कभी ऑफिस तो कभी घर की जिम्मदारियों को पूरा करने की जल्दबाज़ी जीवन में तनाव का स्तर बढ़ा देती है। इससे लोग अधिकतर बेचैन रहते हैं, जिसका असर व्यवहार पर भी दिखने लगता है। मगर तनाव (stress) से जुड़ी एक खास बात ये है कि इससे न केवल मन में विचारों का घेराव होने लगता है बल्कि वेटगेन (weight gain) का भी सामना करना पड़ता है। अधिकतर लोग वेटलॉस (weight loss) के लिए फैंसी डाइट और वर्कआउट (workout) को भी फॉलो करते हैं। मगर बावजूद वेटलॉस जर्नी असफल रहती है। जानते हैं जीवन में बढ़ रहा तनाव कैसे ट्रांस्फ़ॉर्मेशन जर्नी को करता है प्रभावित (stress effects on weight loss journey) ।
इस बारे में मन स्थली की फाउंडर डायरेक्टर और सीनियर साइकेटरिस्ट डॉ ज्योति कपूर बताती हैं कि कोई व्यक्ति जब तनावग्रस्त होता है, तो उसका प्रभाव उसकी दिनचर्या पर भी दिखने लगता है। समय पर खाना न खा पाना और देर तक जागने से शरीर में एड्रेनालाईन और कोर्टिसोल हार्मोन (cortisol hormone) रिलीज़ होने लगते है, जिससे गट हेल्थ (gut health) पर असर देखने को मिलता है। जहां एड्रेनालाईन हार्मोन खाने की इच्छा को कम कर सकता है।
वहीं कोर्टिसोल पाचन क्रिया, इम्यून सिस्टम और प्रजनन प्रणाली जैसी प्रतिक्रियाओं पर असर डालता हैं। स्लो डाइजेशन से पेट दर्द, एसिडिटी, डायरिया और कब्ज की समस्या बनी रहती है। इससे वेटलॉस जर्नी (weight loss journey) स्लो हो जाती है और कैलोरीज़ एकत्रित होने लगती हैं। वहीं शरीर में कोर्टिसोल का बढ़ता स्तर खाने की इच्छा को बढ़ा सकता है। इससे ओवरइटिंग की समस्या बढ़ जाती है, जिससे वज़न बढ़ने लगता है।
तनाव के चलते लोगों को इमोश्नल इंटिंग का सामना करना पड़ता है। समय पर खाना न खाना और अनहेल्दी फूड (unhealthy food) की कंजप्शन का बढ़ना वेटगेन का कारण बन जाता है। रात में देर तक जागना और ओवरइटिंग (overeating) करने से शरीर में कैलोरीज़ स्टोर होने लगती हैं।
स्ट्रेस बढ़ने से नींद न आने की समस्या का सामना करना पड़ता है। इसके चलते शरीर में स्ट्रेस हार्मोन रिलीज़ होते हैं, जो स्लीप पैटर्न (sleep pattern) को डिस्टर्ब करने लगते हैं। क्वालिटी स्लीप न मिल पाने से दिनभर थकान, फोकस की कमी और कार्यक्षमता में कमी का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा शरीर में वेटगेन का सामना करना पड़ता है।
दिनभर तनावग्रस्त रहने से चयापचय स्लो होने लगता है। इससे ब्लोटिंग, अपच और कब्ज का सामना करना पड़ता है। मेटबॉलिज्म (metabolism) की धीमी गति वेटगेन की समस्या को बढ़ा देती है। साथ ही शरीर में थकान और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। तनाव के चलते मील स्किप करने या ओवरइटिंग (overeating) से ये समस्या बढ़ जाती है।
शरीर में तनाव के चलते कोर्टिसोल (cortisol) का स्रिशन बढ़ जाता है। इससे शरीर पर नकारात्मक प्रभाव नज़र आने लगता है। इससे मेटाबॉलिज्म स्लो (slow metabolism) होने लगता है और इटिंग हैबिट्स में भी बदलाव दिखने लगता है। इससे शरीर में अनचाहे वेटगेन (weight gain) का सामना करना पड़ता है।
इस बात को जानना बेहद आवश्यक है कि किन कारणों से तनाव (stress) बढ़ जाता है। ऐसे में उन समस्याओं को मन पर हावी न होन दे। वर्कप्रेशर, ब्रेकअप, शारीरिक समस्या समेत कई कारणों से जीवन में तनाव (stress) बढ़ने लगता है। अपनी समस्याओं पर चिंतन करें और किसी मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट की मदद से अपनी समस्या को सुलझाएं।
सेल्फ इवेल्युएशन से किसी भी समस्या को हल किया जा सकता है। सेल्फ टॉक के ज़रिए खुद को मोटिवेट करें और अपनी कमियों पर फोकस करें। इससे इन्नर सांउड को समझने में मदद मिलती है। साथ ही नकारात्मकता को भी कम किया जा सकता हैं।
खान पान को लेकर कोताही बरतने से वेटगेन की समस्या तेज़ी से बढ़ने लगती है। ऐसे में माइंडफुल इटिंग (mindful eating) ज़रूरी है। साथ ही खाने के हेल्दी विकल्पों को चुनें और 3 बड़ी मील्स की जगह छोटी मील्स को आहार में शामिल करें। इससे वेटलॉस (weight loss) में मदद मिलती है और शरीर में तनाव का स्तर भी कम होने लगता है।
रोज़ाना कुछ देर व्यायाम करना आवश्यक है। इससे मेंटल हेल्थ बूस्ट होती है और शरीर में बढ़ने वाले हार्मोनल इंबैलेंस को इंप्रूव किया जा सकता है। दिनभर में कुछ वक्त डीप ब्रीदिंग, मेडिटेशन, योगा और एक्सरसाइज़ के लिए ज़रूर निकालें।
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