केटोजेनिक या “कीटो” डाइट एक ऐसी डाइट है जिसमें कम कार्बोहाइड्रेट, वसा युक्त खाने की चीजों को डाइट में शामिल किया जाता है। इस डाइट का उपयोग सदियों से कई तरह की बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता रहा है। 19वीं शताब्दी में, डायबिटीज के मरीजों को केटोजेनिक डाइट दी जाती थी। 1920 में इसे उन बच्चों के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा जिन्हें मिर्गी के दौरे आते थे और उन पर कोई दवा असर नहीं करती थी। केटोजेनिक डाइट का इस्तेमाल कैंसर, डायबिटीज, पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम और अल्जाइमर जैसे रोगों में भी किया जा रहा है। पर इसे लगातार फॉलो करने के कुछ नुकसान (Side effects of keto diet) भी हैं।
मायो क्लिनिक के अनुसार आहार में 50% या अधिक कार्बोहाइड्रेट होता है, जो शरीर में ग्लूकोज में बदल जाते हैं। शरीर में कोशिकाएं (cells) उस ग्लूकोज को एनर्जी के रूप में इस्तेमाल करती हैं। लेकिन जब आप बहुत अधिक वसा वाले और कम कार्ब वाले डाइट को फॉलो करते हैं, तो आपके शरीर को आवश्यकता के अनुसार ग्लूकोज को नहीं मिल पाता है और शरीर एनर्जी के लिए फैटी एसिड और कीटोन बॉडी का उपयोग करता है। इस प्रक्रिया को किटोसिस कहा जाता है।
जब आप कीटो डाइट शुरू करते है तो शरीर में फैट बर्निंग (किटोसिस) शुरू होने दो से तीन हफ्ते लगते हैं। डाइट शुरू करने के 2 से 3 हफ्ते बाद ही आपको वजन कम होने का परिणाम दिखेगा। इसलिए एकदम से इसके परिणम की अपेक्षा न करें। कुछ अध्ययनों से पता चला है कि कम या बहुत कम कार्बोहाइड्रेट वाले किटोजेनिक आहार का पालन करने से लोगों को वजन कम करने में मदद मिलती है।
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हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के अनुसार कीटो डाइट मे सैट्युरेटीड फैट अधिक मात्रा में होता है। सैचुरेटेड फैट को रोजाना कैलोरी में सिर्फ 7% ही लेना चाहिए क्योंकि यह हृदय रोग का कारण बन सकता है। कीटो डाइट को फॉलो करने से LDL कोलेस्ट्रॉल में वृद्धि होती है, जो हार्ट की बीमारियों की वजह बन सकता है।
यदि आप कई तरह की सब्जियां, फल और अनाज को अपनी डाइट में नहीं में ले रहे है तो, आपको सेलेनियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस और विटामिन बी और सी सहित कई जरूरी पोषक तत्वों की कमी का खतरा हो सकता है।
हमारे शरीर को सही से काम करने के लिए शुगर बहुत जरूरी है। शरीर को एनर्जी देने और ब्रेन के ठीक से काम करने के लिए शरीर को शुगर की आवश्यकता होती है। यदि आप कार्ब्स नहीं खा रहे हैं, तो शरीर को ग्लूकोज नहीं मिलेगा , जिससे आप ऊर्जा में कमी महसूस करेंगे और ध्यान केंद्रित करने में मुश्किल होगी।
कीटो डाइट से हमारे ब्रेन पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है क्योंकि हमारे ब्रेन को ठीक से काम करने के लिए ग्लूकोज की आवश्यकता होती है क्योंकि हमारा ब्रेन ग्लूकोज को स्टोर नहीं कर पाता है। और अगर शरीर को कार्बोहाइड्रेट युक्त खाना नहीं मिलेगा तो शरीर में ग्लूकोज की कमी होगी होगी और ब्रेन को उचित मात्रा में ग्लूकोज नहीं मिल पाएगा।
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हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के अनुसार केटोजेनिक डाइट वजन घटाने में मदद करता है। इससे मेटाबॉलिज्म सही होता है और भूख भी कम होती है।
केटोजेनिक डाइट में ऐसे खाद्य पदार्थ होते हैं जो एक व्यक्ति को लंबे समय तक भूख महसूस होने नहीं देते है और भूख-लगने वाले हार्मोन को कम कर सकते हैं। इन कारणों से, कीटो डाइट का पालन करने से भूख कम हो सकती है और वजन घटाने मे मदद मिलती है।
एपिलेप्सी फाउंडेशन के अनुसार किटोसिस मिर्गी के दौरे से ग्रसित लोगों को लिए फायदेमंद है। विशेष रूप से उनके लिए जिन पर किसी तरह की दवा या उपचार का कोई असर नहीं हो रहा है।
नेशनल स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के अनुसार पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) एक हार्मोनल डिसऑर्डर है जो ओव्यूलेटरी डिसफंक्शन और पॉलीसिस्टिक ओवरी को जन्म दे सकता है। अधिक मात्रा में कार्बोहाइड्रेट वाले पदार्थों का सेवन पीसीओएस वाले लोगों को प्रभावित कर सकता है, जिससे स्किन की समस्या और वजन बढ़ने जैसी चीजें हो सकती है।
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