हर व्यक्ति जीवन में सुकून की तलाश में इधर से उधर भटक रहा है, मगर रोज़मर्रा के जीवन में ऐसी बहुत सी समस्याएं है, जो इमोशनल स्ट्रेस यानि भावनात्मक तनाव का कारण साबित होती हैं। उन समस्याओं का सामना करने के दौरान व्यक्ति चिंता का शिकार होने लगता है। अब लगातार तनाव में रहना डिप्रेशन और एंग्ज़ाइटी के अलावा हृदय स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। जानते हैं कैसे हमारे इमोशंस हृदय स्वास्थ्य को प्रभावित करने लगते है (emotional stress effect on heart)।
युनिवर्सिटी ऑफ रोकेस्टर मेडिकल सेंटर के अनुसार भावनात्मक तनाव शरीर में नकारात्मकता को बढ़ा देता है। इसके चलते व्यक्ति क्रोधित, चिंतित, तनावग्रस्त, निराश, भयभीत और खुद को उदास महसूस करने लगता हैं। दरअसल, इसके चलते शरीर में कोर्टिसोल और एड्रेनालाईन हार्मोन का स्तर बढ़ने लगता हैं। इससे हृदय तेज़ी से धड़कने लगता है और ब्लड वेसल्स संकीर्ण होने लगती हैं। नतीजन रक्त का प्रवाह प्रभावित होने लगता है। साथ ही हार्मोन के रिलीज़ से ब्लड प्रेशर और ब्लड शुगर का स्तर भी बढ़ जाता है। तनाव नियंत्रित न होने की सूरत में आर्टरी वॉल्स डैमेज होने की संभावना बढ़ जाती है।
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की रिसर्च के अनुसार दो तरह के तनाव मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं। पहला जिसे यूस्ट्रेस के नाम से भी जाना जाता है। यूस्ट्रेस किसी भी व्यक्ति को ध्यान बांटने में मददगार साबित होता है। वहीं दूसरा है डिस्ट्रेस, जो एक गंभीर समस्या के समान थकान और हृदय रोग का कारण बनने लगता है।
वे लोग जो कोरोनरी आर्टरी डिज़ीज़ यानि सीएडी से ग्रस्त हैं, उन्हें इस स्थिति में हृदय में ऑक्सीजन की कमी का सामना करना पड़ता है। इस समस्या को मायोकार्डियल इस्केमिया (Myocardial Ischemia) कहा जाता है। ये समस्या सीएडी वाले सभी रोगियों में से 30 से 50 फीसदी तक पाई जाती है। लगातार भावनात्मक तनाव लेने से ये समस्या गंभीर रूप धारण कर लेती है।
इस बारे में मनोचिकित्सक डॉ युवराज पंत बताते हैं कि इमोशंस दो प्रकार के होते हैं पहला पॉज़िटिव और दूसरा निगेटिव। व्यक्ति जिस तरह सकारात्मक इमोशंस को अपने अनुसार मैनेज कर लेता है, उस तरह से नकारात्मक भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर पाता है। इसके चलते छाती में भारीपन, सांस लेने में तकलीफ, हाई ब्लड प्रेशर और पेल्पीटेशन का सामना करना पड़ता है।
भावनात्मक तनाव के हावी होने से आमतौर पर इररेगुलर एरीदीमिया (Irregular arrhythmia) यानि अनियमित हृदय गति की समस्या बढ़ने लगती है। दरअसल नकारात्मक भावनाओं के बढ़ने से कार्टिसोल हार्मोन का रिलीज बढ़ जाता है, जो ब्लड के ज़रिए पूरे शरीर में सर्कुलेट होने लगता है। शरीर के अन्य हिस्सों के अलावा विशेषरूप से दिल को प्रभावित करता है। लबे वक्त तक इस समस्या के रहने से हार्ट डिज़ीज का सामना करना पड़ता है।
भरपूर नींद लेने से शरीर में हार्मोन का इंबैलेंस नियंत्रित होने लगता है। इससे शरीर दिनभर एक्टिव रहता है और थकान व कमज़ोरी से बचा जा सकता है। सात से नौ घंटे की नींद लेने से कॉर्टिसोल के स्तर को नियंत्रित करके तनाव और मोटापे से राहत मिलने लगती है।
मनमाने ढ़ग से वर्कआइड करना एक उम्र के बाद शारीरिक अंगों में ऐंठन और कमज़ोरी का कारण बनने लगता है। दिन में दो बार व्यायाम करें और मेडिटेशन से भी शरीर को एक्टिव रखें। इससे तनाव को कम करके हृदय रोगों की समस्या से बचा जा सकता है।
इस बात की जानकारी एकत्रित कर लें कि आप किन कारणों से तनाव का सामना करते हैं। उसके बाद अपने आप को खुश रखने के लिए उन चीजों से दूर रहें और खुद को किसी भी कार्य में मसरूफ कर लें। इससे शरीर में ब्लड का सर्कुलेशन उचित रहता है और शरीर में हैप्पी हार्मोन रिलीज़ होते हैं।
तनाव के कारण धड़कन का बढ़ना और सांस लेने में तकलीफ गभीर समस्याओं के लक्षण है। डॉक्टर से संपर्क करें और हृदय जांच अवश्य करवाएं। इससे समय से पहले हार्ट अटैक के खतरे से बचा जा सकता है। साथ ही शरीर में बीमारियों का खतरा कम होने लगता है।