अक्सर कुछ लोगों का मिजाज पल-पल बदलता रहता है। कभी बहुत खुश, तो कभी किसी छोटी बात पर बेहद नाराज। कभी-कभी ऐसे लोग बैठे-बैठे उदास भी हो जाते हैं। ये अकेला रहना पसंद करने लगते हैं। इनके मूड और और व्यवहार में स्थिरता नहीं होती है। जिसे मेडिकल टर्म में मूड स्विंग (Mood Swings) कहा जाता है। हम भले इसे छोटी बात मानकर नजरअंदाज कर दें, लेकिन यह एक गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्या है। कभी-कभी गंभीर होने पर यह मैनिक डिप्रेशन (Manic depression) और बाइपोलर इफेक्टिव डिसऑर्डर (Bipolar affective disorder) का भी रूप ले सकता है। इसलिए जरूरी है कि आप इसके बारे में सब कुछ जानें।
थायरॉयड, हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज की समस्या होने पर भी मूड स्विंग होता है। जो लोग लंबे समय से एल्कोहल का सेवन कर रहे हैं या ड्रग्स लेते हैं, उन्हें भी मूड स्विंग का सामना करना पड़ सकता है। मिजाज बदल जाने की समस्या यदि उन्हें लगातार हो रही है, तो यह मैनिक डिप्रेशन (Manic Depression) में बदल जाता है। वास्तव में मूड स्विंग के कारण जो समस्या होती है, वह मैनिक डिप्रेशन कहलाता है।
मेनोपॉज (Menopause) के आसपास इस समस्या का जोखिम और भी ज्यादा बढ़ जाता है। कुछ शोधों में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि 30-40 वर्ष के लोगों, विशेषकर महिलाओं में यह समस्या सबसे अधिक होती है।
डॉ. कृति के अनुसार मैनिक डिप्रेशन के शिकार लोग एकाएक बहुत उदास और सुस्त रहने लगते हैं। उन्हें इनसोमनिया यानी अनिद्रा की समस्या भी हो सकती है। समय पर भोजन न करना, लोगों से बातचीत न करना, लोगों से मिलने-जुलने से कतराना आदि भी इसके लक्षण हैं।
मूड स्विंग के शिकार लोग अगर एक्टिव हों, तो उन्हें लोगों से बातचीत करना बहुत अधिक पसंद होता है। उनमें धर्म और समाज के प्रति प्रेम और जागरूकता एकाएक बहुत अधिक हो जाती है। वे बहुत अधिक खर्चीले भी हो जाते हैं।
वहीं कुछ लोगों में इन दोनों का मिला-जुला रूप हो सकता है। मनोवैज्ञानिक सुस्त रहने वाले लोगों को लो एपिसोड की अवस्था कहते हैं। वहीं एक्टिव को हाई एपिसोड और मिले-जुले लक्षणों वाले लोगों को मिक्स्ड एपिसोड की अवस्था कहते हैं। इन अवस्थाओं से गुजर रहे लोगों की आदतों और स्वभाव में काफी परिवर्तन नजर आते हैं।
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साइकोलॉजिस्ट डॉ. कृति मेहरोत्रा के अनुसार, ब्रेन के न्यूरोट्रांसमीटर्स में असंतुलन इस समस्या की सबसे बड़ी वजह है। कभी-कभी जीन भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकता है। यदि माता-पिता के परिवार में किसी को यह बीमारी है, तो आगे की जेनरेशन को यह रोग होने की संभावना बनी रहती है।
इसके मरीज खुद अपनी समस्या नहीं बता पाते। ऐसी स्थिति में परिवार वालों की यह जिम्मेदारी बनती है कि न केवल उनका इलाज करवाएं, बल्कि उन्हें पूरा इमोशनल सपोर्ट दें। इस समस्या के समाधान के लिए मूड स्विंग को बैलेंस करने की दवाएं दी जाती हैं। इनका इलाज लंबे समय तक चलता है। इसलिए परिवार के लोगों के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वे मरीज द्वारा ली जाने वाली दवा पर ध्यान रखें। वे नियमित रूप से दवा ले रहे हैं या नहीं, इसका भी ख्याल रखें। जहां तक हो सके, घर का माहौल खुशनुमा व तनावमुक्त होना चाहिए। कभी-भी मरीज को उसकी गलतियों के लिए डांटें नहीं। जितना संभव हो, उनके साथ प्यार से रहें।
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