होली के दिन सुबह से ही यह आवाज़ कानों में गूंजने लगती है-बुरा न मानो रंगों की होली है। जब हम किसी बात का बुरा मानते हैं, तो उसे दिल से लगा लेते हैं। यानी हमारा मन या मेंटल हेल्थ प्रभावित होता है। लेकिन जैसे ही हम होली के रंग एक-दूसरे के चेहरे पर मलते हैं, तो सारे गिले-शिकवे भूल जाते हैं। हमारा मन खुशियों से भर जाता है। तनाव या स्ट्रेस हमसे कोसों दूर भाग जाता है। मनोचिकित्सक भी यही कहते हैं कि होली हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए बढ़िया है। होली खेलने पर हमारा स्ट्रेस और एंग्जाइटी लेवल घट जाता है। क्या वास्तव में रंगों का हमारे मन पर प्रभाव पड़ता (Holi for mental health) है? इसके बारे में जानने के लिए हमने बात की सीनियर क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट और अनन्या फाउंडेशन की डायरेक्टर डॉ. ईशा सिंह से।
डॉ. ईशा बताती हैं, ‘ अलग-अलग तरह के रंग हमें अच्छा और शांत महसूस कराते हैं। ब्राइट कलर आपको बढिया महसूस करा सकते हैं। आप किसी समस्या से परेशान हैं और आप होली के अलग-अलग रंगों से खेलती हैं। तो लाल, गुलाबी, पीले जैसे चमकीले रंग हमारी भावनाओं को बाहर निकलने में मदद करते हैं। रंग अच्छी और बुरी दोनों तरह की भावनाओं को बाहर लाने में मदद करते हैं। यह हमारे व्यवहार को भी प्रभावित करता है।
होली के दौरान खेले जाने वाले ब्राइट कलर और प्ले फुल वातावरण व्यक्ति को सभी परेशानियों को भूलने के लिए मजबूर कर सकते हैं। रंग हमारे जीवन में एक खास तरह की जीवंतता लाता है। जीवंत वातावरण निश्चित तौर पर मस्तिष्क को आराम और सुकून देता है।
जब हम ब्राइट कलर देखते हैं, तो यह मस्तिष्क के लिए उत्प्रेरक का काम करता है। मस्तिष्क अच्छी भावनाओं से भर जाता है। चमकीले रंग हमारे अंदर आंतरिक चमक और खुशी का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनसे हमें खुशी मिलती है। इससे मूड में सुधार होता है। यदि आप किसी प्रकार की समस्या का सामना कर रही हैं, तो होली के रंगों और माहौल का हिस्सा बनें। किसी ख़ास रंग की पसंद के पीछे आपकी अपनी च्वाइस काम कर सकती है। हर व्यक्ति की पसंद अलग-अलग होती है। लेकिन रंगों का हमारे मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ता है।
फ्रंटियर्स ऑफ़ साइकोलॉजी जर्नल में रंगों के मेंटल हेल्थ पर प्रभाव की स्टडी की गई। शोधकर्ता मीयर और रॉबिन्सन ने अपने निष्कर्ष में बताया कि ख़ुशी, गम, क्रोध प्रकट करना, ये सभी मेंटल स्टेटस को दर्शाते हैं।
लोग अपनी भावनाओं को रंगों से जोडकर प्रकट करते हैं। सफेद को ख़ुशी या प्योरिटी से जोड़ कर देखते हैं। वहीं दुख या गम को काले से जोडकर और क्रोध को लाल से जोड़कर बताते हैं।
यही वजह है कि हम कहते हैं कि गुस्से से सामने वाले व्यक्ति का चेहरा लाल हो गया। रंग सीधे शरीर क्रिया विज्ञान को प्रभावित करता है और उत्तेजना को बढ़ाता है। यह प्रभाव रंगों के वेवलेंथ पर भी निर्भर करता है। नीली रोशनी की वेवलेंथ मस्तिष्क को शांत करती है। इसलिए इस रंग को मेडिटेशन से जोड़कर देखा जाता है।
डॉ. ईशा कहती हैं कि इस त्योहार से हमें एक और फायदा मिलता है। होली के अवसर पर हम अपने दोस्तों और परिवारवालों से मिलते-जुलते हैं। एक-दूसरे के पीछे रंग लेकर दौड़ते-भागते हैं।
एक-दूसरे से संवाद स्थापित करते हैं। मिलने-जुलने और बातचीत करने से हमारा माइंड रिलैक्स होता है और खेलने से शरीर की स्ट्रेचिंग भी हो जाती है। लोगों से मेलजोल हमें आनंद और मस्ती से भर देता है। अपने दिमाग को तंदुरुस्त रखने के लिए इस बार जरूर खेलें होली।
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