। हम वीडियो कॉल पर अपने करीबी दोस्तों और परिवार से भी जुड़े। ग्रुप वीडियो कॉल पर जन्मदिन और वर्षगांठ मनाना हमें परिवार और दोस्तों के करीब रखता है।

बच्चों के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक उनकी शिक्षा है जो महामारी के कारण प्रभावित हुई है। हमने यह सुनिश्चित किया कि लगभग सभी गतिविधियां जो ऑनलाइन की जा सकती हैं जैसे नृत्य, संगीत और शतरंज की कक्षाओं को जोड़ा। हमने यह सुनिश्चित किया कि बच्चों के पास गेम खेलने या टीवी देखने का समय कम हो, लेकिन वे सीखने की गतिविधियों में लगे रहें, जिससे उनका निरंतर विकास होता है।

वे पहले से ही टूटे हुए थे, हमें उन्हें संभालना था

डॉ विनीता गोयल, डायरेक्‍टर एवं एचओडी, रेडिएशन ओंकोलॉजी, फोर्टिस अस्‍पताल शालीमार बाग

कैंसर का उपचार किसी आपातकालीन स्थिति जैसा होता है और इसमें देरी करना उचित नहीं होता। इससे जूझ रहा व्यक्ति पहले से ही काफी ज्यादा हताश महसूस कर रहा होता है। उस पर कोविड-19 की सूनामी। इस दौरान कैंसर मरीज़ों का इलाज करना वाकई बहुत मुश्किल था। यह न सिर्फ मरीज़ों के लिए, बल्कि उनके परिजनों और हेल्‍थ केयर स्‍टाफ के लिए भी काफी चुनौती भरा था।

कई मरीज़ों ने तो कैंसर की जांच और उपचार को कोविड की आशंका के चलते टाल दिया था। नतीजतन, हमारे पास बाद में कई मरीज़ कैंसर के एडवांस स्‍टेज में आए।

हमने कई तरह की रणनीतियों की मदद से कैंसर और कोविड दोनों से मुकाबला करने की योजना बनायी। हमने कई बार ऑनलाइन कंसल्‍टेशन दिया और ऑनलाइन उपचार तथा दवाओं के बारे में मश्विरा दिया। इसी तरह, अनेक प्रोटोकॉल्‍स का पालन करते हुए रेडिएशन थेरेपी के शॉर्ट कोर्स वगैरह दिए गए। उपचार का समय घटाने तथा अस्‍पताल आने-जाने में कमी के लिए गहन कीमोथेरेपी डोज़ जैसे विकल्‍पों को भी अपनाया गया।

कैंसर रोगियों को संभालना और भी चुनौतीपूर्ण था।

अस्‍पतालों को सोशल डिस्‍टेंसिंग के मुताबिक ढाला गया तथा नियमित सेनिटाइज़ेशन जैसे नियमों का पालन किया गया। मरीज़ों को भी अस्‍पताल में कोविड अनुरूप बर्ताव का पालन करने की सलाह दी गई। वैक्‍सीन उपलब्‍ध होने के बाद हमने मरीज़ों एवं उनके परिवारों को बेहतर सुरक्षा के लिए वैक्‍सीनेशन की सलाह दी।

कैंसर और कोविड से लड़ना किसी चुनौती से कम नहीं था, लेकिन हमने हिम्‍मत नहीं छोड़ी!

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योगिता यादव

कंटेंट हेड, हेल्थ शॉट्स हिंदी। वर्ष 2003 से पत्रकारिता में सक्रिय। ...और पढ़ें

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