बढ़ती उम्र में व्यक्ति के शरीर में कई प्रकार के बदलाव महसूस होने लगते हैं। कभी पाचनतंत्र में गड़बड़ी, तो कभी चलने फिरने में तकलीफ। इसके अलावा चीजों को रखकर भूल जाना और गुमसुम रहना डिमेंशिया का संकेत है। इससे व्यक्ति की मेंटल और इमोशनल हेल्थ (mental and emotional health) दोनों प्रभावित होने लगते है, जिसका असर ओवरऑल हेल्थ पर दिखने लगता है। दरअसल, उम्र के साथ व्यक्ति के जीवन में अकेलापन बढ़ने लगता है। इसके अलावा खानपान का ख्याल न रखना और कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं डिमेंशिया के लक्षणों (signs of dementia) को बढ़ा देती है। जानते हैं डिमेंशिया के कारण (causes of dementia) और इससे राहत पाने के उपाय भी।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर एंड स्ट्रोक की एक रिसर्च सामने आई है। इसमें उन 14 लोगों को लिया गया है, जो कोविड से पहले डिमेंशिया के शिकार थे। इसमें से 4 लोगों को अल्ज़ाइमर, 5 लोगों को वस्क्यूलर डिमेंशिया, तीन लोगों को पार्किनसंस और दो लोगों को बिहेवियरल डिमेंशिया पाया गया था। एक साल बाद ब्रेन इमेजिंग (brain imaging) और असेंसमेंट के जरिए रिसर्च की गई। इसमें पाया गया कि इन लोगों में थकान, तनाव, एकाग्रता की कमी, बातचीत और नेच संबधी विकारों में बढ़ोतरी हुई है।
एनआईएच की रिपोर्ट के अनुसार भारत में अप्रैल 2023 तक 60 वर्ष से अधिक आयु के 7.4 फीसदी लोग यानि 8.8 मिलियन लोग डिमेंशिया जैसे रोग से पीड़ित थे । ये आंकड़ा साल 2020 रिपोर्ट के अनुमान 5.3 मिलियन से कहीं ज्यादा है। रिसर्च के अनुसार पाया गया कि डिमेंशिया ग्रामीण इलाकों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं में ज्यादा पाया जा रहा है। इसके अलावा जर्नल ऑफ अल्ज़ाइमर और डिमेंशिया के मुताबिक साल 2036 तक डिमेंशिया से पीडित लोगों की तादाद 1.7 करोड़ हो जाएगी।
इस बारे में डॉ आरती आनंद बताती हैं कि कई कारणों से ब्रेन में न्यूरॉन्स की असामान्य वृद्धि के कारण मानसिक स्वास्थ्य पर होने वाले प्रभाव को डिमेंशिया कहते है। मानसिक क्षमताओं में आने वाली गिरावट डिमेंशिया का संकेत देती हैं।
चीजों को भूलने के अलावा बातचीत का ढ़ग और कोई भी निर्णय लेने में होने वाली देरी डिमेंशिया को दर्शाती है। इससे व्यक्ति के कोग्निटिव स्किल्स कम हो जाते है। इससे व्यक्ति की भाषा से लेकर सोशल बिहेवियर में बदलाव दिखने लगता है। जानते हैं डिमेंशिया के कारण।
सीडीसी की रिपोर्ट के अनुसार डिमेंशिया वृद्धावस्था से जुड़ी एक गंभीर समस्या है। इसके चलते अकेलापन महसूस करना और अन्य लोगों से अलग थलग रहना जीवन में तनाव को बढ़ाता है। सामाजिक अलगाव के चलते एंग्जाइटी की समस्या बढ़ने लगती है और 29 फीसदी हृदय रोगों का जोखिम बढ़ जाता है। रिसर्च के अनुसार वे लोग जो खुद को सोशली आइसोलेट कर लेते हैं, उनमें 26 फीसदी डिमेंशिया के बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है।
जर्नल ऑफ अल्ज़ाइमर एसोसिएशन के अनुसार नर्व सेल्स यानि न्यूरॉन्स के डैमेज होने के चलते अल्जाइमर का खतरा बढ़ने लगता है। अल्जाइमर डिमेंशिया का मुख्य कारण है। इससे सोचने समझने, बोलने और याद रखने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। अल्ज़ाइमर उम्र के साथ व्यक्ति को अपनी चपेट में ले लेता है। इसके अलावा ये एक जेनेटिकल रोग है।
शरीर में बढ़ने वाली थायरॉइड की समस्या कॉग्नीटिव इंपेयरमेंट (causes of cognitive impairment) का कारण बन जाती है। दरअसल, थायरॉइड हार्मोन शरीर में मेटाबॉलिज्म को नियंत्रित करता हैं। इसका असर मेंटल हेल्थ पर भी दिखने लगता है। थायरॉइड हार्मोन में बढ़ने वाल असंतुलन के चलते ब्रेन में एबनॉर्मन मेटाबॉलिज्म और ग्लूकोज कंज्प्शन प्रभावित होने लगती है। इसके अलावा ब्रेन सेल्स पर भी उसका असर दिखने लगता है।
ओमेगा 3 फैटी एसिड समेत मैग्नीशियम और कैरोटेनॉइड्स का सेवन ब्रेन हेल्थ को बूस्ट करता है। मगर संतुलित आहार न लेना इस समस्या को बढ़ा सकता है। शरीर में न्यूरोट्रांसमीटर्स को रेगुलेट करने के लिए आहार में विटामिन, मिनरल और एंटीऑक्सीडेंटस को शामिल अवश्य करें। साथ ही मील स्किप करने से भी बचें।
मोनाश यूनिवर्सिटी की रिसर्च के अनुसार रोज़ाना कुछ देर माइंड गेम्स खेलने से डिमेंशिया का जोखिम 11 फीसदी तक कम होने लगता है। इसके लिए रोज़ाना क्रॉसवर्ड, चेस, वर्ड सर्च और अन्य ब्रेन गेम्स खेलें। ब्रेन सेलस बूस्ट होने से भूलने की समस्या दूर होती है।
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कस्टमाइज़ करेंरात में पूरी नींद न ले पाना डिमेंशिश के जोखिम को बढ़ा देता है। इससे ब्रेन फंक्शनिंग में सुधार आने लगता है और तनाव व चिंता से भी राहत मिलती है। दिनभर में 8 से 10 घंटे की नींद शरीर को एक्टिव और हेल्दी बनाए रखती है।
ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ और स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज़ अवश्य करें। इससे शरीर में ब्लड का सर्कुलेशन बढ़ने लगता है और मानसिक तनाव से राहत मिल जाती है। साथ ही मूड बूस्टिंग में मदद मिलती है। इसके अलावा सेल्फ इस्टीम बढ़ने लगती है और प्रॉबल्म सॉल्विंग स्किल्स में बढ़ोतरी होती है।
अकेलापन दूर करने के लिए अपने दोस्तों से मिले जुलें और बातचीत करें। इससे मेंटल हेल्थ बूस्ट होती है और व्यक्ति सोशनी एक्टिव बना रहता है। लोगों से मेलजोल बढ़ाने से सोशल इंटरैक्शन बढ़ जाता है। इसके अलावा परिवार के लोगों के साथ कुछ वक्त बिताएं।