वर्किंग वीमेन को दोहरी जिम्मेदारी निभानी पड़ती है। उन्हें मुस्तैद होकर ऑफिस वर्क करना पड़ता है। साथ ही, घर की सारी व्यवस्था चाक चौबंद रखनी पड़ती है। ये दोनों जिम्मेदारियां निभाते हुए न सिर्फ खुद को फिट रख पाती हैं, बल्कि मेंटल लेवल पर भी खुद को मजबूत बनाती हैं। हाल में एक शोध से यह साबित हुआ है कि वर्किंग मॉम के बच्चे बड़े होने पर अधिक खुश रहते हैं। वे घर पर रहने वाली मांओं के बच्चे की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करते हैं (how does a working mother affect a child )। मदर्स डे (Mothers day 2023) पर मांओं के लिए यह एक अच्छी खबर है।
मां के कार्यों के प्रति सम्मान प्रकट करने, मैटर्नल बांड के प्रति प्यार जताने और मदरहुड को सेलिब्रेट करने के लिए मदर्स डे मनाया जाता है। यह दुनिया के कई हिस्सों में अलग-अलग दिनों में मनाया जाता है। भारत में मई महीने के दूसरे संडे को मदर्स डे (14 May) मनाया जाता है। इस वर्ष मदर्स डे की थीम मातृत्व का जश्न मनाने और विश्व स्तर पर माताओं का सम्मान करने पर केंद्रित है। इस बार इस अंतर्राष्ट्रीय दिवस का उद्देश्य मदरहुड आईडिया को पहचानना और स्वीकार करना (acknowledge the idea of motherhood) है।
हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के शोधकर्ताओं ने 29 देशों में 100,000 से अधिक पुरुषों और महिलाओं पर सर्वे किया। इसमें भारत की महिलाएं भी शामिल थीं। इस सर्वेक्षण का उद्देश्य यह पता लगाना था कि वर्किंग मॉम होने पर बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है। वे ऑफिस में काम करने पर घर के लिए कितना समय दे पाती हैं।
इस अध्ययन में यह बात सामने आई कि वर्किंग मॉम के बच्चे घर पर रहने वाली मांओं के बच्चों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करते हैं। यह प्रभाव बेटों और बेटियों पर बराबर रूप से पड़ता है। कामकाजी मांओं की बेटियां अपने आप को आत्मनिर्भर बनाने के प्रति ज्यादा बेहतर तरीके से सजग हो पाती हैं।
शोध में यह बात सामने आई कि कामकाजी मांओं के पास समय की कमी होती है, यह बात बच्चे भी समझते हैं। इस तरह वे समय की क्वांटिटी से ज्यादा क्वालिटी को बेहतर तरीके से समझने लगते हैं। बच्चे भी उनके साथ गुणवत्तापूर्ण समय बिताने के लिए तत्पर रहते हैं। वे उनकी बातों और प्रयासों को हल्के में नहीं लेते हैं। धीरे-धीरे वे उन्हें अपना रोल मॉडल मान लेते हैं।
पेरेंट्स बच्चे के विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। वर्किंग मॉम के साथ एक प्लस पॉइंट यह होता है कि वे बच्चों की वित्तीय जरूरतों को पूरा कर सकती हैं। घर और बाहर के अनुभवों से लैस होने के कारण वे जीवन के किसी भी निर्णय या प्रश्न का जवाब अधिक व्यावहारिक ढंग से दे सकती हैं। वे उन्हें बेहतर ढंग से व्यावहारिक जीवन कौशल सिखा सकती हैं। बच्चे उनसे टाइम मैनेजमेंट का स्किल भी सीख सकते हैं।
हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के अध्ययन के निष्कर्ष इस बात पर जोर देते हैं कि वर्किंग मॉम के साथ बड़ी होने वाली बेटियां अपने घर पर रहने वाली मांओं की बेटियों की तुलना में 23 प्रतिशत अधिक कमाती हैं। वहीं यह भी पाया गया है कि जिन लडकों की मां वर्किंग होती हैं, वे अपने ऑफिस में फीमेल कलिग के साथ अधिक सपोर्टिव होते हैं। वे जेंडर इक्वलिटी में विश्वास करते हैं। वर्किंग मॉम के ज्यादातर बच्चे डे केयर में बड़े होते हैं। इसलिए उनमें सोशलाइजेशन और कम्युनिकेशन स्किल अच्छी तरह डेवलप होता है।
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