Emotional dysregulation : लीडर बनना है तो जानिए क्यों जरूरी है भावनात्मक असंतुलन पर काबू पाना और कैसे

अगर आप जरा सी असहमति बर्दाश्त नहीं कर पाते या फिर किसी व्यक्ति को जकड़ने की हद तक सपोर्ट करने लगते हैं, तो ये सभी भावनात्मक असंतुलन (Emotional Dysregulation) के संकेत हैं
Emotional dysregulation kise kehte hain
इमोशनल डिसरेग्यूलेशन के चलते व्यक्ति के व्यवहार में भावनात्मक लचीलापन कम होने लगता है। इससे ग्रस्त व्यक्ति उदासी, क्रोध, चिड़चिड़ापन और चिंता समेत कई भावनाओं से ग्रस्त रहने लगता हैं। चित्र : अडोबी स्टाॅक
Published On: 11 Jun 2024, 05:00 pm IST
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Dr. Yuvraj pant
मेडिकली रिव्यूड

मामूली सी बातें कई बार व्यक्ति के मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डालने लगती हैं। इससे व्यक्ति के दिलो दिमाग को कई प्रकार के भावनात्मक परिवर्तनों का सामना करना पड़ता है। छोटी सी बात पर उत्तेजित हो जाना, मूड में अस्थिरता का नज़र आना और क्रोध का अचानक से बढ़ जाना इमोशनल डिसरेग्यूलेशन की ओर इशारा करता है। छोटे बच्चों से लेकर युवाओं तक समान्य तौर पर ये समस्या देखने को मिलती है। स्टडी प्रेशर से लेकर जॉब में स्टेबीलिटी की कमी, को वर्कर्स का बर्ताव और बॉस की अपेक्षाएं इमोशनल डिसरेग्यूलेशन (Emotional dysregulation) का कारण बनने लगती हैं। सबसे पहले जानते हैं कि इमोशनल डिसरेग्यूलेशन क्या है और किन संकेतों से इस समस्या का पता लगाया जा सकता है।

समझिए क्या है भावनात्मक असंतुलन या इमोशनल डिसरेग्यूलेशन

इस बारे में बातचीत करते हुए डॉ युवराज पंत बताते हैं कि अपने इमोशंस को रेगुलेट करने और नियंत्रित करने में असमर्थता इमोशनल डिसरेग्यूलेशन कहलाता है। इसके चलते व्यक्ति के व्यवहार में भावनात्मक लचीलापन कम होने लगता है। इससे ग्रस्त व्यक्ति उदासी, क्रोध, चिड़चिड़ापन और चिंता समेत कई भावनाओं से ग्रस्त रहने लगता हैं।

एक्सपर्ट के अनुसार बचपन में माता-पिता का व्यवहार और परवरिश बच्चे में इमोशनल डिसरेग्यूलेशन को पैदा करते हैं। ये समस्या किशोरावस्था के दौरान बच्चों में बढ़ने लगती है। इसका प्रभाव उनकी ओवरऑल पर्सनैलिटी पर दिखने लगता है। चाहे ऑफिस हो या घर ऐसे लोग कहीं भी अपने इमोशंस को उचित प्रकार से नियंत्रित नहीं कर पाते हैं। ऐसे लोगों में इमोशनल रेगुलेशन स्किल्स डेवलप नहीं हो पाते हैं। इसके चलते वर्कप्लेस पर भी उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

Emotional dysregulation ko kaise deal karein
बचपन में माता-पिता का व्यवहार और परवरिश बच्चे में इमोशनल डिसरेग्यूलेशन को पैदा करते हैं। ये समस्या किशोरावस्था के दौरान बच्चों में बढ़ने लगती है। चित्र : अडोबी स्टाॅक

भावनात्मक असंतुलन में नजर आते हैं ये सामान्य लक्ष्ण (Common symptoms of emotional dysregulation)

1 ज़ोर ज़ोर से चिल्लाना

बिना सोचे समझे किसी भी बात पर रिएक्ट कर देना इमोशनल डिसरेग्यूलेशन को दर्शाता है। इससे वर्कप्लेस डेकोरम पर उसका प्रभाव नज़र आने लगता है। इसमें व्यक्ति छोटी छोटी बातों पर अपने इमोशंस को व्यक्त करता है। किसी भी बात पर उदास हो जाना, परेशान दिखना और चिल्लाना उसके स्वभाव का हिस्सा बन जाता है।

2 इमोशनल अवेयरनेस की कमी

इस तरह के लोग ये भूल जाते हैं कि वर्कप्लेस में आपको अन्य लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना है। फिर चाहे वो आपके सीनियर हो या जूनियर। दरअसल, ऐसे लोगों में भावनात्मक जागरूकता की कमी को पाया जाता है। इसके चलते वे किसी भी व्यक्ति को किसी भी स्थान पर कुछ भी बोलने में हिचकिचाहट महसूस नहीं करते हैं। वे अपने इमोशसं को रेगुलेट नहीं कर पाते हैं।

3 इमोशंस को मैनेज न कर पाना

इमोशनल डिसरेग्यूलेशन के शिकार लोग अपने इमोशंस को लेकर असमंजस में रहते हैं। ऑफिस में छोटी सी कामयाबी उन्हें बेहद उत्साहित कर देती है और एक मामूली गलती उनकी परेशानी का कारण बन जाती है। वो कभी कंफ्यूज़ तो कभी गिल्ट फील करने लगते हैं। इंपल्सिव बिहेवियर उनके औरों से दूर करने लगता है। युवाओं में पाई जाने वाली ये समस्या वर्कप्लेस पर उनकी ग्रोथ में रूकावट का काम करती है।

emotional dysregulation ke signs ko pehchaanein
युवाओं में पाई जाने वाली ये समस्या वर्कप्लेस पर उनकी ग्रोथ में रूकावट का काम करती है। चित्र शटरस्टॉक।

4 बिना सोचे-समझे कुछ भी बोलना

वर्कप्लेस पर सभी लोगों से बातचीत करना टीम स्पीरिट को दर्शाता है। मगर बिना सोचे समझे कुछ भी बोल देना आपके अस्तित्व के लिए खतरा बन सकता है। ऐसे लोग बिना सोचे अपने विचार और इमोशंस को व्यक्त करते है और कई बार दूसरों को उससे मानने के लिए बाधित भी करने लगते हैं। उनकी बात को न समझा जाने पर ऐसे लोगों के व्यवहार में नकारात्मकता दिखने लगती है।

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5 खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश

ऐसे लोग गुस्से में आकर खुद को नुकसान पहुंचाने से भी नहीं हिचकिचाते। इसके अलावा तनाव में आकर नशीने पदार्थों का भी सेवन करने लगते हैं। अपने इमोशंस को सही समय पर व्यक्त न कर पाना इनकी चिंताओं को बढ़ा देता है।

क्या हो सकते हैं भावनात्मक असंतुलन के कारण (Causes of emotional dysregulation)

जॉब जाने का डर और वर्कप्लेस पर प्रोमोशन न मिलने पर अक्सर लोग अपने इमोशंस को मैनेज करने में सक्षम नहीं हो पाते हैं।

पार्टनर के साथ ब्रेकअप व्यक्ति को भावनात्मक रूप से कमज़ोर बना देता है। युवाओं में ये समस्या आमातौर पर देखने को मिलती है। इससे व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार होने लगता है।

अपने कार्यों को समय पर मैनेज न कर पाना भी इमोशनल डिसरेग्यूलेशन से बढ़ाता है। इससे व्यक्ति में हर काम को जल्दी जल्दी करने की होड़ झुंझलाहट को बढ़ा देती है।

टारगेट्स अचीव न कर पाने से व्यक्ति तनाव का शिकार हो जाते हैं। इससे व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुंचती है, जिससे व्यवहार में उत्तेजना बढ़ने लगती है।

इस समस्या से राहत पाने के लिए इन टिप्स को करें फॉलो (How to control emotional dysregulation)

1 पॉज़िटिव सेल्फ टॉक

सेल्फ मोटिवेशन के लिए अपने विचारों को मज़बूत बनाने के अलावा सेल्फ केयर बेहद ज़रूरी है। इसके लिए पॉज़िटिव सेल्फ टॉक करें, जिससे खुद को भरोसा दिलाएं कि आप हर काय को करने में सक्षम हैं। इसके अलावा अपनी क्षमताओं को भी बढ़ाने का प्रयास करें।

Self talk ke fayde
वे लोग जो किसी बात को लेकर परेशान रहते हैं। वे सेल्फटॉक के ज़रिए अपने तनाव को रिलीज़ करने लगते हैं। चित्र : अडोबी स्टॉक

2 इमोशनल आउटबर्स्ट के ट्रिगर को पहचानें

सबसे पहले इस बात को समझें कि आपको कब और किन चीजों पर इमोशनल आउटबर्स्ट का सामना करना पड़ता है। इसके लिए उन ट्रिगरर्स को पहचानकर भावनात्मक संतुलन को बैठाने में मदद मिलती है। जिन बातों पर गुस्सा आता है, उन्हें अवॉइड करने का प्रयास करें और चीजों के सकारात्मक पहलू पर ध्यान दें।

3 विशेषज्ञ से परामर्श करें

सही समय पर इमोशनल डिसरेग्यूलेशन का इलाज न करवाना किसी बड़ी मेंटल हेल्थ कारण बन सकता है। तनाव, डिप्रेशन और एंग्जाइटी से राहत पाने के लिए डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवाएं लें। इससे ब्रेन रिलैक्स रहता है और मेंटल हेल्थ को मज़बूती मिलती है।

4 थेरेपी की लें मदद

रेगुलर थेरेपी की मदद से माइंडफुलनेस में सुधार आता है। इससे व्यक्ति के व्यवहार, भावनाओं और विचारों को मज़बूती मिलती है और सोचने का नज़रिया बदलने लगता है। नियमित रूप से थेरेपी लेने से मानसिक स्वस्थ्य हेल्दी रहता है और मन में उठने वाले विचारों को रेगुलेट किया जा सकता है।

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लेखक के बारे में
ज्योति सोही
ज्योति सोही

लंबे समय तक प्रिंट और टीवी के लिए काम कर चुकी ज्योति सोही अब डिजिटल कंटेंट राइटिंग में सक्रिय हैं। ब्यूटी, फूड्स, वेलनेस और रिलेशनशिप उनके पसंदीदा ज़ोनर हैं।

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