किसी भी मकान में जब तक बच्चों की शैतानियां, उनकी नादानियां और उनकी आवाज़ न गूंजे, तब तक वो मकान ‘घर’ नहीं बनता। बचपन वो खूबसूरत सफर होता है, जिसमें जिस तरह के बीज पड़ जाए वैसा ही फल बड़े हो कर मिलता है। इसीलिए हमेशा कहा जाता है कि बचपन में बच्चों का ख़ास ख्याल रखना चाहिए। वहीं, बचपन के इस सफर को और खूबसूरत बनाते है उनके भाई-बहन यानी उनके सिब्लिंग्स।
आमतौर पर सभी घरों में भाई बहनों में थोड़ा बहुत लड़ाई झगड़ा चलता ही रहता है। इन लड़ाई- झगड़ों की कोई असल वजह नहीं होती। छोटी-छोटी बातों पर हो जाने वाली इन लड़ाइयों को आजकल की मॉडर्न भाषा में ‘सिब्लिंग्स राइवलरी’ भी कहा जाता है। लेकिन अक्सर साधारण सी दिखने वाली ये लड़ाइयां कब बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने लगती है, पता ही नहीं चलता।
हाल ही में हार्वर्ड हेल्थ ने अपनी एक रिपोर्ट साझा की है, जिसमें बताया गया है कि वैसे तो ‘सिब्लिंग्स’ की आपस में होने वाली लड़ाई आम होती है लेकिन बहुत अधिक झगड़ा और आपस में अत्यधिक प्रतिस्पर्धा की भावना उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी काफी हानिकारक हो सकती है। इसके कारण बच्चों के खुद को और अपने पारिवारिक रिश्तों को देखने के तरीके पर इसका प्रभाव भी पड़ सकता है।
वहीं, नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की एक रिपोर्ट भी यह बताती है कि सिबलिंग के द्वारा की जाने वाली ‘बुलिंग’ के कारण बच्चों को अपने जीवन के शुरूआती हिस्से में डिप्रेसन की समस्या हो सकती है, जिसके कारण उन्हें एंग्जाइटी और आत्महत्या के ख्याल भी आ सकते है।
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन ने बताया कि ‘सिब्लिंग्स’ के बीच होने वाली इन गंभीर लड़ाइयों को अधिक गहराई से समझने के उन्होंने यूके के लगभग 6900 युवाओं का परीक्षण किया जो अपने बड़े भाई या बहन से बुलिंग का शिकार हुए है। इस स्टडी में 12-18 वर्ष के बच्चों का परीक्षण किया गया, जिसके बाद यह पता चला कि अत्यधिक सिब्लिंग्स राइवलरी के कारण जो बच्चे पीड़ित हुए है उनमें डिप्रेशन, एंग्जाइटी और आत्महत्या की भावना, उन बच्चों से अधिक देखी गई जिनको भाई या बहनों द्वारा बुली नहीं किया गया।
बचपन में सिब्लिंग्स के बीच होने वाली हाई-इंटेंसिटी फाइट और बुलिंग से एक नहीं बल्कि दोनों बच्चे प्रभावित होते है। कई बार तो लड़ाइयों का स्तर इतना गहरा होता है कि उसके परिणाम बच्चे को हमेशा याद रहते है, जिसके कारण बच्चे का मानसिक और सामाजिक जीवन भी प्रभावित होता है।
जर्नल ऑफ फैमिली साइकोलॉजी में छपे एक अध्ययन में बताया गया कि, बचपन में होने वाले सिब्लिंग्स के झगड़े में उन दोनों के बीच तनाव स्तर काफी हद तक बढ़ सकता है, जिसके कारण उनके रिश्तों में समस्या भी आ सकती है। इसी के साथ बचपन के दौरान दीर्घकालिक तनाव को चिंता और डिप्रेशन सहित विभिन्न मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से भी जोड़ा जाता है।
अक्सर बच्चे जाने-अनजाने एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए तमाम ऐसी चीज़ों का सहारा लेते है, जो दूसरे बच्चे के आत्म-विशवास को कम कर सकता है। आमतौर पर बच्चे अपने सिबलिंग के बॉडी टाइप, उनकी स्किल्स, उनकी किसी ऐसी चीज़ पर कमेंट कर देते है, जिससे उनकी मानसिक क्षमता ट्रिगर हो जाती है और वो बात बच्चे के मन में ही बनी रहती है। ऐसे में जब बच्चा समाज में निकलता है तब वो अपनी उसी कमी के बारे में सोचता रहता है, जिसके कारण उसके आत्म-विशवास में कमी आती है।
बच्चे बहुत सेंसिटिव होते है इसलिए जब बच्चे ऐसी किसी लड़ाई में पड़ते हैं, तो उन्हें तमाम तरह की मानसिक समस्याओं से भी गुज़रना पड़ता है। जर्नल ऑफ एब्नॉर्मल चाइल्ड साइकोलॉजी में छपा एक अध्ययन बताता है कि ‘सिबलिंग राइवलरी’ से पीड़ित बच्चों में बढ़ती भावनात्मक और व्यवहार संबंधी समस्याएं साधारण बच्चों के मुकाबले अधिक देखी गई है।
साथ ही रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि, भाई-बहन के द्वारा की जाने वाली बुलिंग डिप्रेशन, चिंता और यहां तक कि पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) जैसे मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों के विकास में योगदान कर सकती है।
दरअसल, ‘पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर’ (PTSD) एक मानसिक स्वास्थ्य समस्या है जो किसी व्यक्ति को एक गंभीर घटना के बाद असुविधाओं के साथ जीने में रुकावट डाल सकती है। यह घटना व्यक्ति के जीवन में काफी समस्या भी पैदा कर सकती है, जिससे व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
बच्चों के बीच में आने वाली इस दरार को माता-पिता अपनी सूझबूझ और अच्छी पैरेंटिंग से दूर कर सकते है। यदि आपको भी लगता है कि आपके बच्चे ‘सिब्लिंग्स राइवलरी’ की तरफ अग्रसर हैं, तो आप हार्वर्ड की रिपोर्ट में सुझाएं गए कुछ टिप्स को अपना सकते है।
रिपोर्ट बतातीं हैं कि सभी बच्चे अपने में स्पेशल होते है और सभी में अपना अलग स्किल सेट होता है। वहीं, पैरेंट्स के नाते आपको अपने सभी बच्चों से एक जैसा ही व्यवहार करना चाहिए और साथ ही कभी किसी की तुलना आपस में नहीं करनी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि यदि आप अपने किसी बच्चे को अच्छा कहते है और दूसरे को बुरा, तो इससे बच्चों के हृदय में एक-दूसरे के प्रति नकारात्मक भावनाएं उत्पन्न होती है।
जीवन में अक्सर ऐसी परिस्थितियां आती हैं जब एक बच्चा अपने किसी सफल हो जाता है और उसका जश्न मनाता है, ऐसे में दूसरे सिबलिंग को बुरा भी लग सकता है। ऐसी स्थिति में पैरेंट्स के तौर पर आपका कर्तव्य हैं कि जिस बच्चे ने सफलता हासिल की है, तो उसके साथ शामिल भी हो।
वहीं, दूसरी तरफ जो बच्चा दुखी है उससे समझाएं और उसके साथी बने। ऐसा करने से दोनों की बच्चों के बीच इमोशनल डिस्टेंस कम होगा, जिससे ‘सिब्लिंग्स राइवलरी’ की समस्या नहीं आएगी।
अपने बीजी शेड्यूल से समय निकाले और सभी बच्चों के साथ उनकी पसंद की एक्टिविटीज़ करे। कोशिश करें कि सभी सिब्लिंग्स एक- दूसरे की मनपसंद एक्टिविटीज़ में साथ दे, ऐसा करने से उनको एक दूसरे की पसंद-नापसंद के बारे में पता चलेगा। जिससे उनके बीच की राइवलरी भी खत्म होगी।
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