Reproductive Trauma : मुश्किल हो सकता है बच्चा न हो पाने का दर्द, जानिए इस ट्रॉमा से कैसे बाहर आना है

इनफर्टिलिटी, मिसकैरेज, अबॉर्शन जैसी किसी भी स्थिति में बच्चे का सपना जब अधूरा रह जाता है, तो माता-पिता दोनों को ही बहुत सारे भावनात्मक आघात का सामना करना पड़ता है। पर इससे उबरना जरूरी है।
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गर्भपात के बाद गर्भाशय बहुत संवेदनशील हो जाता है। चित्र : शटरस्टॉक
Published On: 27 Jun 2024, 06:55 pm IST
Dr. Ritu Sethi
इनपुट फ्राॅम

रिप्रोडक्टिव ट्रॉमा (reproductive trauma) एक बहुत ही संवेदनशील विषय है जिस पर आज हम बात करने जा रहे है। कई लोगों के लिए इस पर खुल कर बात करना काफी मुश्किल हो सकता है। मगर यह बहुत सारी महिलाओं के जीवन का सच है। हालांकि संख्या कम है, मगर पुरुषों को भी इस तरह की भावनाओं का अनुभव करना पड़ता है। प्रजनन (reproductive) संबंधी किसी भी समस्या से गुजरने वाले जोड़ों को बहुत सारे टैबूज का सामना करना पड़ता है। बिन मांगी सलाहें, झाेला छाप हैक्स और ताने रिप्रोडक्टिव ट्रॉमा का कारण बन जाते हैं। यह न केवल किसी व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य कमजोर करता है, बल्कि उसके वैवाहिक जीवन और सेहत को भी प्रभावित करता है। इसलिए इस पर बात करना, इसके बारे में जानना सभी के लिए जरूरी है।

रिप्रोडक्टिव ट्रॉमा क्या है (what is reproductive trauma)

गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. रितु सेठी बताती है कि रिप्रोडक्टिव ट्रॉमा किसी भी तरह के फर्टिलिटी समस्या से गुजरना होता है। जो लोग माता-पिता बनाने की चाह रखते हैं और किसी तरह की प्रजनन समस्या के कारण वे इसे हासिल नहीं कर पा रहें है, उसे बताने के लिए रिप्रोडक्टिव ट्रॉमा शब्द का इस्तेमाल किया जाता है।

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रिप्रोडक्टिव ट्रॉमा में, यह संभव है कि ट्रॉमा स्वयं ही दिल के दर्द और पीड़ा के दूसरे रूप को जन्म दे। चित्र : अडोबी स्टॉक

रिप्रोडक्टिव ट्रॉमा के कुछ उदाहरणों में शामिल हैं:

बांझपन (Infertility)
मरे हुए बच्चे का जन्म (Still birth)
गर्भपात abortion)
गर्भावस्था की जटिलताएं (Pregnancy complications)
मीसकैरेज (Miscarriage)
डीलिवरी में समस्या (Problems during delivery)
पोस्टपार्टम डिप्रेशन (Postpartum depression)

रिप्रोडक्टिव ट्रॉमा से उबरने में मदद कर सकते हैं ये टिप्स (How to overcome reproductive trauma)

रिप्रोडक्टिव ट्रॉमा में, यह संभव है कि ट्रॉमा स्वयं ही दिल के दर्द और पीड़ा के दूसरे रूप को जन्म दे। अगर किसी ने गर्भपात का अनुभव किया है, तो वे माता-पिता न बन पाने से जुड़े दर्द से भी जूझ रहे हो सकते हैं।

हो सकता है कि उन्होंने मानसिक रूप से बच्चे को जन्म देने के लिए खुद को तैयार कर लिया हो और अपने घर में अपने अजन्मे बच्चे के लिए एक विशेष स्थान बना लिया हो – जिसके परिणामस्वरूप उनका सपना टूट सकता है। ।

1 समझें कि आप अकेले नहीं हैं

रिप्रोडक्टिव ट्रॉमा से निपटना मुश्किल हो सकता है क्योंकि यह अस्पष्ट हो सकता है। जब आप नहीं जानते कि इसे कैसे करना है, तो ट्रॉमा को स्वीकार करना या उससे निपटना कठिन होता है, और यह बेहद अकेलापन महसूस करा सकता है।

लेकिन, ऐसे समय में आपको खुद को याद दिलाना चाहिए कि आप अकेले नहीं हैं। जितना अधिक आप इसके बारे में बात करेंगे, उतना ही अधिक सांत्वना और शोक आप अनुभव कर पाएंगे।

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इसके लिए यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति या लोगों को ढुंढेंगे जो आपको समझ सकते है वो अमूल्य होगा। आपको खुद के प्रति ही सहानुभूति रखनी चाहिए।

2 अपनी भावनाओं को समझे उन्हें ठीक करने की कोशिश न करें

जब एक पार्टनर दूसरे की भावनाओं को मान्य करता है, तो यह उन्हें “ठीक” करने या “समाधान” करने की कोशिश करने से ज़्यादा प्रभावी होता है। अगर आप रिश्ते में निकटता का अनुभव करना चाहते हैं, तो इसका मतलब है दर्द में साथ बैठना। आप उन्हें इस तरह की बाते कह सकते है जैसे ये बहुत मुश्किल है, मैं आपका दर्द देख सकता हूं।

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अगर आप बाहरी लोगों की सलाह सुनते हैं, तो याद रखें कि उनमें से सभी मददगार नहीं होंगी।

3 बाहरी लोगों की राय को अपने ऊपर हावी न होने दें

लोगों का आपको सलाह या मार्गदर्शन देना स्वाभाविक है। लेकिन सिर्फ़ इसलिए कि हर किसी की अपनी राय होती है, इसका मतलब यह नहीं है कि वे सही या मान्य हैं।

अगर आप बाहरी लोगों की सलाह सुनते हैं, तो याद रखें कि उनमें से सभी मददगार नहीं होंगी। माता-पिता बनने के बारे में हर किसी को अपने विचार और भावनाएं रखने की अनुमति है, लेकिन सिर्फ़ आप ही जानते हैं कि आपका ट्रॉमा कैसा लगता है।

ऐसे समय में, अपने पार्टनर या मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ की मदद लेना आपके लिए सबसे अच्छी बात हो सकती है।

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डिस्क्लेमर: हेल्थ शॉट्स पर, हम आपके स्वास्थ्य और कल्याण के लिए सटीक, भरोसेमंद और प्रामाणिक जानकारी प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके बावजूद, वेबसाइट पर प्रस्तुत सामग्री केवल जानकारी देने के उद्देश्य से है। इसे विशेषज्ञ चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार का विकल्प नहीं माना जाना चाहिए। अपनी विशेष स्वास्थ्य स्थिति और चिंताओं के लिए हमेशा एक योग्य स्वास्थ्य विशेषज्ञ से व्यक्तिगत सलाह लें।

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लेखक के बारे में
संध्या सिंह
संध्या सिंह

दिल्ली यूनिवर्सिटी से जर्नलिज़्म ग्रेजुएट संध्या सिंह महिलाओं की सेहत, फिटनेस, ब्यूटी और जीवनशैली मुद्दों की अध्येता हैं। विभिन्न विशेषज्ञों और शोध संस्थानों से संपर्क कर वे  शोधपूर्ण-तथ्यात्मक सामग्री पाठकों के लिए मुहैया करवा रहीं हैं। संध्या बॉडी पॉजिटिविटी और महिला अधिकारों की समर्थक हैं।

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