मेरे कपड़े कहां है, तुम हर काम में देरी करती हो, तुम्हारा दिमाग कहां रहता है। वगैरह वगैरह, सुबह उठते ही अक्सर होम मेकर्स को ये सब कुछ सुनने की आदत हो चुकी होती है। मगर यही छोटी छोटी बातें, उस वक्त इमोशनल एब्यूज़ (emotional abuse) का रूप ले लेती है, जब बिना कुछ कहे आप इन्हें स्वीकारने लगते हैं और अपनी गलती मानने लगते हैं। जब व्यक्ति कहीं न कहीं मानना शुरू कर दे कि वो कोई काम सही नहीं कर पाता, तो वो इमोशनल एब्यूज के चक्रव्यूह में घिरता चला जाता है, जिसका असर उसकी मेंटल हेल्थ पर दिखने लगता है। चलिए जानते हैं कि इमोशनल एब्यूज़ (emotional abuse) किसे कहते हैं और इससे कैसे बचा जा सकता है।
नेशनल डोमेस्टिक वायलेंस हॉटलाइन के अनुसार भावनात्मक दुर्व्यवहार यानि इमोशनल एब्यूज़ (emotional abuse) एक ऐसे नॉन फिज़िकल बिहेवियर (non-physical behavior) को कहा जाता है, जिसमें व्यक्ति दूसरे को डराने, धमकाने और नियंत्रित करने की कोशिश करता हैं। अक्सर रोमांटिक रिलेशनशिप्स और पति पत्नी के रिश्तों में धमकी, अपमान, ईर्ष्या और बदसलूकी इमोशनल एब्यूज़ को दर्शाता है।
इस बारे में मनोचिकित्सक डॉ युवराज पंत बताते हैं कि किसी को अपनी बातों, अपने व्यवहार और एक्सपेक्टेशंस से नीचा दिखाना इमोशनल एब्यूज़ (emotional abuse) कहलाता है। ऐसे व्यवहार के फलस्वरूप न केवल सामने वाले की भावनाएं आहत होती है बल्कि पार्टनर की मेंटल हेल्थ पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है।
कुछ लोग अपने आप को सही साबित करने के लिए अपने पार्टनर को हर वक्त नीचा दिखाते हैं और खुद से कम आंकने लगते हैं। उनके अनुसार उनका पार्टनर उन पर एक बोझ के समान है। ये लोग इनफीरीयोरिटी कॉम्प्लेस के शिकार होते हैं।
लोगों की नज़रों में अपने पार्टनर को गलत ठहराने के लिए ऐसे लोग चीखने और चिल्लाने लगते हैं। हर छोटी बात पर गलती निकालते हैं। इससे पार्टनर के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ता है और आपसी रिश्तों में कटुता बढ़ने लगती है।
अपने साथी कमियों को हर वक्त खोजते हैं और फिर छोटी छोटी कमियां निकालकर गुस्सा और बदसलूकी करते हैं। इससे दूसरे व्यक्ति का मनोबल पूरी तरह से गिर जाता है। व्यक्ति मन ही मन खुद को कम आंकने लगता है।
खुद को सही साबित करने और लोगों की सहानुभूति पाने के लिए रोने से भी पीछे नहीं हटते हैं। ताकि इससे पार्टनर को गिल्ट फील करवा पाएं। वे पार्टनर को हर प्रकार से अपने नियंत्रण में रखकर अपनी बात मनवाने का प्रयास करते हैं।
परवरिश के दौरान बच्चे को मिलने वाला पारिवारिक माहौल उसके व्यवहार में नज़र आता है। हर वक्त बच्चों को डांटना और उनके सामने चीखना चिल्लाना उनके मन को व्यथित कर देता है। इससे बच्चे के बिहेवियर में कठोरता और झुझलाहट पैदा होने लगती है।
जब बच्चे अपने पेरेंटस का आपसी व्यवहार देखते हैं, तो वही तस्वीर उनके मन में बैठ जाती है। अगर माता पिता में प्यार बना रहता है, तो बच्चे भी उसे फॉलो करते हैं। मगर जहां हर पल लड़ाई झगड़ा और एब्यूज़िव माहौल होता है, तो बच्चे भी उनकी चीजों के साथ बड़े होने लगते हैं।
बचपन की कोई ऐेसी घटना, जिसने बच्चे के दिलो दिमाग को झंझोड़ कर रख दिया है, वो इमोशनल एब्यूज का कारण साबित होता है। इससे बच्चे तनाव और डिप्रेशन इमें रहने लगते हैं और वो गुस्सा अन्य लोगों पर उतारने लगते हैं।
अपनी रुचि के विषय चुनें और फ़ीड कस्टमाइज़ करें
कस्टमाइज़ करेंवे लोग जो इमोशनल एब्यूज़ का सामना करते हैं, उन्हें अपने फैसलों और कार्यों पर मज़बूती पर खड़े रहना चाहिए। किसी की बातों का अपने मन पर प्रभाव न होने दें। इससे मेंटल हेल्थ प्रभावित होने का खतरा रहता है।
अगर पार्टनर बार बार इमोशनल एब्यूज़ का सहारा लेता है, तो उसे उसकी गलती बताएं और खुद को सेल्फ मोटिवेट करें। इससे पार्टनर के व्यवहार में अपने आप नरमी आने लगेगी। साथ ही हर बात के लिए दोषी ठहराए जाने की समस्या से भी मुक्ति मिल जाएगी।
अपने उठने बैठने और खान पान का पूरा ख्याल रखें। इसके अलावा मानसिक स्वास्थ्य को उचित बनाए रखने के लिए दोस्तों से मिलें और सोशल सर्कल बिल्ड करें। साथ ही कुछ वक्त मेडिटेशन के लिए भी निकालें।
दूसरा व्यक्ति आपके लिए क्या सोच रहा है, उसके अनुरूप खुद को ढ़ालने का प्रयास न करें। अपने व्यक्तित्व को मज़बूत बनाएं और सही गलत का फर्क समझें। अगर कोई बात आपकी पर्सनैलिटी या व्यवहार को प्रभावित करती है, तो उसके लिए खुद को दोषी न ठहराएं। जो सही लगे उसी मार्ग पर चलें।
ये भी पढ़ें- एंग्जाइटी और स्ट्रेस पर काबू पाने में मदद करेंगी ये 5 खास होम रेमेडीज, जानें ये किस तरह काम करती हैं