ह्यूमन इज़ अ सोशल एनिमल (Human Is a Social Animal)। ये कहावत ऐसे ही नहीं बनी है। असल में लोगों से घुलना-मिलना न सिर्फ हमें आनंद देता है, बल्कि ये हमारे ब्रेन के बेहतर काम करने के लिए भी जरूरी है। कुछ लोगों को अकेले रहना पसंद होता है, तो कुछ पीपल फ़्रेडली होते हैं। आप एक्सट्रोवर्ट हों या इंट्रोवर्ट, अगर आप अपने ब्रेन की लाइफ बढ़ाना चाहती हैं और डिमेंशिया जैसी बीमारी के जोखिम से बचना चाहती हैं, तो यह जरूरी है कि आप लोगों से मिलती-जुलती रहें।
समाज में बने रहने, उन्नति करने और कुछ नया सीखने के लिए हमें लोगों की ज़रूरत है। भले ही हम लोगों से कम बात करें, लेकिन बात करना ज़रूरी है। क्योंकि अकेले रहना मानसिक स्वास्थ्य के लिए कई समस्याएं पैदा कर सकता है। यकीन नहीं होता, तो जानिए इस अध्ययन में क्या सामने आया?
जर्नल ऑफ न्यूरोलॉजी में प्रकाशित हुए शोध के अनुसार, सामाजिक अलगाव यानी अकेलापन मनोभ्रंश (Dementia) के उच्च जोखिम से जुड़ा हुआ है। अध्ययन में पाया गया कि सामाजिक अलगाव अवसाद और अकेलेपन जैसी कई समस्याओं जैसे डिमेंशिया के रिस्क को 26% तक बढ़ा सकता है।
इस अध्ययन में लगभग 460,000 से अधिक लोगों को शामिल किया गया, जो लंबे समय से आइसोलेशन में थे। उनमें से, लगभग 42,000 (9%) ने सामाजिक रूप से अलग-थलग होने की सूचना दी, और 29,000 (6%) ने अकेलापन महसूस किया। अध्ययन के दौरान, इनमें से लगभग 5,000 ने मनोभ्रंश यानी डिमेंशिया की समस्या विकसित की।
उम्र, लिंग, सामाजिक आर्थिक स्थिति, शराब का सेवन और धूम्रपान, और अवसाद और अकेलेपन जैसी अन्य स्थितियों सहित कारकों के समायोजन के बाद, शोधकर्ताओं ने पाया कि सामाजिक रूप से अलग-थलग व्यक्तियों में सीखने और सोच से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में मस्तिष्क के ग्रे पदार्थ की मात्रा कम थी।
शोधकर्ताओं ने पाया कि जो लोग सामाजिक रूप से आईसोलेटेड थे, उनमें बिना सामाजिक अलगाव वाले लोगों की तुलना में डिमेंशिया विकसित होने की संभावना 26% अधिक थी। कुल मिलाकर, परिणामों से पता चला कि कम ग्रे मैटर वॉल्यूम उच्च सामाजिक अलगाव से जुड़े थे।
चीन के शंघाई में फुडन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और अध्ययन के लेखक जियानफेंग फेंग ने कहा, “सामाजिक अलगाव एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है, जिसके बारे में कोई इतना जागरूक नहीं है। यह अक्सर बुढ़ापे से जुड़ी होती है।”
“कोविड -19 महामारी की वजह से सामाजिक अलगाव बढ़ा है। ऐसे में यह और महत्वपूर्ण है कि लोग आपस में मेल-जोल बढ़ाएं।”
सामाजिक अलगाव अकाल मृत्यु का भी कारण बन सकता है।
सामाजिक संबंधों में खराबी आना हृदय रोग के 29% जोखिम को बढ़ाता है।
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कस्टमाइज़ करेंइतना ही नहीं, अकेलापन अवसाद, एंग्जाइटी और आत्महत्या का भी कारण बन सकता है।
उपरोक्त शोध यह साबित करता है कि अकेलापन और सोशली आइसोलेट होना डिमेंशिया के जोखिम को बढ़ा सकता है। आंकड़े बताते हैं कि यह समस्या वृद्धावस्था से जुड़ी हुई है। ऐसे में भारतीय परिवार व्यवस्था मददगार साबित हो सकती है। वहां जहां तीन पीढ़ियां एक साथ रहती हैं, लोगों के आइसोलेट होने या अलग-थलग पड़ने के जोखिम कम होते हैं। हालांकि बिजी लाइफस्टाइल और महानगरों की आपाधापी में यह मुश्किल होने लगा है, पर मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक संबल के लिए इस व्यवस्था पर पुनर्विचार किया जा सकता है।
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