कोई भी रिश्ता माता-पिता और उनके बच्चे के बीच के रिश्ते से बढ़कर नहीं है। माता-पिता और बच्चों को बांधने वाले जैविक और मनोवैज्ञानिक संबंध बच्चे के शारीरिक और भावनात्मक विकास का आधार होते हैं। एक बच्चे का स्वस्थ विकास उसके माता-पिता पर निर्भर करता है, खासकर मां पर। क्योंकि मां ही बच्चे का समग्र रूप से पालन पोषण करती है।
ऐसे में यदि मां शारीरिक और मासिक रूप से स्वस्थ होगी, तभी बच्चे का समग्र विकास संभव है। मगर असल जिंदगी इतनी सुलझी हुई नहीं होती है – यहां किसी मूवी की तरह परफेक्ट परिवार नहीं होता है। शायद यही समय है कि हमें मांओं को परफेक्शन की मूरत नहीं बनाना चाहिए। क्योंकि गलतियां सबसे होती हैं और इंसान को गलतियां न करने के लिए गिल्टी महसूस नहीं करना चाहिए।
घर परिवार में आर्थिक कठिनाई, तलाक, या बीमारी जैसी कई समस्याएं आ सकती हैं – जो यकीनन बच्चों के विकास पर असर डाल सकती हैं।
सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रेवेंशन के अनुसार जिन बच्चों का बचपन सकारात्मक वातावरण में बीतता है उन बच्चों के जीवन की सकारात्मक गुणवत्ता की संभावना अधिक होती है। उनके घर, स्कूल और अपने समुदायों में अच्छी तरह से कार्य करने की संभावना अधिक होती है। माता-पिता और बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य कई तरह से जुड़ा हुआ है। माता-पिता जिनके पास अपनी मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियां हैं, जैसे कि अवसाद या एंग्जाइटी, उन्हें बच्चों को पालने में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
ऐट ईज़ की मुख्य मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ ऋचा वशिष्ठ ने साझा किया, कि “बढ़ते तनाव के कारण, कई माताएं वर्तमान में कई मनोवैज्ञानिक समस्याओं जैसे चिंता, घबराहट के दौरे, सांस लेने में कठिनाई, अचानक धड़कन बढ़ना और असहायता की बढ़ती भावना से पीड़ित हैं। पिछले डेढ़ साल माताओं के लिए कठिन रहा है। वे किसी को अपनी समस्या के बारे में बताती भी नहीं हैं – कई लोग अपने करियर के साथ-साथ अपने घर की देखभाल भी करते हैं। इससे उनकी मानसिक स्थिति पर असर पड़ा है।”
अपनी मूल भूत जरूरतों के लिए समय ज़रूर निकालें। जैसी समय पर खाना, सोना काम करना। अपने बच्चे के साथ भी अपना टाइम अच्छे से मैनेज करें और जो समय फोन में बर्बाद हो जाता है उसे भी बचाएं।
मां को भी छुट्टियां अलाउड हैं! हर किसी को अपनी मेंटल हेल्थ को दुरुस्त रखने के लिए एक ब्रेक चाहिए होता है। ठीक इसी तरह आप भी खुद के लिए ब्रेक लें। उस दिन अपनी किसी दोस्त से मिलने जाएं, या अपनी पसंदीदा मूवी देखें या फिर जर्नल लिखें।
यदि आपका मानसिक स्वास्थ्य सही नहीं है, तो खुद को ब्लेम न करें। यह न सोचें कि आपके साथ ऐसा क्यों हो रहा है। जिस भी समस्या से आप जूझ रही हों, बस खुद को थोड़ा वक़्त दें और ज़रूरत पड़ने पर चिकित्सीय मदद लें।
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