पूर्वाग्रह, सामाजिक तनाव, अकेलापन, और अस्वीकृति – एक समलैंगिक व्यक्ति को हर रोज इसका सामना करना पड़ता है। जिस तरह से उन्हें ट्रीट किया जाता है, जिस तरह से उन्हें देखा जाता है-यह सब न केवल उनके आत्मविश्वास को चोटिल करता है, बल्कि भावनात्मक रूप से भी उन्हें आघात पहुंचाता है।
क्या आप जानते हैं कि मनोवैज्ञानिक बुलेटिन पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार , समलैंगिक समुदाय विषमलैंगिक की तुलना में अधिक मानसिक तनाव का सामना करता है? खैर, कारण स्पष्ट है। ऐसे संबंधों को लेकर अब भी हमारे समाज में एक अलग तरह का नजरिया और टैबू हावी है।
पर इस समय की आवश्यकता एलजीबीटीक्यू समुदाय द्वारा बर्दाश्त किए जा रहे मानसिक तनाव को समझना है। अगर हम वास्तव में सेक्स के प्रति उनके रुझान को सामान्य मानकर उनके साथ खड़े होना चाहते हैं।
हमारे साथ डाॅॅ. रचना के सिंह हैं, जो आर्टेमिस अस्पताल में समग्र चिकित्सा और मनोविज्ञान विभाग की प्रमुख हैं। वे हमें बता रहीं हैं कि इस समुदाय को मानसिक तनाव का सामना इतना ज्यादा क्यों करना पड़ता है और हम इनके लिए क्या कर सकते हैं –
खैर, यह एक सार्वभौमिक तथ्य है कि जब कोई अलग-थलग हो जाता है तो इसका भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ता है। लेकिन डॉ. सिंह कहती हैं कि, “ एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोग अपने जीवन में बहुत अधिक कठिनाइयों का सामना करते हैं, जो उन्हें अस्वीकृति और अलगाव के प्रति संवेदनशील बनाता है। यही कारण है कि उनके अवसाद और चिंता ग्रस्त होने केे जोखिम ज्यादा होते हैं।”
असल में, एक नकारात्मक व्यवस्था से मुकाबला करते हुए वे काफी ज्यादा मानसिक तनाव का सामना करते हैं और परिणामस्वरूप दवाओं या शराब के सेवन में डूब जाते हैं। डॉ. सिंह का कहना है कि “ समलैंगिक लोग अवसाद और रिश्ते में तनाव के मसले पर छह गुना अधिक जोखिमग्रस्त होते हैं। यह देखा गया है कि वे अपने आसपास के नकारात्मक रवैया का मुकाबला करते हुए कई बार बहुत ज्यादा जूझ रहे होते हैं। जिससे उनके हालात और भी बदतर हाे जाते हैं। इस मामले में उन्हें मानसिक और भावनात्मक दोनों तरह के समर्थन की आवश्यकता है।”
वह कहती हैं:
यह समस्या इतनी गंभीर हो जाती है कि कई बार वे आत्मघाती प्रवृत्तियों को विकसित करने लगते हैं। उन्होंने लगता है कि इससे बचने का एकमात्र तरीका जीवन को समाप्त करना ही है।
जब आप लगातार नकारात्मक रवैये का सामना करते हैं तो यह आपके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है। पर जब यही माहौल सकारात्मक होता है तब आप चीजों को बेहतर ढंग से समझने लगते हैं। तब आप अपने लिए बेहतर मानसिक स्वास्थ्य का निर्माण भी शुरू करते हैं। उदाहरण के लिए, अपने दोस्तों और विश्वासपात्रों से बात करना, स्वस्थ जीवनशैली चुनकर व्यक्तिगत निराशा को कम करना, शारीरिक गतिविधि और प्राणायाम आदि के साथ आप चुनौतियों का सकारात्मक तरीके से मुकाबला कर सकते हैं।
वे कहती हैं, “असल में, हमें उन्हें सकारात्मक सोचने के लिए मदद कर सकते हैं। एक और चीज जो आम तौर पर एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों में देखी गई है और वह है उनका संकोच। जब वेे इसेे दूर कर लोगों से घुलना-मिलना शुरू करते हैं, तो उनका मन और मस्तिष्क दोनों का तनाव कम होता है।”
वे समझाती हैं, “यह भी अपने समुदाय में अन्य लोगों को ताकत देता है। इसके अलावा, उन्हें खुद को स्वीकार करना होगा। लेकिन इससे पहले कि वे कुछ करें, एक समाज के रूप में मुझे लगता है कि हमें यह समझने की जरूरत है। हमें उन्हें खुली बाहों से स्वीकार करना होगा। धारा 377 के समाप्त होने के बावजूद अब भी हम उनके प्रति एक पूर्वाग्रह रखते हैं। हमें यह समझने की जरूरत है कि यह काेई बीमारी नहीं है, बल्कि एक अभिरूचि है।”
“ हर दिन कई लोग आत्महत्या कर रहे हैं क्योंकि समाज, उनके परिवार और उनके अपने माता-पिता द्वारा उनका उपहास किया जाता है।” एक मजबूत और गौरवपूर्ण इंफ्लूएंसर अरनब बिस्वास कहते हैं, “जब आप पहले से ही अपने शरीर और दिमाग से लड़ रहे होते हैं, तब आपके करीबी लोग भी आपका तिरस्कार करें तो जीवन और ज्यादा मुश्किल हो जाता है। इसलिए यह जरूरी है कि इनकी बुलिंग बंद की जाए और इनके जीवन को ज्यादा सहिष्णुुुुतापूर्ण तरीके से चलने दिया जाए।उनका जीवन बचाना ज्यादा जरूरी है।”