कभी ऑफिस पहुंचने में देरी, कभी मीटिंग मिस करना तो कभी फ्लाइट न ले पाना। किसी व्यक्ति के अनमैनेजड होने का संकेत देते हैं। इसमें कोई दोराय नहीं कि रोजमर्रा के जीवन में व्यक्ति को कई प्रकार के तनाव और दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। मगर इसका असर व्यक्ति की ओवरऑल परफॉर्मेंस पर उस वक्त दिखने लगता है। जब वो अपनी डेडलाइंस को मीट करने में सक्षम नहीं रहता है। आमतौर पर लोगों में देखी जाने वाली इस समस्या को टाइम ब्लाइंडनेस (time blindness) कहा जाता है। जानते हैं, टाइग ब्लाइंडनेस (time blindness) क्या है और किन कारणों से व्यक्ति इस समस्या से ग्रस्त हो जाता है।
इस बारे में बातचीत करते हुए मनोचिकित्सक डॉ आरती आनंद बताती हैं कि वे लोग जो हाइपरएक्टिव होते है और किसी एक काम पर एक वक्त में फोकस नहीं करते हैं, उन्हें टाइम ब्लाइंडनेस का सामना करना पड़ता है। इस समस्या से ग्रस्त लोग काम को कल पर टालने लगते हैं और कभी कभार एक वक्त में कई काम एक साथ करने का प्रयास करने लगते हैं। उनके व्यवहार के चलते उनकी कार्यक्षमता प्रभावित होने लगती है।
टाइम ब्लाइंडनेस (time blindness) उस कॉग्नीटिव स्थिति को कहते हैं, जिसमें व्यक्ति समय के महत्व को समझने और उसे मैनेज करने में कठिनाइयों का सामना करता है। इसका प्रभाव प्लानिंग से लेकर पंक्चुएलिटी तक पर पड़ सकता है। नेचुरल टाइम कीपिंग सेंस की कमी के चलते लोग टाइम ब्लाइंडनेस की समस्या के शिकार हो जाते हैं। टाइम ब्लाइंडनेस कोई मेडिकल कंडीशन नहीं है, मगर कई बार यह समस्या ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर का कारण बनने लगती है।
इस बारे में मनोचिकित्सक डॉ युवराज पंत बताते हैं कि वे लोग जो समय के मूल्य को समझने में असमर्थ होते हैं और अपने मन मुताबिक कार्य करते है, वे टाइम ब्लाइंडनेस (time blindness) के शिकार होते हैं। अनियमित लाइफस्टाइल से लेकर ओवरबर्डन होने तक, इस समस्या के लिए कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं। अगर आप इस समस्या से उबरना चाहते हैं, तो सबसे पहले आपको अपनी प्राथमिकता तय करना और उसके क्रियान्वयन को समझना होगा।
अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर यानि एएचएडी से ग्रस्त व्यक्ति बहुत देर तक एक काम पर फोकस नहीं कर पाते है। उनका रैवया प्रोकास्टीनेट होने लगता है। इसके चलते वे डेडलाइंस को मीट करने में असफल साबित होते हैं। इसका असर कार्यक्षमता पर भी नज़र आने लगता है, जिससे आउटपुअ में कमी आने लगती है।
ऐसे लोग ज्यादा समय रेस्टलेस महसूस रहते है, जिसके चलते उनका ध्यान किसी एक कार्य पर नहीं टिक पाता है। वो कोई फैसला अकेले नहीं ले पाते और किसी कार्य की प्लानिंग में भी दिक्कत आने लगती है। इन लोगों की मेमोरी भी प्रभावित होने लगती है।
ऐसे लोग जो कार्यों की प्राथमिकता को सेट नहीं कर पाते हैं। अक्सर उनकी टू डू लिस्ट हमेशा अधूरी रह जाती है। ऐसे लोग समय की चिंता किए बगैर अपने अनुसार काम करते है और कार्यों को अगले दिन पर टाल देते हैं। व्यवहार में बढ़ने वाला आलस्य और एनर्जी की कमी इस समस्या को बढ़ा देती है।
इस बात को समझना होगा कि एक व्यक्ति सभी जिम्मेदारियों को निर्वहल अकेला नहीं कर सकता है। मगर कुछ जो सभी कार्य खुद करना चाहते हैं, उससे कार्योंं की क्वालिटी से लेकर डेडलाइंस तक किसी भी चीज़ को पूरा नहीं कर पाते हैं। एक ही वक्त में मल्टीटास्किंग टाइम ब्लाइंडनेस को बढ़ा देती है।
सुबह उठकर अपने प्रमुख कार्यों को करने की लिस्ट तैयार करना आवश्यक होता है। मगर वे लोग जो प्लानिंग के बिना कोई भी कार्य करते हैं। उन्हें अपने कार्यों में सफलता नहीं मिल जाती है। इससे किसी भी कार्य को पूरा करने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। चाहे ऑफिस हो या फिर घर अपने टारगेट्स को अचीव करने के लिए प्री प्लानिंग ज़रूरी है।
जीवन में होने वाली छोटी मोटी समस्याएं व्यक्ति के तनाव का कारण बन जाती हैं। इससे व्यक्ति हताश और निराश रहने लगता है और किसी भी काम पर फोकस नहीं कर पाता है। ऐसे में अपने टारगेट्स को अचीव करने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। बढ़ रहे तनावसे व्यक्ति दुविधा में रहता है, जिसका असर उनकी कार्य क्षमता पर दिखने लगता है।
इससे ग्रस्त लोग चीजों को समझने में वक्त लगाते हैं और किसी एक चीज़ पर पूरी तरह से फोकस नहीं कर पाते हैं। ये किसी भी चीज़ को प्लान नहीं कर पाते और इनका इंपल्सिव व्यवहार सोशल सर्कल को कम कर देता है। ऐसे लोग हाइपर एक्टिव होते हैं।
दिनभर काम में मसरूफ रहने के कारण बार बार भूलने की समस्या और समय का आंकलन करने के लिए ज़रूरी कार्यों और मीटिंग्स के लिए अलार्म या फिर टाइमर का प्रयोग करें। इससे समय पर कार्यों को करने में मदद मिलती है और लाइफस्टाइल भी व्यवस्थित होने लगता है।
अगर आप अपने डेली रुटीन वर्क को भी ठीक से मैनेज नहीं कर पा रहे हैं, तो दिन भर के कार्यों के लिए एक टू डू लिस्ट को तैयार कर लें। इस लिस्ट की मदद से कार्यों को समयानुसार करने में मदद मिलती है। इसके अलावा टारगेट्स का भी आसानी से अचीव किया जा सकता है।
अगर आप इस बात की जानकारी रखते हैं कि कौन सा कार्य कितना समय लेगा, तो उसके अनुसार टाइम मैनेजमेंट करें। इससे हर टास्क और एक्टीविटी के लिए समय को निर्धारित करने में मदद मिलती है।
दिनभर में कुछ वक्त ध्यान और चिंतन करने से दिमाग में बढने वाले तनाव को दूर किया जा सकता है। इससे व्यक्ति की मेंटल हेल्थ बूस्ट होने लगती है, जिससे काम पर फोकस बढ़ने लगता है। साथ ही आलस्य और थकान से भी राहत मिलने लगती है। दिन में दो बार मेढिटेशन करना मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद साबित होता है।
एडीएचडी से ग्रस्त लोगों को काउंसलिगं की आवश्यकता होती है। इससे उनके व्यवहार में बदलाव लाया जा सकता है। बचपन से व्यवहार में पनपने वाली ये समस्या उम्र के साथ लाइफस्टाइल का हिस्सा बन जाती हैं। इसके लिए डॉक्टरी जांच के अलावा काउंसलिंग सेशल लेना आवश्यक है।