तनाव हम में से किसी के लिए भी नया शब्द नहीं है। ज्यादातर लोग अकसर किसी न किसी तरह के तनाव का सामना करते हैं। यह काम से संबंधित हो सकता है, पढ़ाई और कॅरियर से संबंधित हो सकता है। मगर सबसे ज्यादा जो तनाव लोगों को परेशान और बीमार बना रहा है, वह है रिलेशनशिप स्ट्रेस (Relationship stress)।
आज से डेढ़ दशक पहले आए निल्सन के सर्वे में यह सामने आया था कि भारतीय महिलाएं दुनिया भर की महिलाओं से ज्यादा तनाव का सामना करती हैं। इतना अधिक कि 84 फीसदी महिलाओं ने सर्वेक्षण में यह स्वीकार किया कि वे हमेशा किसी न किसी तरह के तनाव में रहती हैं। जबकि अब ऐसी घटनाएं भी सामने आ रही हैं, जब पुरुष अपनी पत्नी या रोमांटिक पार्टनर के कारण तनाव का सामना कर रहे हैं। यानी तनाव दोनों तरफ है।
मिशेल ओबामा अकसर वीमेन इश्यूज के बारे में बात करती रहती हैं। शादी और उससे उपजे तनाव के बारे में लिखते हुए उन्होंने एक बार लिखा था, कि एक अच्छा जीवनसाथी एक अच्छे जूते की तरह होता है। यह आपके साइज से बड़ा या छोटा, जो भी होगा, आपको परेशान करता रहेगा। जिस तरह बिना नाप और फिट का जूता आपके सफर को मुश्किल बना सकता है, उसी तरह बेमेल जीवनसाथी, जिंदगी के सफर को मुश्किल बना सकता है।
संबंधों के कारण होने वाला तनाव (Relationship stress) न केवल आपकी प्रोडक्टिविटी, फोकस और मेमोरी को प्रभावित करता है, बल्कि लंबे समय तक रहने पर यह गंभीर बीमारियों का भी कारण बन सकता है। हालंकि रोमांटिक और शादीशुदा रिश्तों में तनाव का होना सामान्य है। ज्यादातर जोड़े अपने संबंधों में किसी न किसी तरह के तनाव का सामना करते हैं। मगर कुछ लोगों के लिए यह पॉजीटिव साबित होता है, तो कुछ के लिए इतना अधिक तनावपूर्ण हो जाता है कि वे रिश्ते से बाहर आने का फैसला कर लेते हैं।
सीएमआरआई हॉस्पिटल में सीनियर सीनियर साइकोलॉजिस्ट और साइकोथैरेपिस्ट राज्यश्री बंद्योपाध्याय कहती हैं, “एक स्वस्थ संबंध किसी भी व्यक्ति के जीवन में खुशी लेकर आता है। इसका असर काम और स्वास्थ्य, दोनों पर सकारात्मक नजर आना चाहिए। पर कभी-कभी ऐसा होता है कि संबंध खराब हो जाते हैं। भारतीय संदर्भ में पारीवारिक ढांचा शादी के बाद स्त्री और पुरुष दोनों के लिए अलग-अलग है। जिससे महिलाएं दोहरा तनाव महसूस करती हैं।
यह किसी महिला के मानसिक स्वास्थ्य, आत्मसम्मान और कार्यक्षमता को बुरी तरह से प्रभावित करता है। जब कोई रिश्ता जोड़-तोड़ भरा, भावनात्मक रूप से प्रताड़ित करने वाला, आत्मकेंद्रित, नियंत्रित करने वाला या विषाक्त (Toxic) होता है, तो यह लंबे समय तक चलने वाले तनाव और चिंता का कारण बन सकता है, जिससे अवसाद भी हो सकता है। अंततः, इसका प्रभाव ऑफिस में प्रदर्शन और रोजमर्रा की गतिविधियों पर भी दिखाई देने लगता है।
राज्यश्री बंद्योपाध्याय कहती हैं, “कई संस्कृतियों में, जिनमें भारतीय संस्कृति भी शामिल है, महिलाओं को यह सोचने के लिए प्रेरित किया जाता है कि उनका त्याग अपनी देखभाल और कल्याण से अधिक महत्वपूर्ण है और अगर रिश्ता बिगड़ रहा है, तो इसमें उनकी ही गलती है। यह आत्मग्लानि (Self blaim) अक्सर इनकार (Deniel) की भावना को जन्म देता है, जिससे भावनात्मक रूप से थकान (Emotinal burnout) होता है।
इस विषाक्त चक्र से बाहर निकलना बहुत कठिन हो जाता है। अपनी शक्ति को पुनः प्राप्त करने का पहला कदम है—इस विषाक्तता को पहचानना, तनाव के स्रोतों को समझना और यह स्वीकार करना कि यह उनकी गलती नहीं है।”
राज्यश्री इसे कंट्रोल करने और इस स्थिति से बाहर आने के सुझाव देती हैं। वे कहती हैं, “विषाक्त रिश्तों से निपटने के लिए भावनात्मक बुद्धिमत्ता (Emotional intelligence) विकसित करना, सीमाएं (Bounderies) तय करना और प्रोफेशनल सहायता लेना बहुत जरूरी है। चूंकि ऐसे आत्मकेंद्रित (Narcissistic) या टॉक्सिक (toxic) लोग शायद ही कभी थेरेपी में जाते हैं।
इसलिए महिलाओं को अपनी मानसिक क्षमता को सुधारने के लिए थेरेपी और मनोवैज्ञानिक तरीकों पर ध्यान देना चाहिए। भावनात्मक रूप से प्रतिक्रिया देने के बजाय तर्कसंगत रूप से सोचना तनाव को कम करने में मदद करता है और जीवन को बेहतर बनाता है। सही समय पर लिया गया प्रोफेशनल इंटरवेंशन महिलाओं को सशक्त बनाने, उनके जीवन पर नियंत्रण रखने, उनकी उत्पादकता बढ़ाने और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है।”
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