कोविड-19 कोरोनावायरस के समय में हम सभी अपने-अपने घरों में कैद हैं। लेकिन समाज का एक ऐसा तबका भी है जिसका मानसिक स्वास्थ्य लॉकडाउन के कारण इतनी बुरी तरह प्रभावित हुआ है कि वे आत्म घाती प्रवृत्तियां विकसित कर रहे हैं।
समलैंगिक संबंधों को हाल ही के वर्षों में कानूनन स्वीकृति मिली है। परन्तु आज भी समाज में बराबर के अधिकार, अवसर और स्वी कृति के लिए समलैंगिक महिलाओं को जूझना पड़ रहा है।
अधिकांशतः समलैंगिक जोड़े परिवार और समाज द्वारा अस्वीकारे जाने के कारण अपनी पहचान भी छुपा कर रखते हैं। ऐसे में उनकी वास्तविक पहचान को स्वीकार करने वाले उनके दोस्त ही होते हैं, जो उनका मनोबल बढ़ाते हैं।
कोलकाता में रहने वाली एलजीबीटीक्यू एक्टिविस्ट रैना रॉय कहती हैं, ” मुझे पिंजड़े में बंद सा महसूस होता है। मैं जो हूं उस रूप में मुझे घर पर क़बूल नहीं किया जाता। फ़ोन और वीडियो कॉल पर कोई भी कितनी देर बात कर सकता है? पता नहीं इस महामारी के बाद हमारी कम्युनिटी बचेगी भी या नहीं।”
लॉकडाउन के कारण अधिकांश समलैंगिक महिलाएं अपने माता-पिता के साथ घरों में बंद हैं। जहां उन पर लगातार खुद को बदलने का दबाव बनाया जाता है। उनकी सेक्सुअल चॉइस को बीमारी समझ उनको नॉर्मल (हेट्रोसेक्सुअल) बनाने के भी प्रयास किये जाते हैं। यही नहीं आस-पड़ोस में भी उन्हें एक गुनहगार की तरह देखा जाता है।
ऐसे में उनका मनोबल बढ़ाने वाले जो दोस्त थे, उनसे भी सोशल डिस्टेंसिंग के कारण वे दूर हो गए हैं। इन सब कारणों से उनके मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। मेजर डिप्रेशन, तनाव, एंग्जायटी डिसॉर्डर, सब्सटेन्स एब्यूज़ और सुसाइडल टेंडेंसी जैसी गम्भीर परेशानियों से वे गुज़र रहे हैं।
लॉकडाउन का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव समलैंगिक व्यक्तियों की मनोस्थिति पर पड़ रहा है। वे हमारे मूल ताने-बाने से बस थोड़ा सा अलग है। और इस अलग होने का तनाव उन्हें हमसे ज्यादा है। सोचिए आपको जो चीज पसंद है, उस पर लगातार सवाल उठाया जाए तो आपकी मानसिक स्थिति कैसी होगी?
ऐसी ही हालत से इन दिनों समलैंगिक जोड़े गुजर रहे हैं। हो सकता है कि आप ऐसे किसी व्यक्ति को जानती हों, जो इस समस्या से जूझ रहा हो। तो जरूरत है ऐसे लोगों के प्रति ज्यादा संवेदनशील होने की।
आप इन छोटी–छोटी बातों का ध्यान रख ऐसे ही किसी व्यक्ति की जिंदगी बचा सकती हैं।
इससे पहले शायद कभी आप आपने इसकी जरूरत महसूस नहीं की होगी और उन्हें हमेशा खुद से अलग-थलग रखा होगा। पर इस समय जरूरत है कि उनके प्रति ज्यादा संवेदनशील बनें और उन्हें भी भावनात्मक रूप से अपने साथ, अपने परिवार के साथ शामिल करें। लॉकडाउन में उनके साथ क़्वालिटी टाइम बिताने का सबसे अच्छा मौका है।
उनकी बात को समझें, उनको खुद से जोड़ने की कोशिश करें। उन्हें समझाएं कि आपकी पहचान कोई बीमारी नहीं है। इस काम में आप प्रोफेशनल्स की सहायता भी ले सकती हैं।
एक बात बताइए कि क्या आप दिन भर सेक्सुअल ऑरिएंटेशन पर ही सोचती हैं? नहीं न, तो फिर उन्हें हर बार सिर्फ उनकी सेक्सुअल अभिरूचि के कारण अपमानित क्यों किया जाए। यह उनके जीवन का एक हिस्सा है। पर यही तो पूरा जीवन नहीं हैं न। उनके साथ अन्य मुद्दों पर बात करें। ताकि वे झिझक छोड़कर आपके साथ ज्यादा कम्फर्टेबल हो सकें।
यह समझना सबसे ज्यादा ज़रूरी है कि वे ग़लत नहीं है। यह उनकी पहचान है और उसे बदलने की कोई ज़रूरत नहीं है। इसलिए उन्हें दोष ना दें। परिवार के अन्य सदस्यों को भी इसके लिए तैयार करें।
खुद को जागरूक करें। दुनिया बदलने की सबसे पहली कड़ी है ख़ुद को बदलना। अगर आप इस समाज को जीने के लिए एक बेहतर वातावरण देना चाहते हैं तो शुरुआत खुद से ही करनी होगी।
खुद को जागरूक और जानकर बनाएं। अपने आस पास मौजूद समलैंगिक जोड़ों की समस्या को समझें और उन्हें बराबर का दर्जा दें। उनके साथ दुर्व्यवहार न करें।
उनके संघर्ष को समझें और इज्जत दें। यदि आपके सामने कोई व्यक्ति किसी समलैंगिक व्यक्ति से दुर्व्यवहार कर रहा है तो आवाज़ उठाएं। इस समाज को एक बेहतर जगह बनाने में हम सभी का योगदान चाहिए। यह समय सबके लिए मुश्किल है, संवेदनशील बनें। एक बेहतर व्यक्ति से ही एक बेहतर समाज की कल्पना की जा सकती है।
अगर आप समलैंगिक हैं, तो आपके लिए परेशानी थोड़ी ज्यादा हो सकती है। क्योंकि आप उन लोगों से नहीं मिल पा रहे, जिनके साथ आप ज्यादा सहज होते हैं। यह दौर सभी के लिये मुश्किल है, ऐसे में तनाव या एंग्जायटी महसूस करना कोई शर्म की बात नहीं है।
अपने दोस्तों से मदद मांगने में बिल्कुल ना हिचकिचाएं। ज़रूरत पड़े तो प्रोफेशनल हेल्पलाइन का भी प्रयोग करें। भारत सरकार की एलजीबीटीक्यू हेल्पलाइन नंबर का उपयोग करें। इसके साथ ही विभिन्न एनजीओ मेंटल हेल्थ प्रोग्राम चलती हैं जिनका आप उपयोग कर सकते हैं।
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