लंबे समय तक एक पोजिशन में बैठे रहने में जो सबसे अधिक समस्या होती है, वह है बैक पेन की। घर-बाहर दोहरी जिम्मेदारी निभाने वाली महिलाओं में यह सबसे आम बीमारी है। जब दर्द बढ़ जाता है, तो महिलाएं झट से या तो पेन किलर खा लेती हैं या घर पर मौजूद रहने पर हॉट वाटर बैग कमर के पीछे लगा लेती हैं। यह संभव है कि परेशानी बढ़ने पर वे डॉक्टर के पास भी चली जाती हों, लेकिन ज्यादातर मामलों में दवा भी लंबे समय तक असरकारक सिद्ध नहीं हो पाती है। पर क्या आप जानती हैं कि कमर दर्द कभी-कभी आपके भावनात्मक तनाव (Emotional causes of back pain) के कारण भी हो सकता है।
दरअसल, यह दर्द आपकी भावनाओं (Emotional stress) से जुड़ा होता है। एक सर्वे की रिपोर्ट की मानें, तो अमेरिका में स्त्री-पुरुष, दोनों अन्य बीमारियों की अपेक्षा सबसे अधिक खर्च बैक पेन के इलाज (Back pain treatment) पर करते हैं। इसकी एक वजह नौकरी की असुरक्षा भी मानी गई। क्या साइकोथेरेपी से बैक पेन में राहत मिल सकती है? आइए जानते हैं, इस बारे में रिसर्च क्या कहता है?
2010 में ग्रेट ब्रिटेन के वारविक यूनिवर्सिटी में एक रिसर्च हुई। इसमें बैक पेन से पीड़ित लोगों को अपनी स्थिति के बारे में सोचने को कहा गया और उनसे स्वयं में व्यवहार संबंधी कुछ बदलाव लाने को भी कहा गया।
रिसर्च के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया कि कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (cognitive behavioral therapy) कमर दर्द को कम करने में अधिक कारगर है। शोधकर्ताओं ने माना कि बैक पेन साइकोलॉजिकल पेन नहीं है, बल्कि यह फिजिकल प्रॉब्लम है। लेकिन इस दर्द के बारे में मरीज जिस तरह से सोचते हैं, उनकी यह सोच उस दर्द को मैनेज करने में प्रभावी हो सकती है।
यह रिसर्च लांसेट जर्नल में भी प्रकाशित हुई थी। यहां पर ओशो की वह बात प्रासंगिक हो जाती है कि जब व्यक्ति काम में बहुत अधिक व्यस्त रहता है या बहुत अधिक भयभीत हो जाता है, तब वह अपने हर शारीरिक दर्द को भूल जाता है।
गुरुग्राम में मन: स्थली वेलनेस की फाउंडर और सीनियर साइकेट्रिस्ट डॉ. ज्योति कपूर कहती हैं, “इन दिनों लगातार एक पोजिशन में बैठकर काम करने के कारण बैक पेन की समस्या लोगों को अधिक प्रभावित कर रही है। यदि पीठ दर्द काफी लंबे समय से हो रहा है, तो जो ट्रीटमेंट दिए जाते हैं, वह अक्सर अस्थायी राहत प्रदान करते हैं। यदि पीठ दर्द चार सप्ताह से कम समय तक रहा हो, तो आमतौर पर कुछ दिनों से लेकर कुछ महीनों में यह ठीक हो जाता है।’
जब अस्थायी रूप से तेज बैक पेन हो, तो समझ लीजिए यह साइकोलॉजिकल समस्या जैसे कि एंग्जाइटी और डिप्रेशन से जुड़ा है। यह भाव किसी प्रकार की चिंता, उदासी या घर-ऑफिस में हुए डिस्करेजमेंट से भी आ सकता है। यदि आप किसी दूसरे के विचारों, आदेशों से परेशान होेकर बैठती हैं, तो आपका लोअर बैक आपकी दमित भावनाओं को स्टोर कर लेता है। इससे रिलीफ पाने का एकमात्र उपाय है सकारात्मक तरीके से उस फ्रस्ट्रेशन को बाहर निकाल लेना।
प्रभावी है संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (Cognitive behavioral therapy)
डॉ. ज्योति के अनुसार, पारंपरिक उपचारों की तुलना में पीठ दर्द से राहत के लिए बायोफीडबैक, ब्रीदिंग एक्सरसाइज यानी प्राणायाम और संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी जैसे मनोवैज्ञानिक अप्रोच अधिक फायदेमंद हो सकते हैं।
लोग बायोफीडबैक की मदद से हर्ट रेट और मांसपेशियों में तनाव जैसी शारीरिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित कर सकते हैं। लोगों को दर्द से निपटने में सहायता करने के लिए संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा बताती है कि दर्द होने पर कैसे सोचना और व्यवहार करना चाहिए।
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कस्टमाइज़ करेंहालांकि लोअर बैक पेन में साइकोलॉजिकली बेस्ड ट्रीटमेंट की सिफारिश अधिक की जा रही है। इसके बावजूद इनका उपयोग उतना नहीं किया जाता है, जितना होना चाहिए। कई बार खुद मरीज भी इस उपचार को तर्कसंगत तरीके से नहीं ले पाते हैं।
पारंपरिक तरीकों की तुलना में साइकोथेरेपी के माध्यम से बैक पेन का किया जाने वाला उपचार अक्सर कम खर्चीला होता है। जब साइकोलॉजिकल कंपोनेंट्स के साथ रीहैबिलिएशन की तुलना की जाती है, तो सर्जरी, ओपिओइड, नर्व ब्लॉक, स्पाइनल कॉर्ड स्टिमुलेटर और इंप्लांटेबल ड्रग डिलीवरी सिस्टम सभी काफी अधिक महंगी होती हैं।
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