बदलते वक्त के साथ मेंटल हेल्थ और उससे जुड़ी समस्याओं पर बात शुरू हो गई। धीरे धीरे अब ये विमर्श आम लोगों में भी बढ़ रहा है कि फिजिकल हेल्थ की ही तरह मेंटल हेल्थ पर भी ध्यान दिया जाना जरूरी है। इसी लिए अब इसके समाधान भी खोजे जा रहे हैं। मेंटल हेल्थ दुरुस्त रखने के तरीकों में से ऐसा ही एक तरीका है माइक्रो रिटायरिंग। ऐसा तरीका जो हमारे मेंटल पीस को बनाए रखने में तो मदद तो करता ही है लेकिन साथ ही हमें काम से या इनकम से दूर भी नहीं करता और हम इसे अपनाकर और ज्यादा प्रोडक्टिव बन पाते हैं। आज हम एक्सपर्ट की मदद से इसी तरीके पर बात करने वाले हैं।
आम भाषा में कहें तो माइक्रो रिटायरमेंट का मतलब है, काम करते हुए छोटे-छोटे समय के लिए ब्रेक लेना, ताकि आप शारीरिक और मानसिक रूप से तरोताजा रहें। यह एक लंबी रिटायरमेंट के बजाय, जीवन के बीच-बीच में छोटी-छोटी छुट्टियाँ लेने का तरीका है। यह कोई ऐतिहासिक या परंपरागत तरीका नहीं है बल्कि एक नया तरीका है, जो आजकल के कामकाजी लोगों के बीच ट्रेंड बन गया है।
दिल्ली बेस्ड मेंटल हेल्थ काउन्सलर निकिता देशमुख के अनुसार माइक्रो रिटायरमेंटके दौरान कोई भी व्यक्ति अपनी नौकरी या रोज की जिम्मेदारियों से कुछ समय के लिए दूर जाता है। लेकिन यह रिटायरमेंट पर पूरी तरह से नहीं जाता, बल्कि ये छोटे अंतराल होते हैं जैसे कि 2-3 महीने का समय, जिसमें आप अपने शौक पूरे करते हैं, ट्रेवल करते हैं या खुद के लिए समय निकालते हैं।
इस तरह की डिबेट अब आम हो गई है कि सिर्फ पैसे कमाने के लिए अपना पूरा समय निचोड़ना सही नहीं है। लोग ज्यादा बैलेंस्ड जीवन जीने की कोशिश करते हैं। इसलिए वे माइक्रो रिटायरिंग को पसंद कर रहे हैं, क्योंकि इसमें उन्हें काम के बीच भी खुद के लिए वक्त मिलता है।
लोगों पर अकसर एक दबाव रहता है, चाहे वो समाज का हो, परिवार का हो, या फिर करियर की दिशा को लेकर हो। वे बहुत जल्दी बर्न आउट महसूस करते हैं। माइक्रो रिटायरिंग इसीलिए उन्हें मदद करती है, क्योंकि वे समय-समय पर अपने मानसिक दबाव को कम करने के लिए थोड़ा रुक सकते हैं।
यह उन लोगों के लिए सबसे सही है जो लगातार नई चीजें सीखते रहते हैं। कभी डांस, कभी ट्रैवल, कभी नया कोर्स – वे जानते हैं कि जीवन सिर्फ ऑफिस और काम के बारे में नहीं है। माइक्रो रिटायरिंग उन्हें अपने शौक और इंटरेस्ट्स को एक्सप्लोर करने का समय देती है।
किसी की जिंदगी में फ्रीडम बहुत मायने रखती है। माइक्रो रिटायरिंग आपको अपने समय को खुद कंट्रोल करने का मौका देती है। मतलब, अगर आप कुछ महीने काम करना चाहते हैं और फिर कुछ समय के लिए अपना खुद का समय लेना चाहते हैं, तो वे यह कर सकते हैं।
मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखना कितना जरूरी है, यह कहने की बात नहीं है। माइक्रो रिटायरिंग आपको अपनी हेल्थ पर ध्यान देने का अवसर देती है, जैसे मेडिटेशन करना, योग करना। इससे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों दुरुस्त रहता है।
लगातार काम करने से मानसिक थकान और तनाव बढ़ता है। माइक्रो रिटायरिंग के दौरान व्यक्ति अपने आप को पूरी तरह से रिलैक्स करता है जिससे स्ट्रेस लेवल कम होता है। आप जब छोटे-छोटे ब्रेक लेते हैं तो दिमाग तरोताजा महसूस करता है और इससे आपकी मानसिक स्थिति पर सकारात्मक असर पड़ता है।
जब लोग लगातार काम करते रहते हैं, तो ‘बर्नआउट’ की स्थिति बन सकती है जहां व्यक्ति खुद को थका हुआ और नाखुश महसूस करने लगता है। माइक्रो रिटायरिंग इस बर्नआउट से बचाव करने में मदद करती है, क्योंकि इससे काम के बीच छोटे ब्रेक मिलते हैं और मेंटली ताजगी आती है।
जब लोग खुद को थोड़ा रिचार्ज करते हैं तो वे काम पर ज्यादा फोकस कर सकते हैं। माइक्रो रिटायरिंग के दौरान लिया गया ब्रेक व्यक्ति को मानसिक शांति और एनर्जी देता है जिससे उनका काम करने का तरीका अच्छा होता है और उनकी प्रोडक्तिविटी भी बढ़ती है।
माइक्रो रिटायरिंग से व्यक्ति के दिमाग को आराम मिलता है और इसका असर उनकी क्रिएटिविटी पर पड़ता है। जब आप थोड़ा समय लेकर अपने दिमाग को फ्री करते हो तो नए विचार और समस्याओं के हल पर सोचने का मौका मिलता है। ये उनके लिए ज्यादा फायदेमंद है जो क्रिएटिव फील्ड में हैं।
यह माइक्रो रिटायरमेंट का बड़ा फायदा हो सकता है कि आप खुद के साथ समय बिता कर ये जानने में कामयाब हो सकते हैं कि आप असल में क्या चाहते हैं। आपकी पसंद और नापसंद क्या है? कई बार समाज या परिवार के दबाव में हम ऐसा काम करते हैं जो हमें पसंद नहीं होता लेकिन हम अपनी जरूरतों के लिए उसे करते रहते हैं। ऐसे मौकों पर जब हम ब्रेक लेते हैं तो पता चलता है कि हम वाकई क्या चाहते हैं और फिर हम उस हिसाब से काम करते है जिससे हमको संतुष्टि मिलती है।
निकिता कहती हैं कि अगर आप माइक्रो रिटायरमेंट को अपनाना चाहते हैं तो सबसे पहले यह तय करें कि आपके लिए सबसे अच्छा ब्रेक क्या होगा। क्या आप ट्रेवल करना चाहते हैं, क्या आप एक नई स्किल सीखना चाहते हैं या फिर आपको बस घर पर रहकर आराम करना पसंद है? एक बार यह तय कर लें, तो फिर उसे अपनी दिनचर्या में शामिल करें।
बस आपको ध्यान ये रखना है कि आपके पसंद का काम क्या है और जब भी आप ब्रेक लें, अपने पसंदीदा काम करें और फिर देखिए कि जब आप ब्रेक से वापस लौटेंगे तो आपका काम में और ज्यादा मन लगेगा और आप तरो-ताज़ा महसूस करेंगे।
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