अवसाद आज के समाज में आम शब्दावली है। यद्यपि अवसाद से पीड़ित लोगों के संदर्भ में अब भी एक टैबू है। अभी तक हमने केवल यह स्वीकार करना शुरू किया है कि यह सामान्य है। हर पांच में से एक व्यक्ति अपने जीवनकाल में कभी न कभी अवसाद से ग्रस्त होता है।
इतना प्रचलित होने के बावजूद, अब भी हम इसके बारे में कुछ खास नहीं जानते हैं। हम अपनी उदासी और भावुकता को कई बार बड़ी लापरवाही से ‘अवसाद’ का नाम दे देते हैं। अवसाद भाषाई रूप से भावना के साथ-साथ विकार के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। हालांकि, उदास होना या उदासी महसूस करना, कुछ समय के लिए नकारात्मक विचार आने का मतलब अवसादग्रस्त होना नहीं है। ये हमारी भावनाएं हैं और इनमें उतार-चढ़ाव आना बहुत सामान्य है।
जब मूड खराब हो, कम ऊर्जा हो, रूचि में कमी आना, नींद, और भूख में गड़बड़ी जैसे लक्षण, संज्ञानात्मक कठिनाइयों के साथ दो सप्ताह से अधिक समय तक लगातार रहते हैं, तो इसका मतलब है कि वह व्यक्ति अवसादग्रस्तता विकार या आम आदमी के शब्दों में कहें तो अवसाद का शिकार है।
हालांकि, अक्सर यह देखा गया है कि अवसाद के लक्षण महीनों तक चलते हैं। कई बार यह इतना तीव्र होता है कि लंबी अवधि तक रिकवरी नहीं हो पाती। इसके हल्के या गहरे लक्षण रह-रहकर वापस आते रहते हैं। इसके लिए मेडिकल टर्म में एक अलग शब्द है, जिसे गंभीर या पुराना अवसाद अथवा क्रोनिक डिप्रेशन कहा जाता है।
क्रोनिक अवसाद एक अलग तरह की समस्या है। इसमें लगातार अवसादग्रस्तता विकार (Dysthymia) होता है। जिसमें किसी भी तरह की इंटर एपिसोडिक रिकवरी नहीं हो पाती। इमसें तनाव के साथ-साथ लंबी अवधि तक अवसाद मौजूद रहता है।
परसिस्टेंस डिप्रेसिव डिसऑर्डर (डिस्थीमिया) को अकसर मूड ऑफ रहना, रूचि में कमी, ऊर्जा में कमी, फोकस मेंं कमी, भविष्य के प्रति धकारमय और निराशावादी परिकल्पना, नींद में परिवर्तन, भूख और यौन इच्छा में कमी के रूप में लक्षित किया जाता है। डिस्थीमिया मेंं ये लक्षण दो साल या उससे ज्यादा समय तक लगातार होते हैं।
डिस्थीमिया से ग्रस्त व्यक्ति प्रोडक्टिव होता है और समाज में सक्रिय रूप से भाग लेने की कोशिश कर रहा होता है। अक्सर, उन्हें निराशाजनक व्यक्तित्व, ‘हमेशा उदास रहने वाला’ या ‘कभी खुश न होने वाले’ व्यक्ति के रूप में लेबल किया जाता है। अक्सर डिस्थीमिया का निदान करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है क्योंकि इससे ग्रस्त व्यक्ति कामकाज को बनाए रखता है।
आवर्ती अवसादग्रस्तता विकार (Recurrent depressive disorder) पुअर इंटर-एपिसोडिक रिकवरी के साथ खुद ब खुद जाहिर हो जाता है। इसमें अवसाद के कई एपिसोड होते हैं। पर दोनों के बीच कोई रिकवरी नहीं हो पाती।इसलिए, कई बार ऐसा महसूस होता है कि व्यक्ति एपिलेशन और लक्षणों के विचलन के साथ अवसाद की लंबी अवधि सेे गुजर रहा है। डिस्थीिमिया केे लक्षण समान होते हैं, बस इनके स्तर में बदलाव होता रहता है।
लंबे समय तक अवसादग्रस्तता प्रकरण द्वितीयक तनाव एक एकल अवसादग्रस्तता प्रकरण है जो लंबे समय तक वैसा ही बना रहता है या चल रहे तनाव के कारण गंभीरता को बढ़ाता है। यह मनोवैज्ञानिक या शारीरिक हो सकता है, जिसमें मधुमेह, कैंसर, हाइपोथायरायडिज्म जैसी पुरानी बीमारी शामिल है। लगातार चलनेे वाला तनाव इनके लक्षण कम नहीं होने देता। इसके लक्षण भी डिप्रेसिव डिसऑर्डर के समान ही हैं।
क्रोनिक डिप्रेशन की समस्या को देखते हुए, पहला संकेत यह है कि यह लंबे समय से चले आ रहे अवसाद के अलावा कुछ भी नहीं है। तो फिर इतनी परेशानी क्यों? इसलिए इसे समझना और भेद करना महत्वपूर्ण है।
क्रोनिक अवसाद मूल रूप से आनुवांशिक है और मनोदशा विकार का पारिवारिक इतिहास आम है। क्रोनिक अवसाद मस्तिष्क और शरीर के अन्य महत्वपूर्ण अंगों पर विनाशकारी प्रभाव डालता है। क्रोनिक अवसाद न्यूरोनल सर्किट प्रसंस्करण में भावनाओं के परिवर्तन का कारण बनता है। यह ब्रेन के फंक्शन में परिवर्तन और मस्तिष्क में स्थायी परिवर्तन (क्षति पढ़ें) का कारण बनता है।
यह दिल और अन्य महत्वपूर्ण अंगों को भी प्रभावित करता है। शोध से पता चलता है कि जिन रोगियों को दिल के दौरे का सामना करना पड़ा और जो क्रोनिक डिप्रेेशन से ग्रस्त थे उन्हें जोखिम ज्यादा था। क्रोनिक डिप्रेशन हमारे पाचन तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और कब्ज, खराब अवशोषण, और विटामिन की कमी जैसी दीर्घकालिक समस्याओं का कारण बनता है। अक्सर, जो लोग लंबे समय से चले आ रहे और कई तरह के दर्द की शिकायत करते हैं, वे क्रोनिक डिप्रेशन से पीड़ित हो सकते हैं।
क्रोनिक डिप्रेशन का उपचार दवाओं और मनोचिकित्सा से संभव है
आमतौर पर एसएसआरआई (selective serotonin uptake inhibitors) उर्फ सेरोटोनिन बढ़ाने वाली दवाओं को संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी के साथ इस्तेमाल किया जाता है। असली चुनौती पीडित व्यक्ति, मनोचिकित्सक और मनोवैज्ञानिक के बीच एक टीम के रूप में लगाता काम कर पाना है। उपचार का निर्धारण भी कारण का पता लगाने पर ही निर्भर करता है। चाहे वह रोजमर्रा के माहौल में पनपने वाला तनाव हो या आनुुवांशिक कारण हो। इसलिए, प्रारंभिक निदान और उपचार शुरू करने में सक्षम होना महत्वपूर्ण है।
याद रखें, यदि आप को या ऐसे आपके आसपास किसी व्यक्ति में अवसाद के लक्षण महसूस होते हैं, तो उन्हेें उपचार के लिए प्रेरित करें।