शरीर तभी फिट रहता है जब मन प्रसन्नचित्त हो। फिटनेस के लिए तन और मन दोनों का स्वस्थ होना जरूरी है। आप अपनी मेहनत और बुद्धि से जो कुछ भी प्राप्त करते हैं, उसके लिए खुश होना जरूरी है। पर कभी-कभी कुछ लोग अपनी उपलब्धियों को भाग्य भरोसे मिला हुआ मानते हैं। अपने को कम आंकना, अपनी तुलना किसी और से करते रहना, दूसरों की ख़ुशी से इर्ष्या करना, खुद को संदेह की नजर से देखना आपके मन के बीमार होने का प्रतीक है। इसका मतलब है कि आपका मन बीमार है। यह एक तरह का सिंड्रोम है, जो इम्पोस्टर सिंड्रोम (Imposter Syndrome) कहलाता है। इसके बारे में विस्तार से जानने के लिए हमने बात की सर गंगाराम हॉस्पिटल में कंसलटेंट सीनियर क्लिनिकल सायकोलोजिस्ट डॉ. आरती आनंद से।
इम्पोस्टर सिंड्रोम के बारे में डॉ. आरती बताती हैं ‘ ऐसे लोगों को यदि सफलता मिल जाती है, तो वे उस पर भरोसा नहीं कर पाते हैं। वे सोचते हैं कि उनकी सफलता भाग्य भरोसे मिली है। यह फेक है।वे दूसरों से तुलना करती रहती हैं। उन्हें लगता है कि उन्होंने अपने क्षेत्र में जो कुछ भी हासिल किया है, वह कम है। दूसरों ने उनसे अधिक सफलता हासिल कर ली है। आप लगातार आत्म-संदेह का अनुभव करती हैं।
यदि आप लगातार ऐसा अनुभव कर रही हैं, तो यह इम्पोस्टर सिंड्रोम का लक्षण हो सकता है। इसके कारण आपको बेचैनी और घबराहट भी महसूस हो सकती है। मन में नकारात्मक विचार आ सकते हैं। जब भी आपको इम्पोस्टर सिंड्रोम (Imposter Syndrome) होता है, तो चिंता(Anxiety) और अवसाद(Depression) के लक्षण भी सामने आ सकते हैं।
डॉ. आरती बताती हैं, ‘ इम्पोस्टर सिंड्रोम को मानसिक बीमारी की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। यह सिर्फ एक सिंड्रोम है, डिसऑर्डर नहीं । इसे आमतौर पर इंटेलिजेंस और उपलब्धि के साथ इस्तेमाल किया जाता है। इसके विकसित होने के कई कारण हो सकते हैं।’
पारिवारिक पालन-पोषण (Family Upbringing)
नये काम का अवसर (New Work Opportunities)
खुद को कमतर समझना (inferiority complex)
खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करने की चाह (Perfectionism)
असफल होने का डर
डॉ. आरती कहती हैं , ‘ यदि सायको थेरेपी ली जाये या काउन्सलिंग की सहायता ली जाये, तो यह ठीक हो सकता हैडॉ. आरती बताती हैं इसके पहले इम्पोस्टर सिंड्रोम से शिकार लोग इन टिप्स को आजमा सकते हैं।
यदि आप कुछ बुरा महसूस कर रही हैं, तो तुरंत शेयर करें। आप जिन पर विश्वास करती हैं। जिस किसी को अपनी सारी बातें शेयर करती हैं, उनसे कहें। बातों को नहीं बता पाने के कारण इम्पोस्टर सिंड्रोम होने की संभावना बढ़ जाती है।
यदि आपको लगता है कि आप कोई काम नहीं कर पाएंगी, तो इसे अपनी अक्षमता नहीं समझें। अपनी क्षमता का वास्तविक मूल्यांकन करें। अपनी आज तक की उपलब्धियों पर भी गौर करें। हर व्यक्ति का एक ख़ास गुण होता है। आप अपने प्लस पॉइंट को लिखें। यदि आप किसी ख़ास स्किल में कमजोर हैं, तो उसे सीखने और प्रशिक्षण लेने का प्रयास करें।
हर बार जब आप किसी ख़ास व्यक्ति से अपनी तुलना करेंगी, तो आप अपने आप में सिर्फ दोष ही ढूंढ पाएंगी। इससे आप हीन भावना की शिकार होंगी । कभी भी अपनी तुलना दूसरों से नहीं करें। इसकी बजाय दूसरे व्यक्ति को सुनने का प्रयास करें। तुलना में जीने की बजाय आपने जो हासिल किया है, उससे खुश होने की कोशिश करें।
भावनाओं से लड़ने की बजाय आप जो हैं, उसे स्वीकार करें। अकड़ दिखाने की बजाय गलतियों को झुक कर स्वीकार करने की कोशिश करें। अपने-आप को कभी संदेह की नजर से नहीं देखें। आप हमेशा यह सकारात्मक विचार मन में लायें कि आप सभी वह कार्य कर सकती हैं, जो दूसरे करते हैं।
सोशल मीडिया पर अक्सर लोग अपनी उपलब्धि के बारे में बताते हैं। इससे सामने वाला व्यक्ति हीन भावना का शिकार हो सकता है। बदले में आप भी सोशल मीडिया पर अपनी ऐसी छवि पेश करने की कोशिश करती हैं, जो आपके वास्तविक स्वरूप से मेल नहीं खाती है। इस तरह का फरेब आप पर भावनात्मक दवाब बढ़ा सकता है। इसलिए हमेशा सोशल मीडिया पर एक्टिव नहीं रहें। खुद पर किसी तरह का दबाव हावी नहीं होने दें।
यदि आपके साथ काम करने वाला एम्प्लॉई या सहकर्मी एकाएक गुमसुम रहने लगा है, तो उससे बात करने की कोशिश करें। कुछ दिनों से वह अकेला रहने लगा है या लगी है, तो उन्हें समूह में बिठाने का प्रयास करें। बात-बात में उन्हें अपनी क्षमताओं पर विश्वास करने के लिए बताएं।
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