ज्यादा मात्रा में शराब का सेवन करने से उसका असर मेंटल हेल्थ पर होने लगता है। इसके चलते शरीर को डिमेंशिया की समस्या का सामना करना पडता है। हाल ही में आई रिसर्च के अनुसार लंबे वक्त तक अल्कोहल इनटेक से एएलडी और लीवर सिरोसिस की समस्या बढ़ जाती है। दरअसल, डिमेंशिया एक मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर है। इसका असर व्यक्ति की याद रखने और सोचने समझने की क्षमता पर दिखने लगता है। जानते हैं डिमेशिया और लीवर रोग कैसे एक दूसरे से संबधित है (liver disease and dementia)।
लिवर सिरोसिस एक मेटाबॉलिज्म डिज़ीज है, जो अल्कोहल इनटेक के साथ बढ़ने लगता है। ये समस्या धीरे धीरे बढ़ने लगती है। आमतौर पर अल्कोहल यूज़ डिसऑर्डर, हेपेटाइटिस बी या सी संक्रमण का रिस्क न होने पर लिवर की जांच नहीं करवाई जाती है। लिवर सिरोसिस में डायबिटीज, मोटापा और हाई ब्लड प्रेशर का खतरा भी बना रहता है।
जामा नेटवर्क ओपन में पब्लिश एक रिपोर्ट के अनुसार डिमेंशिया से ग्रस्त 10 फीसदी लोगों में लीवर से संबधित रोग हेपेटिक एन्सेफैलोपैथी पाया जाता है। इसके चलते व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन दिखता है, व्यक्ति हल्का चिड़चिड़ा और नींद की समस्या से दो चार होने लगता है। डिमेंशिया के लक्षणों के बढ़ने के चलते व्यक्ति को भूलने की बीमारी और असमंजस का सामना करना पड़ता है। इसके चलते व्यक्ति मानसिक तनाव का भी शिकार हो सकता है।
लिवर की बीमारी से ग्रस्त 50 फीसदी लोगों में लिवर एन्सेफैलोपैथी पाया जाता है। दरअसल, लिवर में ब्लड को प्यूरीफाई करने की क्षमता नहीं बचती है तो कचरे के वे टुकड़े मस्तिष्क में फैल जाते हैं। ऐसे में अमोनिया और मैंगनीज जैसे विषाक्त पदार्थों का मस्तिष्क कोशिकाओं पर जहरीला प्रभाव पड़ता है। एन्सेफैलोपैथी का प्रभाव बढ़ने से मोटर स्किल्स में कमी, नींद न आना और भूलने की समस्या का सामना करना पड़ता है ।
ब्लड में टॉक्सिन बिल्ड होने से वे मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं। इस समस्या से ग्रस्त लोगों को शुरूआत में सूंघने में तकलीफ, मूड में बदलाव आना, एकाग्रता में कमी, कंफ्यूजन और लिखने में दिक्कत आने लगती है। धीरे धीरे जब ये समस्या बढ़ जाती है, तो बोलने के दौरान हकलाना, हाथों का हिलना और तनाव की समस्या बनी रहती है। डाइट में शुगर और प्रोटीन की अधिक मात्रा या निर्जलीकरण की समस्या भी इस जोखिम को बढ़ा देती है।
रिसर्च के अनुसार वायरल हेपेटाइटिस और ज्यादा मात्रा में अल्कोहल इनटेक करने वालों में हाई फाइब्रोसिस 4 की समस्या आमतौर पर पाई जाती है। ये समस्या लीवर रोग के लिए बेहद नुकसानदायक है। वहीं मधुमेह, हाई ब्लड प्रेशर और गुर्दे की बीमारी वाले लोगों में इस समस्या की संभावना कम पाई गई थी। रिसर्च के अनुसार हाई फाइबोरोसिस 4 वाले लोगों को लीवर एन्सेफैलोपैथी के साथ लीवर डिज़ीज़ भी हो सकता है।
वर्ल्ड हेल्थ डॉट नेट की रिसर्च के अनुसार हेपेटिक एन्सेफैलोपैथी का पता लगाना और इलाज है। मगर लिवर सिरोसिस एक ऐसी समस्या है, जिसकी पहचान लंबे वक्त तक नहीं हो पाती है। इसके चलते लिवर धीरे धीरे कमज़ोर होने लगता है और लास्ट स्टेज तक पहुंच जाता है। इसके चलते एचई यानि हेपेटिक एन्सेफैलोपैथी का इलाज कठिन होने लगता है।
इस स्टडी के अनुसार 175, 000 से ज्यादा पूर्व सैनिकों की रक्त की जांच की गई। टेस्ट के बाद उनमें डिमेंशिया का खतरा पाया गया। वेटरल हेल्थ एडमिनीस्टरेशन यानि वयोवृद्ध स्वास्थ्य प्रशासन में 10 साल तक इलाज किया गया। दरअसल एफआईबी 4 स्कोर की जानकारी एकत्रित करने के लिए टेस्ट किया गया। इस टेस्ट में पाया गया कि 10 फीसदी वेटर्नस में एफआईबी 4 का स्कोर 3.25 से ज्यादा है।
ऐसे में लिवर एन्सेफैलोपैथी का इलाज एंटीबायोटिक दवाओं की मदद से किया जाता है। इससे पेट में मौजूद हार्मफुल बैक्टीरिया को कम करने में मदद मिलती है। इसके अलावा लैक्टुलोज एक सिंथेटिक चीनी होती है। इसकी मदद से शरीर में मौजूद विषैले पदार्थों को बाहर निकालकर कोलन को क्लीन करमें में मदद मिलती है।
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