कभी-कभी प्ले स्कूल में पढ़ने वाले या छोटी क्लास में पढ़ने वाले बच्चे स्कूल जाने से कतराने लगते हैं। वे स्कूल जाने से पहले चीखते-चिल्लाते हैं या न जाने के लिए कई तरह के बहाने बनाते हैं। इसे चाइल्ड स्कूल रिफ्यूजल (School Refusal) कहा जाता है। अगर आप दोनों वर्किंग हैं, तो बच्चे का स्कूल न जाना आप दोनों के लिए ही चिंता का कारण हो सकता है। सिर्फ इतना ही नहीं, ये आपके बच्चे की मेंटल हेल्थ के लिए भी नुकसानदेह हो सकता है। इसलिए जरूरी है कि इस स्कूल रिफ्यूजल की समस्या और उसके समाधानों के बारे में जानें।
स्कूल के लिए तैयार होने के बाद भी बच्चे का स्कूल जाने को राजी न होना किसी भी पेरेंट्स के लिए तनावपूर्ण स्थिति हो सकती है। पर इस समय आपको तनाव लेने की बजाए, बच्चे के तनाव को समझने की जरूरत है। बहुत सारे बच्चों में बहुत सारे कारणों से स्कूल रिफ्यूजल की समस्या देखने में आती है।
इसे समझने के लिए हमने बात की चाइल्ड काउंसलर डॉ. रुचि बत्रा से। आइए जानें क्या हैं इसके कारण और समाधान।
मनोवैज्ञानिकों ने रिसर्च के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है कि 4-8 वर्ष के बच्चों में स्कूल रिफ्यूजल (School Refusal) की समस्या सबसे अधिक होती है। यह बच्चों की एक इमोशनल प्रॉब्लम है, जो एंग्जाइटी के कारण होती है।
इसे ही साइकोलॉजिकल टर्म में स्कूल रिफ्यूजल कहते हैं। स्कूल में दोस्तों, टीचर्स या केयर टेकर के साथ एडजस्टमेंट न हो पाना इस समस्या की खास वजह है।
कुछ पेरेंट्स अपने बच्चों को लेकर बहुत पजेसिव होते हैं। वे थोड़ी देर अलग होने पर बच्चे को लेकर बहुत ज्यादा चिंतित हो जाते हैं। पेरेंट्स का यही जीन बच्चों में भी आ जाता है। इससे उनमें भी सेपरेशन एंग्जाइटी (Separation anxiety) के लक्षण विकसित हो जाते हैं और वे स्कूल जाना पसंद नहीं करते।
गर्मी की छुट्टियों (Summer vacation) के कारण लंबे समय तक स्कूल बंद रहे, इसलिए छोटे बच्चों को स्कूल जाने का मन नहीं करता है। बच्चों को घर में रहने की आदत-सी पड़ गई है। प्ले आवर, लंच आवर होने के बावजूद बच्चे को कुछ घंटों तक स्कूल में बंध कर रहना पड़ता है। उन्हें यह अनुशासन पसंद नहीं आता है। वे घर पर आजाद महसूस करते हैं।
इस समस्या से निपटने के लिए आप बातों ही बातों या खेल-खेल में उन्हें यह समझाएं कि स्कूल जाना उसके लिए बेहद जरूरी है। जिस तरह खेलना और खाना जरूरी है, उसी तरह स्कूल जाना भी। घर में जिस तरह उसकी ज्यादातर मांग पूरी होती है, ठीक उसी तरह स्कूल जाने पर गुड ब्वॉय या गुड गर्ल बनने की उसकी चाहत पूरी हो सकती है।
इसलिए छुट्टी के दिन शनिवार और रविवार को उसे मानसिक रूप से स्कूल जाने के लिए तैयार करें। उसके सामने यह बात बार-बार दोहराएं कि अगले एक वीक तक उसे स्कूल जाना है। इस बात का ख्याल रखें कि आपके बार-बार कहने पर वह प्रेशर में न आ जाए। वह और भयभीत न हो जाए। बच्चे के घर लौटने पर उसके स्कूल टाइम और एक्टिविटीज के बारे में जरूर बातें करें।
पहले बच्चे से यह पता लगाने की कोशिश करें कि क्या स्कूल में उसे किसी टीचर द्वारा डराया-धमकाया जाता है। बच्चे की बात को ध्यान से सुनें कि वह किस वजह से स्कूल नहीं जाना चाहता है। जब वह स्कूल में होता है, तोे किसी टीचर से मदद मांगने या स्कूल में पहुंचने पर वह बेहतर क्यों नहीं महसूस करता है?
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कस्टमाइज़ करेंइसके बाद उसकी टीचर से भी बात करें कि बच्चा स्कूल क्यों नहीं आना चाहता। यदि स्कूल रिफ्यूजल वाले बच्चे को स्कूल से जोड़ने का स्कूल में कोई प्लान बनाया गया है, तो उसके बारे में भी जानकारी हासिल करें। अपनी भी राय दें। यह भी देखें कि स्कूल में कोई चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट या बच्चों के मन की बात को समझना वाला कोई काउंसलर हैं?
कहानियों का बाल मन पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। बच्चे को ऐसे लोगों या छात्रों की कहानियां जरूर सुनाएं जो रोज स्कूल जाते थे और सफलता भी हासिल की। उसे यह जरूर सुनाएं कि स्कूल जाने से फलां बच्चा पढ़ाई में आगे निकल गया या खेलों में अव्वल आया।
स्कूल जाने के फायदे गिनाएं। उसे यह बताएं कि स्कूल में साथ खेलने और साथ लंच लेने के लिए उसे बच्चों की बड़ी टीम मिलती है, जो घर पर कभी नहीं मिल सकती है।
कई बार बच्चे भी दूसरे बच्चों के साथ बुरा व्यवहार करते हैं। इसलिए यह पता लगाने की कोशिश करें कि कोई साथी बच्चा तो उसे परेशान तो नहीं कर रहा है। यदि किसी बच्चे सेे उसकी अधिक दोस्ती है, तो उसके बारे में जरूर पूछें।
उसकी बातें सुनाने के लिए वह स्कूल जाना चाहेगा। यदि आपका बच्चा प्ले स्कूल में है और स्कूल नहीं जाना चाहता है, तो कभी किसी छुट्टी केे दिन उसके स्कूल केे 1-2 दोस्तों को घर पर बुलाएं। इसके लिए या तो उनके पेरेंट्स से कहें या स्वयं चलकर उनसे मिल लें।
ये सभी उपाय काम न आएं, तो बच्चे की हेल्थ चेकअप कराएं। कई बार बच्चे स्कूल न जाने के लिए कई तरह के बहाने जैसे सिर दर्द, पेट दर्द या उल्टी होने की बात कहते हैं। हर बार उसे अनदेखा न करें। किसी चाइल्ड स्पेशलिस्ट से उसका कंप्लीट हेल्थ चेकअप कराएं।
सेहत की तरफ से कोई फिक्र नहीं है, तो बच्चे को चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट या काउंसलर के पास जरूर ले जाएं। ताकि स्कूल रिफ्यूजल की समस्या का सही समाधान हो सके। कुछ दिनों के सेशन के बाद यह समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगी।
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