जैसे – जैसे हम बड़े होते हैं, हमारे आसपास हर कोई हमें सिखाता है कि ‘रोते नहीं हैं’ तुम वीक नहीं हो’, ‘तुम्हें मजबूत बनना पड़ेगा’। भले ही इन बातों के पीछे किसी की अच्छाई छुपी हो, लेकिन हम इन बातों को सुनकर बड़े हुए हैं। पर ज़रूरी नहीं है कि इनका प्रभाव हमेशा अच्छा ही हो।
किसी की फीलिंग्स को सिरे से नकार देने के कई दुष्परिणाम हो सकते हैं। ऐसे में उन भावनाओं का दमन होता है और इसका हानिकारक प्रभाव पड़ता है। जो कुछ भी लंबे समय तक दबाया जाता है वह हमारे अवचेतन में बैठ जाता है। जो अंततः हमारे व्यवहार में झलकता है। इसलिए, लोगों की और अपनी फीलिंग्स की कद्र करना ज़रूरी है।
असल में भावनाएं चेतावनी संकेत के रूप में कार्य करती हैं। यह दर्शाती है कि हम किसी भी समय जीवन के माध्यम से कैसे प्रगति कर रहे हैं। जब हम किसी खास भावना का अनुभव करते हैं, तो इसका मतलब है कि हमारे मस्तिष्क ने अपने आसपास बदलाव महसूस किया है। यह उन चीजों को हमारे ध्यान में लाता है, जो हमें भावनाओं को दबाने पर जोर देती हैं।
अपनी भावनाओं को दबाना आपके लिए हानिकारक साबित हो सकता है। यह मानसिक बीमारियों को पैदा करने का कारण बन सकती हैं। इसलिए उन्हें व्यक्त करना शारीरिक और भावनात्मक कल्याण के लिए जरूरी है। मगर लोग ऐसा करने से डरते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे।
भावनाओं को दबाने या छिपाने से मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंच सकता है। ऐसे में लोग गलत आदतें अपना लेते हैं जैसे ड्रग्स, शराब या सेक्स। कुछ लोग अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं कर पाते हैं। जबकि कुछ को ऐसा करने से डर लगता है। मगर, ज़रूरी नहीं है कि लोगों को बताने से ही अपनी भावनाएं व्यक्त होती हैं, नहीं! इन्हें कई अन्य तरीकों से भी व्यक्त किया जा सकता है।
भावनाओं को कई तरह से व्यक्त किया जा सकता है – बात करना, व्यायाम करना, अपनी कला का प्रदर्शन करना – नृत्य, संगीत, या एक वाद्य बजाना आदि। बस ज़रूरी है कि आप खुद को व्यक्त करें, जिस तरह से भी आपको पसंद हो।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक व्यक्ति में खुद की मदद करने की क्षमता होती है। उन्हें केवल किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता होती है, जो बिना जजमेंटल हुए उनकी बात सुन सकें। न कि उनकी समस्या को हल करने का प्रयास करे। इसलिए एक अच्छे श्रोता बनें।
भावनाएं सही या गलत नहीं होतीं, बल्कि ये आपका अपना अनुभव हैं और इसे किसी भी आधार पर नकारा नही जा सकता। यह ज़रूरी नहीं है कि आप हर किसी की फीलिंग्स को समझ पाएं, लेकिन कम से कम उनकी कद्र करें।
काफी बार किसी की फीलिंग्स को सुनना काफी मुश्किल हो सकता है, यह बिल्कुल स्वाभाविक है। ऐसी स्थिति में, आलोचनात्मक होने के बजाय, हमें उन्हें किसी मेंटल हेल्थ प्रॉफेशनल के पास भेजना चाहिए।
हम में से बहुत से लोगों को यह मुश्किल लगता है जब कोई अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की कोशिश कर रहा है, क्योंकि हम मानते हैं कि हमें उनकी समस्या को हल करना है, जो असहायता या दबाव की भावना लाता है। जबकि कई बार सिर्फ किसी की बात सुनना, उसकी मदद कर सकता है।
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