एक बड़ी कपंनी में 9 से 6 की नौकरी हर कोई पाना चाहता है, मगर वो 9 घंटे की नौकरी कब 12 घंटे की बन जाती है, पता ही नहीं चल पाता। कभी मीटिंग, असाइनमेंट, तो कभी ब्रेन स्ट्रॉर्मिंग (brainstorming) सैशन समेत कई चीजों का कार्यभार काम के साथ कर्मचारियों पर बढ़ता चला जाता है। बेचारा कर्मचारी हर पल रोलरकोस्टर पर सवार रहता है। अब वर्कप्रैशर (side effects of work pressure) देखते ही देखते स्ट्रेस का कारण (causes of stress) बनने लगता है। दरअसल, सुबह से शाम होने लगती है और काम करते करते व्यक्ति थक जाता है। मगर काम अब भी आपका इंतज़ार कर रहा होता है, जो न चाहते हुए भी वीकेंड तक स्ट्रेच होने लगता है। इन्हीं कारणों से एना जैसे न जाने कितने लोग वर्कप्रेशर से परेशान 9होकर कार्डियक अरेस्ट का शिकार हो जाते हैं। जानते हैं एना का पूरा मामला और बर्नआउट (signs of burnout) से बचने की टिप्स।
कॉरपरेट कंपनियों में नींद के घंटे कम हो सकते है, मगर आज का काम कल पर टालने से वर्कप्रैशर बढ़ने लगता है।। इस तरह के दबाव में काम करते करते एक युवती कार्डियक अरेस्ट का शिकार हो गई। एना सेबेस्टियन ने सीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद पुणे की कंपनी में नौकरी करनी शुरू कर दी। पांच महीने की इस नौकरी से एना मानसिक और भावनात्मक तौर पर थक चुकी थीं।
इसके चलते एना को भरपूर नींद नहीं आ पाती थी। माता पिता से दूर अकेले रहना और तनाव का सामना करना वाकई स्ट्रेसफुल (stressful life) हो चुका था। कुछ दिन पहले माता पिता से मिलने के दौरान उसने सीने में दर्द की शिकायत की थी, जिसकी जांच करवाई गई थी। मगर वर्कलोड के चलते एना आराम नहीं कर पाई और कार्डियक अरेस्ट का शिकार हुई, जिसमें उसकी जान चली गई। जानते हैं मनोचिकित्सक डॉ युवराज पंत से कि कैसे करें बर्नआउट के संकेतों की पहचान।
तनाव के कारण समय से नींद न आने की समस्या बढ़ जाती है। दरअसल, वर्कलोड के चलते एंग्ज़ाइटी का सामना करना पड़ता है, जिससे रातभर दिमाग में कोई न कोई विचार चलता रहता है। इससे सिरदर्द, दिनभर थकान और कमज़ोरी का सामना करना पड़ता है। मगर वर्कप्रैशर के चलते अधिकतर लोग इनसोमनिया का शिकार हो जाते हैं।
अक्सर लोगों के व्यवहार में बदलाव आने लगता है। काम का प्रैशर बढ़ जाने से व्यक्ति की चिंताएं बढ़ने लगती है। इसके चलते व्यवहार में चिड़चिड़ापन बना रहता है। काम के घंटे बढ़ जाने के कारण शरीर को भरपूर आराम नहीं मिल पाता है। इसके चलते व्यक्ति खुद के लिए समय नहीं निकाल पाता है। ऐसे में परेशानी से घिरा रहता है।
दिनों दिनों सामाजिकता में कमी आने लगती है। व्यक्ति एंटरटेनिंग चीजों में हिस्सा लेने से कतराता है और दिनभर अपने काम में मसरूफ रहता है। इससे सोशल सर्कल कम हो जाता है और तनाव का स्तर बढ़ने लगता है, जो बर्नआउट का कारण (causes of burnout) बन जाता है।
देर रात तक जगकर काम करना शरीर में एनर्जी के स्तर को कम कर देता है। अब काम का बोझ शारीरिक और मानसिक थकान को बढ़ा देता है। व्यक्ति शरीर में कमज़ोरी महसूस करने लगता है, मगर बावजूद काम में जुटा रहता है। इससे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है और व्यक्ति बर्नआउट का शिकार होने लगता है।
अगर आपके पास कार्य ज्यादा हैं और समय सीमित है, तो कार्यों को समय के अनुरूप विभाजित कर लें। इससे समय के साथ कार्य को पूरा करने में मदद मिलती है। इसके अलावा स्क्रीन टाइम और अन्य कार्यों में समय को बर्बाद करने से बचें।
अपनी शारीरिक क्षमता को पहचानकर ही किसी कार्य को करने के लिए आगे बढ़ें। इससे कार्य की क्वालिटी बढ़ती है और व्यक्ति खुद को रिलैक्स महसूस करता है। साथ ही शरीर में एनर्जी का उच्च स्तर बना रहता है। अपने आज के कार्य को कल तक न टालें।
क्वालिटी वर्क पाने के लिए ब्रेन को रिलैक्स रखना ज़रूरी है। इसके लिए खुद को समय दें और काम के दौरान छोटे ब्रेक्स लें। इससे कार्यक्षंता में सुधार आने लगता है और काम को समय से पूरा करने में मदद मिलती है। दरअसल, ब्रेक लेने से बर्नआउट से बचा जा सकता है।
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कस्टमाइज़ करेंदिनभर तनाव से मुक्त रहने के लिए सुबह उठकर कुछ देर योग और मेडिटेशन करें। इससे मेंटल हेल्थ बूस्ट होती है और शारीरिक समस्याओं से बचा जा सकता है। इसके अलावा मॉडरेट एक्सरसाइज़ भी शरीर के संतुलन को बनाए रखती है।