कोई भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने से कतराता है, तो किसी को ट्रेन या प्लेन में अकेले सफर करने में डर लगता है, किसी को स्ट्रीट डॉग (street dog) के नज़दीक आते ही पसीने छूटने लगते हैं, तो किसी को उंचाई देखकर चक्कर आने लगते हैं। बिना किसी जोखिम के भी अगर आप कुछ खास चीजों को लेकर डरते हैं, तो इसे फोबिया (Phobia) कहा जाता है। ऐसा ही एक फोबिया है किसी समुदाय या यौन अभिरुचि वाले व्यक्ति से डरना। जिसे मानसिक स्वास्थ्य की भाषा में होमो फोबिया (Homophobia) कहा जाता है। इससे ग्रस्त लोग अकसर होमोसेक्सुअल (Homosexual), गे (Gay), लेस्बियन (Lesbian) और ट्रांसजेंडर (Transgender) लोगों को देखकर असहज महसूस करने लगते हैं। आइए जानते हैं इस समस्या से कैसे उबरना है।
हो सकता है कि आपकी पारीवारिक पृष्ठभूमि ऐसी हो कि आपको एक सीमित दायरे तक ही रहना सिखाया गया हो। पर यह दुनिया और समाज अलग-अलग लोगों से मिलकर बना है। ऐसे में अपने से अलग लोगों को देखकर असहजता, डर और घृणा महसूस करना वास्वत में होमोफोबिया का सबसे स्पष्ट लक्षण है।
इस बारे में बात करते हुए राजकीय मेडिकल कालेज हल्द्वानी में मनोवैज्ञानिक डॉ युवराज पंत बताते हैं कि समाज में कुछ लोग होमोस्क्सुअल होते हैं, कुछ लोग लेस्बियन होते हैं, कुछ लोग बाइसेक्सुअल होते हैं, तो कुछ ट्रांसजेंडर होते हैं। इन्हें समाज में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। वे लोग जो एलजीबीटीक्यू लोगों के प्रति घृणा, भय या डर की भावना रखते हैं, उन लोगों को होमोफोबियन (Homophobian) कहा जाता है।
अमेरिकन साइकोथेरेपिस्ट जॉर्ज वेनबर्ग ने सन् 1960 में होमोफोबिया शब्द की पहचान की। उन्होंने पाया कि उस वक्त उनके आसपास बहुत से ऐसे लोग हैं, जो गे हैं या लेस्बियन हैं। जॉर्ज वेनबर्ग ने सन् 1972 में सोसाइटी एंड द हेल्दी होमोसेक्सुअल नाम की एक पुस्तक लिखी।
इस किताब में लेखक ने होमोफोबिया को एक बीमारी के रूप में बताया और इससे ग्रस्त लोगाें की आलोचना भी की। दरअसल, उस वक्त एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के अंर्तगत आने वाले लोगों के प्रति समाज का दृष्टिकोण बेहद नकारात्मक था। जॉर्ज वेनबर्ग ने होमोसेक्सुएलिटी पर एक कैंपेन की भी शुरूआत की। इसके अलावा उन्होंने साइकोलॉजी पर भी कई किताबें लिखीं।
हर छोटी सी बात पर डर जाना।
एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों को देखकर छिप जाना या उन्हें अवॉइड करना।
उनके बारे में मनगढ़ंत धारणाएं बना लेना और उन्हें खुद से कमतर आंकना।
ऐसा सोचना कि वे अन्य लोगों को अपनी सोसयटी में कन्वर्ट कर लेंगे।
बच्चों को एलजीबीटीक्यू समुदाय से आने वाले लोगों से दूर रहने की सलाह देना।
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कस्टमाइज़ करेंडॉ युवराज पंत बताते हैं कि इस बात को समझें कि एलजीबीटीक्यू सोसायटी से ताल्लुक रखने वाले लोग भी हम लोगों जैसे ही हैंं। इनके बारे में पढ़ें और इन्हें समझने का प्रयास करें। अगर आपके नज़दीक कुछ ऐसे लोग हैं, तो उनको देखकर डरना छोड़ दें। इस भय को मन से निकाल दें कि ये आपको नुकसान पहुंचाने की कोशिश करेंगे। ये भी हमारे जैसे ही हैं, और इन्हें भी सुख-दुख का वैसे ही अनुभव होता है, जैसा किसी अन्य व्यक्ति को।
कोई भी व्यक्ति, चाहें वह कैसा भी हो और किसी भी तरह की यौन अभिरुचि रखता हो, उसके बारे में गलत अवधारणा बनाने से बचें। उनसे दूर भागने की बजाए बातचीत करें और अन्य वर्ग के लोगों के बारे में भी जानें। हो सकता है कि पहले पहले विचार मेल न खाएं। मगर जब आप भावनाओं और व्यवहार में सकारात्मकता देखने लगेंगे, तो धीरे-धीरे आपसी लगाव बढ़ने लगेगा।
बचपन की कोई घटना या आसपास के लोगों का ऐसा व्यवहार, जो अन्य लोगों के प्रति असामान्य रहा। ये अनुभव भी किसी व्यक्ति को होमोफोबिक बना सकते हैं। एक वो दौर था, जब लोग शिक्षित नहीं थे, मगर तब भी अन्य समुदायों के साथ उनके अच्छे व्यवहारिक संबंध थे। लोग एक-दूसरे का सम्मान करते थे और खास अवसरों पर संवाद और मिलना-जुलना भी होता था। इसलिए उनसे जुड़ी अच्छी बातों के बारे में और ज्यादा जानें, बजाए किसी नकारात्मक अनुभव को गांठ बांधकर बैठे रहने से।
किताबे पढ़े या ऐसी मूवीज़ देखें, जिनमें एलजीबीटीक्यू सोसायटी से आने वाले लोगों के बारे में जान सकें। इसके अलावा कुछ ऐसी वर्कशॉप्स और सेंशंस भी अटेंड करें, जिनमें जाकर आप इस बात को जान सकें कि उनकी जिंदगी आपकी जिंदगी से कैसे अलग है।
डॉ युवराज पंत बताते हैं कि इस बात को जान लें कि ये एक बायलॉजिकल मेकअप है और ये उनकी इच्छा से नहीं हो रहा है। हर व्यक्ति का सेक्सुअल ओरिएंटेशन अलग होता है। किसी की भी जिंदगी में दूसरे व्यक्ति की दखलअंदाजी गलत है।
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