जिंदगी में हम कई बार किसी ऐसी घटना, विचार या ऐसी सोच जिससे कोई आहत हुआ हो को लेकर खुद को मन ही मन अपराधी (Guilt) मानने लगते हैं। यदि व्यक्ति से सचमुच कोई गलती हुई है और उसे उस बात का पछतावा हो रहा है, तो यह अच्छा माना जाता है। यह वही भावना होती है जो व्यक्ति को भविष्य में उस गलती को न करने के लिए प्रेरित करती है। शायद इसीलिए हमें बचपन से ही झूठ बोलने या गलती करने पर उसे स्वीकार करना और उसे सुधारना सिखाया जाता है। लेकिन समस्या तब उत्पन्न होती है जब व्यक्ति में खुद को दोषी मानने की प्रवृत्ति पैदा हो जाती है और वह छोटी से छोटी बात पर भी अपराध बोध (how to deal with guilt and regret) से घिर जाता है। यह किसी की भी मेंटल हेल्थ के लिए घातक हो सकता है। आइए जानते हैं इससे बाहर आने के तरीके।
डाॅ. ललिता साइकोलॉजिस्ट और मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट हैं। वह कहती हैं कि अपराधबोध कभी-कभी उत्पादक हो सकता है और कभी-कभी अनुपयोगी भी। यह आत्म-संदेह, आत्म-सम्मान में कमी और शर्मिंदगी का कारण बन सकता है। इन भावनाओं पर काबू पाना मुश्किल हो सकता है, खासकर तब जब अपराधबोध का मामला पुराना हो। लेकिन इससे बाहर निकलना संभव है, खासकर मदद से।
अपराधबोध प्रतिकूल है और शर्म, शर्मिंदगी या गर्व की तरह, एक आत्म-जागरूक भावना के रूप में वर्णित किया गया है। जिसमें लोगों के द्वारा किए गए कार्य या कुछ ऐसा करने में विफलता जो उन्हें करना चाहिए था, या वे विचार जो उन्हें लगता है कि नैतिक रूप से गलत हैं। अपराधबोध का कारण बन सकते हैं।
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आप जब भी अपराध बोध में होते हैं। तो अक्सर अपनी भावनाओं को एक नकली मुखोटे के साथ सामने लाते हैं। जबकि ऐसा करना बिल्कुल भी उचित नहीं होता इसलिए यह जरूरी है। कि आप अपराध बोध से बाहर आने के लिए अपनी भावनाओं को पहचाने और उन्हें समझें।
किसी भी अपराध बोध से बाहर आने के लिए सबसे जरूरी है कि आप खुद को माफ कर दें। क्योंकि यदि आपने खुद को माफ नहीं किया तो आप कभी भी इससे बाहर नहीं आ सकते। कोई गलती करना या जाने अनजाने में कोई गलती हो जाना कोई गुनाह नहीं होता। यदि आप उसका पछतावा करते हैं तो खुद को माफ करें और जिंदगी में आगे बढ़े।
हम अक्सर किसी अपराध बोध की भावना से इतने ग्रस्त होते हैं कि अपने प्रति एक नकारात्मक सोच बना लेते हैं। जिससे यह भावना और अधिक गहरी होती जाती है और हम इस बोझ के तले दबते जाते हैं इसलिए जरूरी है कि आप अपने प्रति अपनी सोच को बदलें।
आप अपनी जगह किसी और व्यक्ति की तुलना करें और निष्पक्षता से इस बात का निर्णय लें कि क्या आप उस व्यक्ति को भी इतनी ही सजा देते जितनी आप स्वयं को दे रहे हैं। क्योंकि अक्सर ऐसा होता है की अपराधबोध की भावना हमें निष्पक्ष नहीं रहने देती और खुद को एक दोषी मान लेती है।
जब आप कोई गलती करते हैं तो हमें उस गलती से सबक सीखना चाहिए। और आगे से उस गलती को ना करने की कोशिश करनी चाहिए। यदि आप अपनी गलतियों से सीखते हैं तो आप जिंदगी में आगे बढ़ेंगे और इस अपराध बोध की भावना से भी बाहर आ जाएंगे। यदि आप उस गलती को बार-बार करते रहेंगे। तो आप इससे बाहर नहीं आ सकते इसलिए यह जरूरी होता है कि आप अपनी गलतियों से सीखे और आगे से उन्हें न दोहराए।
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