मेरे पुराने ऑफिस में एक वरिष्ठ सहयोगी थीं। अपने ड्यूटी आवर के शुरुआती कुछ घंटों में वे बहुत आराम से काम करतीं। काम के साथ-साथ उनका बोलना-बतियाना, खाना-पीना जारी रहता। पर जैसे ही घड़ी की सूई 6 पर जाती, वे अपने काम के प्रति मुस्तैद हो जातीं। पूरी गंभीरता और कॉन्सन्ट्रेशन के साथ वे रात के 9-10 बजे तक अपना काम निबटातीं। इसी तरह मेरी एक क्लासमेट दिन के बजाय देर रात तक पढ़ाई करती। आखिर ऐसा क्यों होता है? क्यों कुछ लोग दिन की बजाए रात में ज्यादा एक्टिव हो जाते हैं (Facts about circadian rhythm)? क्या दिन और रात की नींद सेहत पर एक सा प्रभाव डालती है? आइए जानते हैं इस बारे में सब कुछ।
विशेषज्ञ बताते हैं कि शरीर के साथ-साथ दिमाग की भी अपना क्लॉक होती है, जो दिन और रात के अनुरूप काम करती है। यदि किसी को देर रात तक जगकर काम करने की आदत है, तो वह माइंड क्लॉक के अनुकूल नहीं है। इससे स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैं।
हमारा माइंड, उसकी प्राकृतिक रिद्म और सेहत पर इसके प्रभाव के बारे में जानने के लिए हमने बात की गुरुग्राम के पारस हॉस्पिटल की सीनियर कंसल्टेंट -क्लिनिकल साइकोलॉजी डॉ. प्रीति सिंह से।
डॉ. प्रीति सिंह बताती हैं, हमारे शरीर की प्रत्येक कोशिका के अंदर एक घड़ी होती है। हमारी कोशिकाओं की घड़ियां बायोलॉजिकल होती हैं, न कि उन घड़ियों की तरह जिनका प्रयोग हम अपनी कलाइयों पर करते हैं।
सेल क्लॉक के पास कोग और गियर नहीं होता है। हमारी पृथ्वी पर प्रकाश और अंधेरे का 24 घंटे का एक चक्र होता है। हमारी बायोलॉजिकल यानी जैविक घड़ियां भी लगभग इतने समय के ही दैनिक चक्र के अनुकूल काम करती हैं।
यह दैनिक चक्र सर्कैडियन रिद्म (circadian rhythm) के रूप में जाना जाता है। यही वजह है कि बिना समय देखे हमारा शरीर जान जाता है कि दिन का कितना समय बीत चुका है। अब शरीर को आराम की जरूरत है। समय की सटीक जानकारी मस्तिष्क में मौजूद इंटरनल क्लॉक शरीर को दे देती है। यह इंटरनल क्लॉक हमें रोजमर्रा के सभी महत्वपूर्ण कार्यों को करने के बारे में संकेत देती है। यदि ऐसा नहीं होता, तो हमें यह बिल्कुल पता नहीं चलता कि कब सुबह हुई या कब रात हो गई?
हमारा शरीर दिन में काम करता है और रात को आराम मांगता है। अब लोग रात में अधिक प्रोडक्टिव होने लगे हैं। यह ध्यान देने योग्य परिवर्तन रिमोट वर्क ग्रोथ के कारण हुआ है। वर्कप्रेशर की वजह से लोगों की पर्सनैल्टी, लाइफ स्टाइल, जीन और यहां तक कि ब्रेन की केमिस्ट्री भी प्रभावित हो गई है।
यह अप्राकृतिक सर्काडियन रिद्म है। यदि कोई व्यक्ति रात में जागता है और दिन में सोता है, तो उसे भविष्य में गंभीर स्वास्थ्य जोखिम हो सकते हैं।
वहीं रात में अधिक प्रोडक्टिव होने वाले लोगों के इंटरनल क्लॉक की बायोलॉजी की जांच करनी चाहिए। यह डिलेड स्लीप फेज डिसऑर्डर कहलाता है। यह स्लीप टाइमिंग, पीक पीरियड ऑफ अलर्टनेस, कोर बॉडी टेम्प्रेचर रिद्म और हार्मोनल सीक्रेशन को भी प्रभावित करने लगता है। ऐसे लोग मध्यरात्रि के बाद सोते हैं और दिन में काफी देर से जागते हैं। उनका सर्केडियन पीरियड भी 24 घंटे से अधिक हो जाता है।
डॉ. प्रीति सिंह के अनुसार, सर्कैडियन रिद्म 24 घंटे का चक्र है, जो शरीर के बायोलॉजिकल सिस्टम का एक हिस्सा है। यह महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं और कार्यों को पूरा करने के लिए पर्दे के पीछे काम करता है। यह सुनिश्चित करने के लिए काम करता है कि 24 घंटे के दौरान शरीर के सभी कार्य संपन्न हो जाएं।
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कस्टमाइज़ करेंमास्टर क्लॉक यह सिग्नल देकर लगातार अलर्ट करती रहती है कि सूर्य के प्रकाश रहने तक दिन के कार्य संपन्न कर लिए जाएं। यह दिन के समय व्यक्ति को सक्रिय रखने के लिए सतर्क बनाती है। जरूरत पड़ने पर मास्टर क्लॉक हार्मोन मेलाटोनिन का प्रोडक्शन शुरू करता है, जो नींद को बढ़ावा देता है। जैसे ही अंधेरा होता है यह सिग्नल भेजना शुरू कर देता है, जिससे हमें पूरी रात सोते रहने में मदद मिलती है।
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