मेमोरी और फोकस यानी संपूर्ण मस्तिष्क स्वास्थ्य के लिए अच्छी और गहरी नींद जरूरी है। पर क्या आप इन दिनों बिस्तर पर देर से जाने के बावजूद सुबह जल्दी उठ जाती हैं? या रात को कई बार आपकी नींद टूटती है? वास्तव में यह उम्र बढ़ने का सबसे स्वभाविक संकेत है। विभिन्न शोध और एक्सपर्ट इस पर सहमति जताते हैं कि उम्र का प्रभाव हमारी नींद पर भी पड़ता है। पर क्यों होता (sleep decline with age) है ऐसा? और क्या हाे सकते हैं इसके दुष्प्रभाव (side effects of lack of sleep)? यह जानने के लिए आइए कुछ शोधों पर नजर डालते हैं।
जन्म के तुरंत बाद बच्चा 24 में से 22 घंटे सोता रहता है। जैसे-जैसे वह बड़ा होता है, उसकी नींद शरीर के अनुसार, बदलती रहती है। वयस्क होने पर व्यक्ति 8-9 घंटे की नींद लेता है। ब्रेन हेल्थ के लिए नींद की भूमिका अहम है। नर्व, न्यूरो ट्रांसमीटर और ब्रेन के लिए 7-8 घंटे की बाधा रहित नींद जरूरी है। जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, हमारी नींद प्रभावित होने लगती है। रात में कई घंटे तक नींद नहीं आना, रात भर नींद खुलते रहना उम्र बढ़ने के साथ महसूस होने वाली आम समस्याएं हैं।
पबमेड सेंट्रल में शामिल स्लीप मेडिसिन क्लिनिक्स जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार, नींद उम्र के साथ बदलती है। हमारी उम्र जैसे-जैसे बढ़ती है, हमारे लिए हर रात गहरी नींद में सोना उतना ही कठिन होता जाता है। उम्र के साथ गहरी नींद न आने की समस्या होने लगती है।
हमें नॉन रेम स्लीप (non-REM sleep) नहीं मिल पाती है। वहीं रेम स्लीप (REM sleep) भी कम मिल पाती है। वृद्ध लोगों में नींद की गड़बड़ी की रिपोर्ट अधिक मिलती है। सामान्य रूप से कम समय सोना, रात में अधिक बार जागना जैसे लक्षण बुजुर्गों में अधिक दिखाई देते हैं।
नींद नहीं आना हानिरहित नहीं हैं। इनका दुष्प्रभाव ब्रेन हेल्थ पर पड़ता है। यही वजह है कि बुजुर्गों की मेमोरी बच्चों या वयस्कों की तुलना में कमजाेर होने लगती है। इसलिए इस समस्या को ठीक से डील करना बहुत जरूरी है। साउंड स्लीप के लिए कुछ उपाय किये जा सकते हैं। पहले जानते हैं उम्र के साथ क्यों घट जाती है नींद (sleep decline with age)?
गहरी नींद में सोना स्टेज 3 स्लीप कहलाता है। यह मसल्स और टिश्यू ग्रोथ के लिए जरूरी है। इस दौरान शरीर में सेलुलर रिपेयर भी होती है। हार्मोनल चेंज, मेडिकल कॉम्प्लिकेशन और स्ट्रेस उम्र बढ़ने पर नींद कम होने के प्रमुख कारक हैं। डिप्रेशन, एंग्जायटी, नाइट शिफ्ट में काम करने के कारण भी नींद प्रभावित हो सकते हैं। बुढ़ापे में कुछ दवाएं भी साउंड स्लीप नहीं आने देने के लिए जिम्मेदार होती हैं। इसके जेनेटिक्स भी कारण हो सकते हैं।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी जर्नल के अनुसार, रात की नींद की अवधि में कमी के कारण वृद्ध लोगों की दिन के समय झपकी की आवृत्ति में वृद्धि हो जाती है। इनमें से अधिकांश परिवर्तन युवा और मिडल एज के बीच होते हैं। यदि वृद्ध वयस्क स्वस्थ हैं, तो उनमें यह समस्या कम या नहीं के बराबर होगी।
उम्र बढ़ने के साथ शरीर का सर्केडियन सिस्टम और स्लीप होमोस्टैटिक मैकेनिज्म कमजोर पड़ने लगता है। इसके अलावा, नींद से संबंधित हार्मोन के स्राव की मात्रा और पैटर्न भी बदल जाते हैं। चिकित्सा, मनोरोग, पर्यावरण में बदलाव, सामाजिक जुड़ाव और जीवनशैली में परिवर्तन भी इसके कारण बन सकते हैं।
उम्र बढ़ने के साथ लाइफस्टाइल में बदलाव लाकर शरीर को अधिक गहरी और आरामदायक नींद दिलाने में मदद मिल सकती है।
कार्डियो वर्कआउट, जिसे एरोबिक व्यायाम भी कहा जाता है। तैराकी, बाइकिंग, जॉगिंग या या वाकिंग कार्डियो वर्कआउट हैं। इनसे अच्छी नींद आती है। अनुलोम विलोम, भ्रामरी प्राणायाम, दिरगा प्राणायाम, शवासन भी गहरी नींद लाने में मदद करते हैं।
यदि आप किसी प्रकार का नशा करती हैं, तो उसे तुरंत छोड़ दें। नशा हमारे नयूरोट्रांसमीटर और नींद को प्रभावित करता है। सोने से पहले निकोटीन, कैफीन का सेवन नहीं करें।
साउंड स्लीप के लिए स्लीप सप्लीमेंट भी ट्राई कर सकती हैं। स्लीप सप्लीमेंट ट्राई करने से पहले डॉक्टर से परामर्श लेना जरूरी है।
वे व्यक्ति के द्वारा पहले से ली जा रही दवाओं के अनुसार स्लीप सप्लीमेंट प्रेसक्राइब करेंगे।
सोने के एक घंटे पहले किसी भी प्रकार की टेक्नोलॉजी से खुद को दूर कर लें। शोध से यह प्रमाणित हो चुका है कि इलेक्ट्रॉनिक गुड्स से निकलने वाली ब्लू लाइट हॉर्मोन को प्रभावित कर देती है. जिससे साउंड स्लीप आने में दिक्कत होती है।
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